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बगैर उबाले खाया जा सकता है बीज

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इंदौर। कुपोषण से लड़ रहे देश में उच्च गुणवत्ता के प्रोटीन युक्त सोया उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए सोयाबीन अनुसंधान निदेशालय (डीएसआर) ने इस तिलहन फसल की दो खास किस्में विकसित की हैं। इन किस्मों के बीजों को उबालने की जहमत उठाए बगैर सीधे खाया जा सकता है। अपनी इस खासियत के चलते यह किस्में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को खूब लुभा रही हैं। डीएसआर के निदेशक डॉ वी.एस. भाटिया ने बताया, ‘हमारे वैज्ञानिकों ने करीब छह साल के अनुसंधान के बाद सोयाबीन की दो नई किस्में एनआरसी.101 और एनआरसी.102 विकसित की हैं।
सोयाबीन की इन किस्मों के बीजों को सीधे खाया जा सकता है, जबकि इस तिलहन फसल की परंपरागत प्रजातियां सीधे आहार में इस्तेमाल नहीं की जा सकतीं।Ó
उन्होंने बताया, ‘सोयाबीन में क्यूनिट्ज ट्रिप्सिन इनहिबिटर (केटीआई) नाम का तत्व होता है। अगर कोई व्यक्ति सोयाबीन को कच्चा खाता है, तो यह तत्व उस व्यक्ति के शरीर में प्रोटीन के पाचन में मुश्किलें पैदा करता है। यही वजह है कि वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि सोयाबीन को 20 मिनट तक करीब 100 डिग्री सेल्सियस के तापक्रम पर उबालने के बाद ही आहार के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसा करने से केटीआई का असर खत्म हो जाता है।Ó भाटिया ने बताया, हमने अपने अनुसंधान के जरिए आनुवांशिकी में बदलाव कर सोयाबीन की दोनों किस्मों एनआरसी.101 और एनआरसी.102 को केटीआई से मुक्त कर दिया है। यानी इन किस्मों के बीजों को आहार में इस्तेमाल करने के लिए उन्हें उबालने की कोई जरूरत नहीं है।Ó
उन्होंने कहा, ‘सोयाबीन में 40 प्रतिशत उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन होता है। हम चाहते हैं कि देश में इसकी पैदावार को बढ़ावा दिया जाए, ताकि लोगों में प्रोटीन की कमी दूर करने में मदद मिल सके। इसी मकसद से हमने सोयाबीन की दो नई किस्मों एनआरसी.101 और एनआरसी. 102 विकसित की हैं। सोयाबीन की दोनों किस्मों के विकास के बारे में जानकारी मिलने के बाद निजी क्षेत्र ने इनमें तेजी से रूचि दिखाई है। श्री भाटिया ने बताया, ‘हमने सोयाबीन के खाद्य उत्पाद बनाने वाली दो बड़ी कंपनियों को इन दोनों किस्मों की तीन-तीन साल तक खेती के लिए लाइसेंस प्रदान किए हैं। हालांकि निजी क्षेत्र की कंपनियां भी हमसे इन किस्मों की खेती का लाइसेंस ले सकती हैं।Ó

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