Uncategorized

आम की उन्नत खेती

Share

आम में फूल फरवरी से मार्च तक आते है व मई से अगस्त तक फल प्राप्त होते है3। आम में एकान्तर फलन की समस्या होती है। आम तथा इसके उत्पाद के निर्यात से देश को वर्ष 2016-17 में 2194 करोड़ रूपये से ज्यादा की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई।
प्रमुख किस्में- उन्नत किस्मों में दशहरी, लंगड़ा अंलफान्सों, सफेदा, तोतापुरी, बॉम्बेग्रीन, चौसा, नीलम, मल्लिका, आम्रपाली, रत्ना, अर्का अरूणा, अर्का पुनीत इत्यादि।
जलवायु- आम उष्ण और उपोष्ण जलवायु का फल है। वृद्धि के लिए तापमान 15-35 डिग्री होता है व अधिक शीत से पौधे को हानि होती है।
भूमि- आम के लिए सभी प्रकार की भूमि उपयुक्त होती है लेकिन गहरी दोमट मिट्टी सही होती है। भूमि का पी.एच. 5.5-7.5 तक होना चाहिए।
छठवें वर्ष के पश्चात् खाद एवं उर्वरक की मात्रा निश्चित ही रहती है गोबर की खाद या कम्पोस्ट, फास्फोरस, नाइट्रोजन तथा पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा वर्षा आरम्भ होने पर प्रति वर्ष दी जा सकती है। नाइट्रोजन की शेष मात्रा फरवरी- मार्च अर्थात् फूल आने के पश्चात् दी जानी चाहिए। खाद एवं उर्वरक वृक्ष के फैलाव के अनुसार तने से दूर थाला में देनी चाहिए। खाद एवं उर्वरक देने के पश्चात हल्की गुड़ाई करनी चाहिए।
सिंचाई- सिंचाई प्रथम तथा द्वितीय वर्षो में शीत ऋतु में 7-10 दिन के अन्तर में व ग्रीष्म ऋतु में तीन दिन के अन्दर करनी चाहिए। तृतीय, चतुर्थ व पंचम वर्षो में शीत ऋतु में 15-20 दिनों में व ग्रीष्म ऋतु में 7-10 दिन के अन्तर में करनी चाहिए। इसके बाद फूल व फल आने के समय आवश्यक होती है। सिंचाई करते समय पानी पौधे के तने से दूर रहे।
देखभाल– ग्रीष्म ऋतु में तेज धूप, हवा से पौधों की रक्षा करना। इसके लिए करना आवश्यक है। शीत ऋतु में पाले से बचाने के लिए सिंचाई करना।
कटाई छंटाई एंव सघाई- मूलवृन्त निकलने वाली शाखाओं को काट लें ऐसी शाखाएं तेजी से बढ़ेगी। आम के वृक्ष को अपने स्वभाविक रूप से बढने दे। रोगग्रस्त व सूखी शाखा को समय-समय पर काट लें या निकाल लें।
अंतराशस्य- आम का उद्यान लगाने के प्रारम्भिक तीन-चार वर्षो में उद्यान से कोई आय नहीं होती है। अत: लगाए गए पौधों के चारों और दो स्थान छोड़कर सब्जियां लगानी चाहिए। टमाटर, मटर फूल गोभी, आलू आदि सब्जियां लेनी उचित है। जब वृक्ष फलने लगे तो अंतराशस्य बंद करनी चाहिए। सब्जियों के स्थान पपीता, अनानास स्ट्राबेरी आदि फल के पौधे भी लगाए जा सकते है। या इन्हें भी समयानुसार निकाल देना चाहिए। फूल तथा फलों का झडऩा- यद्यपि फूल व फलों का झडऩा एक प्राकृतिक क्रिया है। लेकिन इसकी अधिकता हानिकारक है। फूल लगने पर सिंचाई करने पर से फलों का गिरना कम हो जाता है। पलेनोफिक्स (1 मि.ली. 4.5 लीटर पानी) हार्मोन छिड़कने से भी कुछ लाभ होता है।
फलों को तोडऩा- जब वृक्ष पर फल पूर्णतया विकसित हो जाए तो तोडऩा चाहिए। वृक्ष पर फलों को पकने नही देना चाहिए। तोडऩे की ऐसी विधी अपनानी चाहिए कि फलों में कोई खरोच या चोट न लगने जाए। कुछ फल तोड़कर उन्हें पानी में डुबोएं यादि फल डूब जाते है तो तोड़ लेना चाहिए। अपरिपक्व अवस्था में तोड़े गए फलों का स्वाद पकने पर अच्छा नहीं रहता है।

उद्यानिकी क्रियाएं
प्रवर्धन– वानस्पतिक विधि द्वारा किया जाना चाहिए। वानस्पतिक विधि में- भेट कलम, विनियार उपरोपण, बगली उपरोपण तथा पैबन्दी कलिकायन विधिया अपनानी चाहिए।
पौधा रोपण- आम के वृक्ष 10 मी. के अन्तर में लगाए जाते है। उचित अंतर से 1ङ्ग1ङ्ग1मीटर (लम्बा, चौड़ा, गहरा) गड्डा तैयार करते है। कुछ समय तक गड्डा खुला छोड़ दें जिससे उसे धूप लग जाए। प्रति गड्डा 50 किलो गोबर की खाद/कम्पोस्ट, आधा किलो सुपर फास्फेट और 1/4 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश मिट्टी में डालकर भर दें। दीमक की आंशका में 50 ग्राम फोरेट चूर्ण 5 प्रतिशत भी गड्डे में डाल दें। पौधे लगाते समय पौधा रोपण फलन का उपयोग करें, जिससे पोधा अपने उचित स्थान पर लगे।
पौधों को उतनी गहराई पर लगाएं जितनी गहराई पर वह पौधा नर्सरी व गमले था। जोड़ का स्थान कम से कम भूमि से 10 से.मी. उपर रहे।
मूलवृन्त और उपरोपिता शाखा का भाग दक्षिण पश्चिम दिशा की ओर रहे। पोध वर्षा आरम्भ या समाप्ती पर लगाना उचित रहता है अर्थात् जुलाई या सितम्बर में लगाना चाहिए। सायंकाल के समय पौधा लगाना उचित रहता है। पौधा रोपण के पश्चात् तुरन्त हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

आम के प्रमुख रोग – नियंत्रण

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *