Editorial (संपादकीय)

मिर्च पर वाइरस प्रकोप पर कम नहीं हुई होप

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इंदौर। संभाग के खरगोन, बड़वानी एवं धार जिलों में मिर्च की उपज ने खास जगह बनाई है, परंतु वाइरस ने सैकड़ों किसानों की फसल बर्बाद कर दी, वहीं उत्पादकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला। किसान भ्रमित हैं, आखिर वाइरस जैसी महामारी का हल क्या है? प्रदेश का कृषि अमला, उद्यानिकी अमला जो तरकीबें बता रहा है, वे जमीनी हकीकत से कोसों दूर है। इसके पीछे कारण, वायरस के प्रकोप को किसान तो ठीक विषय के वैज्ञानिक भी समझने में असमर्थ रहे हैं।
बड़े रकबे में प्रकोप
उद्यानिकी विभाग के अनुसार खरगोन जिले में 39 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मिर्च फसल ली जाती है। खरीफ सीजन 2014-15 के दौरान लगभग 33183 किसानों की 24 हजार 283 हेक्टेयर में फसल में वाइरस एवं थ्रिप्स आदि का प्रकोप हुआ। धार जिले में 28 हजार 692 में से 1975 किसानों की 824 हेक्टेयर, बड़वानी में 7051 में से 7984 किसानों की 5584 हेक्टेयर में मिर्च उत्पादन प्रभावित हुआ।
धार जिले के कुक्षी, मनावर, खरगोन के बेडिय़ा सूखी मिर्च के लिए तो बड़वानी का राजपुर ताजी मिर्च के लिए जाने जाते हैं। रतलाम जिले में लम्बे आकार वाली मिर्च का उत्पादन बहुतायत में होता है। किसान मिर्च से 50 हजार रु. से 3 लाख रु. प्रति एकड़ के हिसाब से आय अर्जित कर लेते हैं, लेकिन वाइरस के प्रकोप के चलते पिछले सीजन में मिर्च उत्पादक किसानों की कमर ही टूट गई।
करते रहेंगे मिर्च की खेती
कृषक जगत से चर्चा में किसानों का कहना है कि वाइरस लाइलाज बीमारी है। इससे कैसे निबटें, समझ के बाहर है। लेकिन, हर किसान का ये कहना है वह मिर्च की खेती से तौबा नहीं करेगा। बोरूद (मनावर तहसील) के श्री कमल कालू बरफा पिछले 15 वर्ष से मिर्च की खेती कर रहे हैं। वे कहते हैं पिछले सीजन में नर्सरी से ही वाइरस का प्रकोप रहाा। प्रभावित पौधों को नष्ट कर दिया। पहली तुड़ाई के पश्चात तो पूरी फसल प्रभावित हो गई। प्रभावी उपचार नहीं मिला। 9 एकड़ में 4 लाख रु. खर्च के पश्चात 7 लाख रु. की आय हुई। वे कहते हैं मनावर और कुक्षी तहसील में मिर्च की खेती इस वर्ष और अधिक बड़े पैमाने पर होगी। वे खुद भी 15 एकड़ रकबे में मिर्च लगा रहे हैं। बोरूद के ही श्री राजेंद्र बोरासी हम्मड़ पिछले 10-12 वर्ष से मिर्च की खेती कर रहे हैं। 10 एकड़ में 3.50 लाख खर्च करने के पश्चात उन्हें 11 लाख रु.की आय हुई। इस बार वे मिर्च का रकबा बढ़ाने जा रहे हैं। सिंघाना में पिछले 10 वर्ष से मिर्च की खेती कर रहे श्री लक्ष्मण भायल कहते हैं- वाइरस से खासी परेशानी आई। कोई विशेषज्ञ हल नहीं बता पाया। 12 एकड़ से उन्होंने 25.50 लाख रुपए की आय ली। मिर्च में नर्सरी से ही सावधानी रखें, मच्छर और मक्खी से बचाव करके ही वाइरस से बचा जा सकता है। इस सीजन में वे 12-13 एकड़ में मिर्च लगाएंगे। खरगोन के बडग़ांव के श्री सुनील पटेल कहते हैं अधिकांश खेतों में वाइरस का प्रकोप रहा, जो रोपा अवस्था से ही आया है। मैं इसके लिए नई दिल्ली के अलावा पूसा (हरियाणा) जैसे संस्थानों तक भटका, लेकिन प्रभावी निदान नहीं मिला। वैज्ञानिक जिस मृदा और पर्यावरण में प्रयोग करते हैं, हमारे खेत उससे काफी भिन्न हैं, उनके निदान कारगर नहीं होते। उन्होंने 5 एकड़ में मिर्च लगाई थी। बडग़ांव के ही श्री जयप्रकाश ने 6 एकड़ में मिर्च लगाई थी। वाइरस प्रकोप के चलते खर्च अधिक, आय कम हुई। छोटे आकार वाली किस्मों में प्रकोप कम हुआ। पहली तुड़ाई के बाद पत्तियां सिकुडऩे लगीं, फसल नष्ट हो गई। वे कहते हैं तापमान का विशेष ध्यान रखें तो प्रकोप से बच सकते हैं। बडग़ांव के ही श्री दिनेश कुशवाह बताते हैं, 4.5 से 5 फीट ऊंचाई तक हरे-भरे पौधे थे। इन पर फूल भी आए लेकिन फल नहीं बने। विशेषज्ञों की सलाह पर विभिन्न तरह के कीटनाशी, रोगनाशी, उर्वरकों द्वारा उपचार किया, किंतु लाभ नहीं मिला। विशेषज्ञों द्वारा अनुशंसित किस्में हमें उपलब्ध नहीं होती।
प्रकृति और प्रैक्टिस जिम्मेदार
पिछले सीजन में वाइरस प्रकोप के चलते कृषि-उद्यानिकी विभाग ने संज्ञान लिया और डॉ. सी. चटोपाध्याय (डायरेक्टर एनएनसीपीएम, आयसीएआर, नई दिल्ली), डॉ. ए.आर. सरदाना (प्रिसिंपल साइंटिस्ट एंटमोलॉजी आयसीएआर, नई दिल्ली), डॉ. ए. वर्गिस (डायरेक्टर एनबीएआईआर, बैंगलोर), डॉ. श्रीधर (प्रिंसिपल साइंटिस्ट आयआयएचआर बैंगलोर), डॉ. सिंह (कृषि महा., इंदौर), श्री अनुराग श्रीवास्तव तत्कालीन आयुक्त उद्यानिकी, श्री संजय दुबे आयुक्त इंदौर संभाग, श्री नीरज दुबे कलेक्टर खरगोन, श्री सतीश अग्रवाल संयुक्त संचालक कृषि इंदौर आदि ने ग्राम ढकलगांव एवं ंनवला (त.बड़वाह) में मिर्च की फसल का निरीक्षण किया। वायरस रोग विश्लेषक डॉ. व्ही.के. बारनवाल (आई.ए. आर.आई., नई दिल्ली) ने वायरस रोग की पुष्टि करते हुए इसके लिए प्रकृति और किसानों की कार्यशैली को कारण बताया।
निरीक्षण रिपोर्ट के तथ्य
निरीक्षण रिपोर्ट में बताया गया कि बीजों का उपचार न होना, अधिक समय तक नर्सरी में पौधों का रहना, मानसून की अनियमिता के साथ ही टमाटर, पपीता, अरहर एवं कपास जैसी फसलों को पास के खेत में बोने से व्हाइट फ्लाई की बढ़ोतरी हुई जिससे वाइरस तेजी से फैला। वहीं, किसानों ने कई प्रकार के कीटनाशकों का एकसाथ अत्यधिक मात्रा में छिड़काव किया, जिससे कीटों की सहनशीलता बढ़ी, परिणामस्वरूप वाइरस नियत्रंण संभव नहीं हो पाया। कृषकों को कृषि वैज्ञानिकों या विभाग के अमले के परामर्श से ही दवाइयों का छिड़काव करें।

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