Editorial (संपादकीय)

मंदी से जूझ रहा ट्रैक्टर बाजार

Share

किसानों के लिये यह उदासी भरा समय है। न केवल हाल की मूसलाधार बारिश ने फसलों को चौपट कर दिया है, बल्कि अनिश्चित मौसम ने भी खरीफ की पैदावार की उम्मीदों को कम कर दिया है, जिससे अनेक किसानों की आजीविका पर संकट पैदा हो गया है। इसके अलावा, बीज और मजदूरी की बढ़ती लागत के चलते, अधिकांश किसानों के लिये नये ट्रैक्टर खरीदने में पैसा लगाना घाटे का सौदा लग रहा है।
अभी कुछ ही समय पहले की बात है, जब ट्रैक्टरों की बिक्री जोरों पर थी। मात्र सात वर्षों में, इसकी बिक्री 303,000 से दोगुना बढ़कर 645,000 हो गई। आज, ट्रैक्टर की बिक्री में भारी गिरावट आई है।

ट्रैक्टरों को किराये पर देना आय का वैकल्पिक स्रोत
जे.डी. पावर एशिया पैसिफिक 2015 इंडिया ट्रैक्टर प्रोडक्ट परफॉर्मेंस इंडेक्स (टीआरपीपीआई) स्टडी में यह बताया गया है कि सर्वे में भाग लेने वाले एक-तिहाई से अधिक किसान अपने ट्रैक्टर्स को किराये पर देते हैं। भारत के कुछ सबसे अधिक गरीब राज्यों जैसे, बिहार (81 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल (71 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ (58 प्रतिशत) में ट्रैक्टर्स को सबसे अधिक किराये पर दिया जाता है। इस अध्ययन में शामिल चौदह राज्यों में पाया गया कि रेंटल मार्केट मेें 41-50 एचपी सबसे अधिक लोकप्रिय ट्रैक्टर है।
भारत में खेतों के आकार छोटे-छोटे है। लघु और सीमांत किसान जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है। और इन छोटे-छोटे खेतों में खेती की लागत बड़े खेतों की अपेक्षा काफी अधिक होती है, इसके अलावा न केवल इसकी परिचालन लागत अधिक होती है, इन छोटे खेतों से अपेक्षित कृषि पैदावार, बड़े परिचालनों की तुलना में काफी कम होती है। इसे यूं समझा जा सकता है, खेती करने वाले एक चौथाई छोटे किसान ट्रैक्टर चलाने से होने वाली अपनी वर्तमान आमदनीसमुचित मानते हैंं, जबकि एक-तिहाई से अधिक बड़े किसान इसे ठीक ही समझते हैं।
परिणामस्वरूप, बड़ी संख्या में (45 प्रतिशत) छोटे और मामूली किसानों के लिये अपने ट्रैक्टर्स को किराये पर देना वैकल्पिक आय का प्रमुख स्रोत है, जबकि बड़ी जमीन वाले किसानों (29 प्रतिशत) के लिये इस पर उनकी निर्भरता काफी कम है। यह खासतौर पर इसलिए लाभदायक है, क्योंकि दिन-ब-दिन ट्रैक्टर्स तकनीकी दृष्टि से अधिक से अधिक उन्नत हो रहे हैं और इनमें तरह-तरह के फंक्शंस और एप्लिकेशंस हैं, जो उन्हें गैर-कृषि उपयोग हेतु किराये पर देने के लिये उपयुक्त बनाता है।

किराये पर ट्रैक्टर्स देने की खामियां
हालांकि, ट्रैक्टर्स को किराये पर देना आकर्षक प्रस्ताव मालूम हो सकता है, लेकिन किसानों को आगाह जरूर किया जाना चाहिए कि इससे ट्रैक्टरों के दुरूपयोग के चलते उनके मेंटनेंस व मरम्मत कार्यों पर अधिक खर्च पड़ सकता है। इसका एक नुकसान यह है, जिससे लगभग अधिकांश ट्रैक्टर मालिकों को दो-चार होना पड़ता है, किराये पर दे देने के बाद, उचित तरीके से अपने मशीनों के उपयोग पर उनका नियंत्रण नहीं रह जाता है। रफ हैंडलिंग और ड्राइवर द्वारा इसके दुरूपयोग जैसी घटनाएं सामान्य हैं, जिसके चलते ट्रैक्टर समय से पहले ही खराब होने लगता है।
इसके चलते ट्रैक्टर निर्माताओं के सामने भारी चुनौतियां पैदा हो जाती हैं, चूंकि उन्हें अधिक संख्या में क्वालिटी संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है क्योंकि किसान अपने ट्रैक्टरों को किराये पर देते हैं। अध्ययन में पाया गया है कि किराये पर दिये जाने वाले ट्रैक्टरों की ब्रेकडाउन दरें किराये पर न दिये जाने वाले ट्रैक्टरों की ब्रेकडाउन दरों की अपेक्षा, दोगुनी होती है, जिसके चलते यह किसानों की जेब पर एक बोझ बन जाता है। औसतन, अपने ट्रैक्टर्स को किराए पर देने वाले मालिक प्रति 100 ट्रैक्टर्स कुल 262 समस्याओं की रिपोर्ट करते हैं (पीपी100), जबकि ट्रैक्टर किराये पर न देने वाले ओनर्स ने 174 (पीपी100) की रिपोर्टिंग की।

ट्रैक्टर किराए का निर्माताओं पर प्रभाव
ट्रैक्टर किराए का प्रभाव न केवल ट्रैक्टर की कथित गुणवत्ता पर पड़ता है, इसका महत्वपूर्ण प्रभाव ब्रांड लॉयल्टी और उस एडवोकेसी पर पड़ता है, जिसे ट्रैक्टर निर्माता किसी भी कीमत पर नजरदांज नहीं कर सकता है, क्योंकि इसका सीधा असर उनकी आय और मुनाफे पर होगा। हमारा अध्ययन बताता है कि ट्रैक्टर्स को किराये पर न देने वाले लगभग 50 प्रतिशत मालिक कहते हैं कि वे निश्चित तौर पर उसी ब्रांड का ट्रैक्टर खरीदेंगे। अपने ट्रैक्टर्स को किराये पर देने वाले ग्राहकों के मामले में, यह लॉयल्टी घटकर मात्र 40 प्रतिशत रह जाती है। ये सभी चीजें निर्माताओं व डीलर्स के लिये यह आवश्यक बना देती है कि वे ट्रैक्टर के ग्राहकों को उनकी मशीनों के विभिन्न एप्लीकेंशस के सही उपयोग एवं कंपैटिबिलिटी के बारे में बताएं।
हालांकि, इस अध्ययन से पता चला है कि मात्र 8 प्रतिशत ओनर्स को उनके अधिकृत डीलर द्वारा उनके ट्रैक्टर के रूटीन मेंटनेंस के लिये संपर्क किया जाता है। मंदी की मार झेल रहे कृषि बाजारों में, ट्रैक्टर डीलरों को यह अवसर प्राप्त है कि वे आफ्टर सेल्स मार्केट पर ध्यान देकर अपने लिये दोहरी जीत की स्थिति कायम कर सकते हैं। सर्विस सपोर्ट के मामले में सकारात्मक अनुभव प्रदान करने का उनके ब्रांड की छवि को बेहतर बनाने का सीधा प्रभाव हो सकता है।

आयशर जबलपुर संभाग में भी किराये पर उपलब्ध करायेगा ट्रैक्टर एवं कृषि यंत्र

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *