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हरी खाद से उपज बढ़ायें

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निरंतर फसलें उगाने एवं असंतुलित उर्वरकों के उपयोग से हमारी मृदाओं में जीवांश तत्व एवं सूक्ष्म पोषक तत्व की कमी हो गई है ऐसी स्थिति में हरी खाद का उपयोग करना सस्ता और सरल तरीका है जिसे किसान भाई आसानी से कर सकते हैं। हरी खाद एक जैविक खाद है जिसमें फसल को हरी अवस्था में पकने से पहले जुताई कर पौधे को मिट्टी में मिला देते हैं जो जमीन में सड़कर जीवांश और पोषक तत्व पैदा करता है। हरी खाद में जितना अधिक पत्तियां एवं शाखायें (हरा तत्व) फसल से मृदा को अधिक मिलेगा उतना ही लाभकारी होगा। इसलिये हरी खाद की खड़ी फसल पर जल विलेय उर्वरक यूरिया फॉस्फेट 17-44 व एनपीके 18-18-18 छिड़काव करेंगे तो उसकी बढ़वार अधिक होगी जिससे कम समय में अधिक वायोमांश (हरा पदार्थ) प्राप्त होगा।
मृदा की उर्वरता बढ़ाने के लिये हरी खाद की फसल में निम्नलिखित गुण होना चाहिये।
1. फसल शीघ्र अंकुरण एवं बढ़वार वाली होना आवश्यक है जो खरपतवारों से प्रतिस्पर्धा कर उनको नियंत्रण करें।
2. फसल में हरी पत्तियां एवं शाखायें अधिक हों तथा मुलायम हों जो मिट्टी में शीघ्रता से सड़ गल जाये।
3. फसल ऐसी हो जिसके लिये अधिक खेत की तैयारी न करना पड़े एवं सभी प्रकार की जमीन में हो सके।
4. फसल सूखा एवं अधिक पानी सहन करने की क्षमता रखती हो। द्य फसल दो दालवाली हो जो पत्तियों एवं शाखाओं के अलावा जड़ ग्रंथियों में अधिक नत्रजन एकत्रित करें।
5. फसल का बीज आसानी से मिल सके तथा अधिक बीज उत्पादन करने वाली फसल हो।
6. फसल ऐसी हो जो फसल चक्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती हो।
7. शीघ्र सडऩे वाली एवं शीघ्र पोषक तत्व प्रदान करने वाली फसल हो।
8. फसल ऐसी हो जिसमें कीड़े बीमारी नहीं लगते हों।
उपरोक्त गुणों वाली फसल सनई, ढेंचा, एवं मूंग , उड़द आदि मुख्य फसल हैं जिनका उपयोग हरी खाद के लिये लाभकारी होता है सनई व ढेंचा का बुवाई समय जून-जुलाई सर्वोत्तम है बुवाई में सनई का बीज 50-60 किलोग्राम तथा ढेंचा का बीज 30-40 किलोग्राम प्रति हेक्टर पर्याप्त होता है।
जिन खेतों में धान की फसल रोपाई करना है या सब्जी उगाना है जून-जुलाई में सनई एवं ढेंचा की बुवाई कर दें जब आपकी धान की नर्सरी तैयार होगा तब तक आपका हरी खाद फसल भी तैयार हो जायेगी इसके बाद सनई रोटावेटर चला कर खेत में मिला दें उसके बाद रोपाई के लिये खेत तैयार करें।
हरी खाद से लाभ –
1. मिट्टी में जीवांश तत्व बढ़ता है जिससे मिट्टी की उर्वरता में बढ़ोतरी होती हो।
2. मिट्टी में जीवांश बढऩे भौतिक व रसायनिक दशा में सुधार होता है जिससे जल धारण क्षमता और वायु संचार अच्छा हो जाता है।
3. हरी खाद से नत्रजन प्रचुर मात्रा में तथा अन्य पोषक तत्व मिट्टी में उपलब्ध हो जाते है जिन्हें पौधे द्वारा आसानी से ग्रहण किया जाता है।
4. हरी खाद की फसल अंकुरण एवं बढ़वार शीघ्र होती है जिससे खरपतवार नियंत्रण भी हो जाता है।
5. खेत में जीवांश अधिक होने से लाभकारी कीट जैसे केंचुआ अधिक पनपते हैं क्योंकि उनका भोजन व आश्रय उपलब्ध होता है।
6. मिट्टी की जल धारण क्षमता बढऩे से फसल को लम्बे समय तक जल उपलब्ध होता है जिससे उत्पादन बढ़ता है।
7. मिट्टी का भारीपन (वल्क डेन्सिटी) कम होता है।
8. मिट्टी की जैविक क्रियायें तेज हो जाती हैं।
9. मिट्टी उर्वरता अच्छी होने से पौधों को सभी पोषक तत्व आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।

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