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सिंहस्थ 2016 के दौरान उद्यानिकी फसलों की अपार संभावनाएं

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उज्जैन के इस महाकुंभ में सब्जियों एवं फूलों की मांग चरम पर होगी जिसकी आपूर्ति हेतु देश के सब्जी एवं फूल उत्पादक किसान भाईयों का योगदान महत्वपूर्ण होगा। चूंकि इस आयोजन के अभी 4-5 माह का समय है इस बात को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के कृषकों को फसल उत्पादन में व्यापक फेरबदल कर इस स्वर्णिम अवसर का लाभ उठाते हुए फूल एवं सब्जी उत्पादन की योजना पर ध्यान देना होगा। फूलों की खेती की यदि बात करें तो गुलाब, गैलार्डिया, रजनीगंधा, मोगरा, कुंद, गेंदा आदि की खपत इस महापर्व में सबसे अधिक होगी। किसान भाई इसकी तैयारी हेतु गुलाब एवं रजनीगंधा के पौधों एवं कंदों की उन्नत किस्मों का रोपण यथाशीघ्र कर दें तथा गेलार्डिया, गेंदा, गुलदाउदी आदि के फूलों के उन्नतशील एवं संकर किस्मों के बीजों की व्यवस्था कर लें तथा जनवरी एवं फरवरी माह में 15 दिनों के अंतराल में नर्सरी में बीजों को बीजोपचार कर बो दें ताकि फरवरी एवं मार्च में पौधों का रोपण खेत में सुनिश्चित किया जा सके। कुंद एवं मोगरा आदि बेलदार पौधों का भी कृषक भाई चयन कर सकते हैं।

कुंभ के दौरान सब्जियों की खपत बहुत अधिक होती है। कृषक भाईयों को इसकी आपूर्ति हेतु व्यापक योजना बनाकर इस अवसर का लाभ लेना होगा। चूंकि इस पर्व का आयोजन अप्रैल एवं मई माह में हो रहा है। इसको ध्यान में रखकर सब्जियों का चयन करना होगा। इस हेतु कद्दू, लौकी, गिलकी, खीरा, ककड़ी कद्दूवर्गीय फसलें, भिण्डी, टमाटर, बैंगन, मिर्च, शिमला मिर्च, धनिया, पुदीना आदि फसलों को योजनाबद्ध रूप से उत्पादन श्रृंखला में शामिल किया जाना चाहिए। कद्दूवर्गीय सब्जियां विशेषकर कद्दू, कुम्हड़ा, खीरा, लौकी, करेला, टिंडा आदि की भण्डारण क्षमता अच्छी होने के कारण इनकी खपत अधिक होगी। इन फसलों के उन्नतशील अथवा संकर जातियों के बीजों की बुआई प्लास्टिक की थैलियों में फरवरी माह में करना उपयुक्त होगा ताकि इसका रोपण मार्च माह में खेत में किया जा सके। कद्दूवर्गीय फसलों से अच्छे उत्पादन के लिए इसकी दो एवं चार पत्ती अवस्था पर एन.ए.ए. हार्मोन का छिड़काव मादा फूलों की अधिकता सुनिशिचत करेगी तथा इनके फलों को फल मक्खी जिसके प्रकोप से फलों की गुणवत्ता प्रभावित होती है से सुरक्षित रखने हेतु मिथाईल यूजीनाल युक्त फल मक्खी प्रपंच का प्रयोग अवश्य करें। टमाटर, बैंगन, मिर्च, शिमला मिर्च आदि फसलों से अच्छा उत्पादन लेने हेतु इनके संकर रोगरोधी किस्मों के बीजों की बोनी जनवरी माह में नर्सरी में करें ताकि फरवरी माह के अंत तथा इनका रोपण खेत में किया जा सके। टमाटर, मिर्च एवं शिमला मिर्च के उत्पादन पर तापमान की अधिकता (अप्रैल एवं मई) का विपरीत प्रभाव पड़ता है इस बात के मद्दे्नजर इनकी रोपाई से पूर्व खेत में सिल्वर-ब्लेैक प्लास्टिक मल्च फिल्म बिछाकर रोपण करने से पौधों के जड़ क्षेत्र मे तापमान को कम किया जा सकता है तथा रसचूसक कीटों का भी नियंत्रण होता है एवं सिंचाई जल का वाष्पन न होने के कारण इसकी बचत होती है। मल्च फिल्म को टपक/ड्रिप सिंचाई पद्धति के साथ ही प्रयोग करना चाहिए। पुष्पन एवं फलन के समय तापमान की अधिकता होने पर फसल के ऊपर सफेद, काली अथवा हरे रंग की एग्रोशेड नेट का आच्छादन कर उत्पाद की गुणवत्ता में वृद्धि कर सकते है।

ऐसे कृषक भाई जो संरक्षित खेती जैसे पॉली हाउस/ग्रीन हाउस, शेड नेट हाउस में खेती करते है वे भी इस अवसर को ध्यान में रखते हुए पॉलीहाउस में टमाटर एवं शिमला मिर्च, को जनवरी तथा गाईनोसियस खीरा की मार्च प्रथम सप्ताह में रोपाई कर सकते हैै।
इसी प्रकार एग्रोशेडनेट हाउस में भी टमाटर, शिमला मिर्च, मिर्च, धनिया, पुदीना आदि की रोपाई 2 माह पूर्व कर अच्छा उत्पादन ले सकते है। एग्रोनेट का घनत्व 50 प्रतिशत तथा यह पराबैंगनी अवरोधी जाली का बना होना चाहिए। इसमें खुले खेत की अपेक्षा कम तापमान होने के कारण उत्पाद की गुणवत्ता उच्च कोटि की होती है। संरक्षित खेती में इस हेतु अनुमोदित किस्मों को ही लगाना चाहिए। इस प्रकार म.प्र. के कृषक भाई भी उद्यानिकी फसलों की समयबद्ध खेती कर इस महापर्व के दौरान होने वाली फूल एवं सब्जियों की मांग को पूरा कर प्रदेश एवं देश के इस आयोजन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है तथा उद्यानिकी फसलों द्वारा अपनी आजीविका भी सुनिश्चित कर सकते हैं।

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