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सब्जियों में खरपतवार की समस्या व समाधान

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सब्जियों में खरपतवार की समस्या अन्य फसलों से अधिक

  • सब्जी की फसल को अन्य फसलों की अपेक्षा प्रारम्भ में अधिक दुरी पर लगाते हैं जिससे खरपतवार की बढवार के लिए अनुकूल वातावरण प्राप्त होता है और वे अधिक वृद्धि करते हैं। जैसे धान 10 – 15 सेमी., खीरा 1& 2 मी., गेंहू 10 & 20 सेमी., करेला 1.5 & 2 मीटर।
  • सब्जी की फसलों को अधिक उर्वरक की आवश्यकता होती है जो खरपतवारों की वृद्धि को प्रोत्साहित करते हैं।
  • सब्जी में कम मात्रा में परन्तु थोड़े समय बाद ही सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है जिससे खरपतवारों के बीज आसानी से अंकुरित हो जाते हैं।
  • सब्जी के पौधों की बढ़वार धीरे होने से खरपतवारों को उगने में सहायता मिलती है।
  • सब्जी में किसान सामान्यत: अधिक मात्रा में सड़े गोबर खाद का प्रयोग करते हैं ये अंतत: खरपतवार की वृद्धि में सहायक होते हैं।
  • अधिकांश सब्जियां प्रारम्भ में धीमी गति से वृद्धि करने वाली होती हैं अत: वे खरपतवारों की वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती हैं। जब खरपतवारों की संख्या अधिक हो जाती है तो सब्जियाँ उनके साथ प्रतियोगिता नहीं कर पाती हैं।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार का उन्मूलन करना असंभव कार्य है क्योंकि इनका विस्तार एक खेत से दूसरे खेत में कई त्रिकोण से होता है जैसे बीज के द्वारा, जो फसल के बीजों में भी उपस्थित हो सकता है। कंदों, प्रकंदों तथा जड़ द्वारा, जो जमीन में काफी गहराई तक जा सकती है अत: हमें खरपतवार नियंत्रण पर ही ध्यान देना चाहिए। यदि फसल में उगने वाले खरपतवारों को समय से नियंत्रित नहीं किया जाये तो हमारी सारी पूंजी व मेहनत बेकार चली जाती है। अत: खरपतवारों को उचित समय पर सफलतापूर्वक तथा लागत को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए। अत: निम्नांकित विधियों को अपनाकर खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है।
निरोधी उपाय या बचाव विधि: इसके अंतर्गत वे सभी विधियां सम्मिलित हैं, जिनके द्वारा किसी क्षेत्र में नये खरपतवार के प्रवेश पर रोक लगाई जा सकती है तथा उन्हें होने से रोका जा सकता है :

  •     शुद्ध बीज का प्रयोग करें।
  •     सड़ी खाद का प्रयोग करें।
  •     खरपतवार मुक्त पशु चारे का प्रयोग करें।
  •     खरपतवार से प्रभावित क्षेत्रों में चरने वाले जानवरों को स्वच्छ फसल वाले क्षेत्र में जाने से रोकना।
  •     स्वच्छ उपकरण का उपयोग।
  •     खरपतवार प्रभावित क्षेत्र की मिटटी या बालू का प्रयोग न करना।
  •     सिंचाई नालियों को खरपतवार मुक्त रखना।
  •     खेत की मेड़ों को खरपतवार मुक्त रखना।

उन्मूलन : खरपतवार उन्मूलन में क्षेत्र से खरपतवारों के सभी जीवित अंगों तथा बीजों को पूर्णतया निष्कासित करते हैं। यह विधि आकर्षक होने के साथ-साथ काफी खर्चीली भी है। ऐसे कार्य के लिए ऐसे रसायन का मिट्टी में प्रयोग किया जाता है जिससे सभी खरपतवार प्रभावित हों, परन्तु कई बार यह व्यय भूमि की कीमत से भी अधिक हो जाता है। अत: उन्मूलन के तरीकों को छोड़कर नियंत्रण के तरिकों पर विशेष ध्यान देना लाभप्रद होता है।
नियंत्रण: खरपतवारों के संक्रमण को उस सीमा तक घटाना जिससे वे सब्जी की फसल के साथ प्रतियोगिता न कर सके तथा फसल उत्पादन पर कोई प्रभाव न पड़ सके एवं लाभप्रद उत्पादन संभव हो।
फसल एवं खरपतवार प्रतियोगिता विधि: इस विधि का मूल उद्देश्य है ऐसे उपाय किये जाये जिससे खरपतवारों की बढवार कम हो तथा फसलों को कम से कम हानि हो। इनमें निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है:
(क)     खेतों में खरपतवार से प्रतियोगिता रखने वाली फसल उगाना।
(ख)     तेजी से वृद्धि करने वाली किस्मों को लगाना ताकि खरपतवार की बढ़वार को रोक सके तथा उसे स्थान, हवा, पोषक तत्व तथा प्रकाश कम मात्रा में उपलब्ध हों।
(ग)    कम वृद्धि करने वाली सब्जियों के पौधे को आस – पास लगाना तथा बीज की मात्रा प्रति एकड़ बढ़ाकर उपयोग करना।
(घ)    साफ-सुथरे बीज बोना, जिसमें खरपतवार के बीज न हों तथा फसल चक्र अपनाना ताकि खरपतवारों को उगने में कठिनाई हों।
जैविक विधि : प्राकृतिक शत्रुओं को प्रयोग में लाना ताकि वे फसल के पौधों को नुकसान न पहुंचाए। इस विधि में सामान्यत: कीटों का प्रयोग किया जाता है जो खरपतवारों के फूल तथा फल एवं बीज को खाते हैं तथा फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाते।

रसायनिक विधि : खरपतवारों की वृद्धि को रोकने तथा उनको नष्ट करने के लिए रसायनों का प्रयोग आजकल काफी प्रचलित है तथा इससे न केवल फसल लगाने से पहले बल्कि खड़ी फसल में भी इसका प्रयोग किया जा रहा है। सब्जियों में खरपतवार नियंत्रण मुख्यत: हाथों से किया जाता है, परन्तु इसमें अधिक श्रम की आवश्यकता होती है जिससे उत्पादन लागत में काफी वृद्धि हो जाती है। आजकल शाकनाशी के प्रयोग पर काफी बल दिया जा रहा है पर सब्जियों में रसायनिक खरपतवार नियंत्रण कम पैमाने पर करना चाहिए। इसका कारण यह है कि सब्जियों को हम अपरिचित अवस्था में प्रयोग करते हैं जिससे हानिकारक रसायनों की कुछ मात्रा पौधों में रह जाती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है। किसानों को शाकनाशी के प्रयोग में काफी परेशानी भी आती है तथा यह शाकनाशी काफी महंगे है तथा किसानों को इन शाकनाशी की विस्तृत जानकारी भी नहीं होती है।
शाकनाशियों के प्रयोग के लिए आवश्यक पूर्व दशाएं

  •  संस्तुत मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए।
  •  प्रयोग से पहले उन पर लिखे निर्देशों को अच्छी तरह पढ़ लेना चाहिए।
  •  शाकनाशी के उपयोग से पहले या बाद में छिड़काव यंत्र को अच्छी तरह धोकर साफ कर लेना चाहिए।
  •  रसायनों को निकटवर्ती क्षेत्रों में बहकर जाने से रोकना चाहिए।
  •  छिड़काव यंत्र के टैंक तली में रसायन के घोल को बैठने से रोकने के लिए उसे निरंतर हिलाते रहना चाहिए।
  •  छिड़काव के दौरान गति नियंत्रित रखनी चाहिए जिससे समूचे क्षेत्र में छिड़काव समान रूप से हो।
  •  किसी मनुष्य पर शाकनाशी का कुप्रभाव पडऩे की दशा में स्थानीय डॉक्टर से तुरंत सम्पर्क करना चाहिए।
  •  रसायनों का प्रयोग करते समय नाक तथा मुंह को अच्छी तरह ढक लेना चाहिए।
  •  शाकनाशी का प्रयोग हवा की दिशा में तथा नोजल के साथ प्रयोग करना चाहिए।
  •  रसायनों का प्रयोग सुबह या शाम के समय करना चाहिए।
  •  मिट्टी में प्रयुक्त होने वाले रसायन को छिड़कने के बाद उस पर चलना नहीं चाहिए, क्योंकि रसायन की फिल्म के टूटने का डर रहता है।

खरपतवार नियंत्रण के महत्वपूर्ण पहलू

  • फसल उगने से पहले खेत की 2 – 3 गहरी जुताई करनी चाहिए। हो सके तो मिटटी पलटने वाले हल से एक जुताई करें।
  • साफ-सुथरे बीज का प्रयोग करना चाहिए, जिसमे खरपतवार के बीज न हो।
  • गर्मियों में खेत की गहरी जुताई तथा जुताई से पूर्व खरपतवार को जला देना चाहिए, जिसमें खरपतवार के बीज नष्ट हो जाएं।
  • अगेती किस्मों को उगाना चाहिए ताकि खरपतवारों को उगने का मौका न मिल सके।
  • तीव्र वृद्धि करना वाले किस्म का प्रयोग करना चाहिए।
  • उर्वरक का प्रयोग पौधों की जड़ों के पास ही करना चाहिए ताकि अधिक से अधिक पोषक तत्व पौधों को प्राप्त हो सकें ।
  • सिंचाई का प्रयोग तब करें जब फसलों को जलन हो तथा बहाव सिंचाई न कर थालों या नालियां बनाकर सिंचाई करें।
  • खरपतवारों के नियंत्रण के लिए शाकनाशी रसायनों का प्रयोग परिस्थिति को देखते हुए करें तथा उचित समय पर ही करें, जिससे अधिक से अधिक लाभ हो सके।
  • कार्बनिक मल्च (पलवार) का प्रयोग करें तथा आजकल काली पॉलिथिन मल्च का भी प्रयोग खरपतवार नियंत्रण के लिए हो रहा है।

यांत्रिक विधि:
(क)     हाथ से खरपतवार उखाडऩा : यह विधि व्यावहारिक है तथा इससे खरपतवार नियंत्रण छोटे क्षेत्र पर संभव है, अथवा ऐसे खरपतवारों को निकालना जो कृषि उपकरण के पहुंच से बहार हो।
(ख)     हैण्ड हो: पंक्तियों में लगाई गयी सब्जियों में इसका प्रयोग प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
(ग)    जुताई: फसल के पौध को खेत में लगाने से पहले 2 & 3 गहरी जुताई कर खरपतवारों की बढवार को नियंत्रित किया जा सकता है।
(घ)    कटाई : खरपतवार में बीज बनने से पहले या फूल आने की अवस्था में इस विधि का प्रयोग किया जा सकता है ताकि खरपतवारों की संख्या को अगले मौसम में नियंत्रित किया जा सके।
(ङ)    जलमग्नता: पड़ती या खली खेतों में पानी भरकर बहुवर्षीय खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है।
(च)    जलाना: इस विधि से खाली खेतों में उगे खरपतवार को तथा बीज या पौध लगाने से पहले जलाकर खरपतवारों को नष्ट किया जाता है।
(छ)    मल्चिंग का प्रयोग : अधिक दूरी पर लगाई जाने वाली सब्जी में मल्च बिछाकर खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है।
कृषि विधि: इस विधि में सस्य संवधि पद्धति अपनाकर खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है, इनमे ऐसी परिस्थिति पैदा की जाती है जिससे सब्जी में पौधे खरपतवारों की बढ़वार को दबाएँ रखें। इसके अंतर्गत निम्न पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं जो निम्न हैं।
(क)     फसलों का चयन।
(ख)    अच्छी बीज शैया का निर्माण।
(ग)    उचित फसल चक्र का प्रयोग।
(घ)    गर्मी में खेत को परती रखना।
(ङ)    ऐसी सब्जी तथा किस्मों का प्रयोग करना जो अधिक बढ़वार व फैलाव के कारण खरपतवारों को ढक लें।
(च)    फसल की तीव्र बढ़वार के लिए उचित समय पर रोपण – प्रतिरोपण करना चाहिए।

सब्जियों की फसल को खरपतवार से होने वाली हानि

  • खरपतवार, जल, वायु, सूर्य का प्रकाश तथा स्थान के लिए फसल के पौधों से प्रतियोगिता करते हैं तथा बढवार को प्रभावित करते हैं।
  • भूमि में उपस्थित पोषक तत्व तथा भूमि में प्रयोग किये गये उर्वरक को खरपतवार ग्रहण करते हैं जिससे फसल पोषक तत्वों का समुचित प्रयोग नहीं कर पाती है।
  • खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए अधिक मजदूर, नये यंत्र तथा रसायनिक दवाओं का प्रयोग करना पड़ता है, ये न केवल उत्पादन लागत को बढाते हैं बल्कि उत्पाद को भी प्रदूषित करते हैं।
  • रसायनिक दवाओं के प्रयोग से उत्पाद की गुणवता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • खरपतवार हानिकारक कीटों-जीवों आदि को प्रतिकूल तथा अनुकूल परिस्थितियों में आश्रम देते हैं जिससे फसलों में बिमारियों व कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है तथा उत्पादन में कमी आती है।
  • खरपतवार युक्त जमीन की कीमत घट जाती है।
  • खरपतवार मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं।
  • खरपतवारों में बड़े तथा अधिक संख्या में पत्ते निकलते हैं जो सब्जी के पौधों को छाया प्रदान करते हैं जिससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण प्रभावित होता है।

खरपतवार के मुख्य लक्षण

  •     ये प्राकृतिक रूप से स्थाई प्रवृति वाले होते हैं।
  •     ये एक, दो तथा बहुवर्षीय होते हैं।
  •     इनमें स्व पुनर्जीवित होने की क्षमता होती है।
  •     इनमें विषम परिस्थितियों में उतर जीवित रहने की वंसागत क्षमता पाई जाती है।
  •     इनमें फूल, फल तथा बीज जल्दी तथा अधिक संख्या में बनते हैं।
  •     इनमें परिपक्वता जल्दी आ जाती है।
  •     इनके बीज अगर अनुकूल परिस्थिति नहीं प्राप्त करते हैं तब भी काफी लम्बे समय तक स्वस्थ तथा योग्य अवस्था में भूमि में पड़े रहते हैं।
  •     यह फसलों की अपेक्षा प्रति पौधा लाखों की तादाद में बीज पैदा करते हैं।
  •     खरपतवार बीजों के अतिरिक्त अपने अन्य कायिक भागों से भी वंश वृद्धि करते हैं। जैसे- दूब घास तने से, हिरनखुरी जड़ों से, कांस प्रकंदों द्वारा तथा पत्तियों द्वारा भी कई खरपतवार उग आते हैं।
  •     कुछ की जड़ें काफी गहरी जाती हैं और वे अपनी राइजमों में काफी समय तक के लिए भोजन एकत्रित कर लेती हैं।
  •     इनके बीजों की बनावट, रंग, आकार सहचर फसलों के समान होता है जैसे प्याज व जंगली प्याज, सरसों तथा सत्यानाशी के बीज आकार-प्रकार में काफी मिलते-जुलते हैं।
  •     प्रतिकूल दशाओं में भी जैसे- कम नमी में, बंजर जमीन में, कीटों व रोगों के आक्रमण के बावजूद सब्जी की फसलों की अपेक्षा अच्छी वृद्धि करते हैं।
  •     इनके बीज विषम परिस्थितियों में भी अंकुरण क्षमता रखते हैं।
  •     इनको नियंत्रित करने के लिए अधिक मजदूर, विशेष उपकरण व रसायन की आवश्यकता होती है जो उत्पादन लगत को कम करती है।
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