Horticulture (उद्यानिकी)

नवजात बछड़ों के लिये खीस (कोलोस्ट्रम) का महत्व

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डेयरी उद्योग की सफलता उचित बछड़ा व बछड़ी प्रबंधन पर निर्भर करती है। युवा वंश का उचित प्रबंधन मृत्युदर को कम कर सकता है। इसमें खीस का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।

खीस क्या है- खीस एक गाढ़ा, पीला और मैमेरी ग्लैण्ड का प्रथम स्राव है, जो कि प्रजनन के तुरन्त बाद प्राप्त होता है। यह एक सामान्य दूध की तुलना में 4-5 गुना अधिक प्रोटीन और 10-15 गुना अधिक विटामिन-ए रखता है। यह कई प्रतिरक्षी, वृद्धि कारकों और आवश्यक पोषक तत्वों के साथ ट्रिप्सिन जैसे अवरोधक कारक भी रखता है। ये अवरोधक कारक खीस में उपस्थित एंटी बॉडी को बच्चे की आंत में होने वाले पाचन को रोकते है और एंटी बॉडी को बिना विघटित हुए सीधे ज्यों का त्यों अवशोषित कर लेती है।

खीस क्यों पिलाना चाहिए
1. खीस एंटी बॉडी का प्राथमिक स्रोत है तथा इसमें एंटी बॉडी पर्याप्त मात्रा में रहती है।
2. खीस में एन्जाइम अवरोधक होते है जो कि एंटी बॉडी को आंत में विघटित होने से बचाते हैं। जिससे ये ज्यों के त्यों अवशोषित हो जाते है।
3. खीस बछड़ों में डायरिया तथा न्यूमोनिया के जोखिम को कम करते हैं।
4. खीस वसा, प्रोटीन, विटामिन्स तथा खनिज का केंद्रित स्त्रोत होता है।
5. खीस में अनेक हार्मोन व विकास कारक होते हैं जो कि बछड़े के वृद्धि व स्वास्थ्य के लिये महत्वपूर्ण है।

खीस बछड़े को कब देना चाहिए
जन्म के बाद पहले घंटे के भीतर जितना जल्दी हो सके बछड़े को पिला देना चाहिए। क्योंकि नवजात बछड़े की आंतों में उसके जन्म के 24 घंटों तक प्रोटीन के बड़े अणुओं को अवशोषित करने की क्षमता रहती है।

कितनी मात्रा में पिलायें खीस
जन्म के पहले 6 घंटों में लगभग 2.5-3. लीटर या बछड़े के भार के 10 प्रतिशत के बराबर खीस पिला देना चाहिए।

खीस की गुणवत्ता की जांच कैसे करें
1. अच्छी गुणवत्ता के खीस में न्यूनतम 50 ग्रा. इम्युनोग्लोबुलिन (द्यद्दत्र) प्रति लीटर पाया जाता है।
2. इसका गुणात्मक अनुमान कोलोस्ट्रोमीटर द्वारा किया जाता है।
खीस की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले कारक

गाय की आयु- प्राय: बूढ़ी गायों में खीस, अधिक मात्रा में अच्छी क्वालिटी का पाया जाता है। तीन या अधिक ब्यात (लेक्टिन) वाली गायों में खीस सामान्यता अच्छी क्वालिटी का होता है।

सूखे की अवधि – तीन सप्ताह से कम सूखे अवधि में इम्युनोग्लोबुलिन (द्यद्दत्र) मोरी ग्लेड में इकट्ठा नहीं हो पाता है। इसलिये सूखी अवधि लंबी (3 सप्ताह से अधिक) होने पर बेहतर खीस प्राप्त होता है।
टीकाकरण – रोटा वायरस ई. कोली तथा बी.वी.डी. से टीकाकृत गायों के खीस में इम्युनोग्लोबुलिन (द्यद्दत्र ) अधिक पाया जाता है।

नस्ल : प्राय: अधिक दूध देने वाली गायों में खीस की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है। देशी गायों में संकर या विदेशी गायों की तुलना में बेहतर खीस पाया गया है।

खीस का भंडारण
1. अधिक क्वालिटी के खीस को ही भंडारित करें।
2. खीस को फ्रीज में एक सप्ताह तक भंडारित भी कर सकते है तथा डीप फ्रीज में करीबन एक साल तक भंडारित किया जा सकता है।
3. इस बात का ध्यान रखा जाए कि भंडारित खीस को पिघलाते समय 50 डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा तापमान न हो, अन्यथा इम्युनोग्लोबुलिन द्यद्दत्र (प्रोटीन) नष्ट हो सकते हैं।

कृत्रिम खीस
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी कारणवश माँ, बच्चे ब्याने के पश्चात खीस देती ही नहीं है या गाय की मृत्यु हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में अगर कोई और गाय आसपास में ब्याई हो तो उसका खीस पिलाया जा सकता है। अन्यथा बच्चे को कृत्रिम खीस (ताजा दूध-500 मिली., एक अंडा 55-60 ग्रा., गुनगुना पानी-300 मिली तथा अरंडी का तेल-1-2 चम्मच) घर पर बनाकर पिलाना चाहिए। कृत्रिम खीस दिन में तीन बार पिलाना चाहिए।
इस प्रकार बछड़ों का ऊपर बताई गई खीस प्रबंधन विधि को ध्यान में रखकर किसान भाई न केवल युवा वंश (बछड़ा व बछड़ी) की मृत्युदर को कम कर सकते हैं बल्कि भविष्य में होने वाले आर्थिक नुकसान से बच सकते हैं तथा एक बेहतर उत्पादन वाले डेयरी झुण्ड तैयार कर सकते है।

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