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बासमती उत्पादक राज्य के दर्जे के लिए मध्यप्रदेश के दावे पर होगा बाद में विचार

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भोपाल। बासमती उत्पादक राज्य का दर्जा हासिल करने की मध्यप्रदेश की लड़ाई को झटका लगा है। बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (आईपीएबी) चेन्नई ने म.प्र. के दावे को पेंडिंग रखते हुए आदेश दे दिया है कि वर्तमान में जिन सात राज्यों को बासमती चावल उत्पादक माना गया है, उन्हें मिलने वाली सुविधाएं दी जाएं।  मध्यप्रदेश के दावे पर पुनर्विचार किया जाएगा। बोर्ड ने इसके लिये छह माह का वक्त दिया है। ज्ञातव्य है कि दिसंबर 2013 में भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्रार (चेन्नई) ने म.प्र. के पक्ष में निर्णय दिया था। तब म.प्र. ने 1908 व 1913 के ब्रिटिश गजेटियर पेश किये थे, जिसमें बताया था कि गंगा और यमुना के इलाकों के अलावा मध्यप्रदेश के भी कुछ जगहों में भी बासमती पैदा होती रही है। एपीडा ने इसके खिलाफ आईपीएबी में अपील की थी। तब एपीडा ने कहा था कि जम्मू एंड कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचर प्रदेश,उ.प्र., पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के अलावा कहीं भी बासमती चावल का उत्पादन नहीं होता। बहरहाल बोर्ड ने सुनवाई के बाद गत दिनों सात राज्यों के पक्ष में निर्णय दे दिया गया।कृषि विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. राजेश राजौरा का कहना है कि प्रदेश के किसानों के हक की कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी। आईपीएबी के लिखित आदेश मिलने के बाद ही कानूनी राय लेकर चेन्नई हाईकोर्ट में अपील करेंगे।

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