Editorial (संपादकीय)

नवजात बछड़े की देखभाल

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बछड़े के जन्म के बाद सबसे पहले उसके नाक  तथा मुंह में जो चिपचिपा पदार्थ जमा होता है उसे निकल दें। बाद में उसके बदन पर चिपके आवरण भी निकल दें और उसे एक साफ कपड़े से साफ करें और वह आवरण तथा कपड़ा गाय को सुंघा दें। इससे गाय को अपने बछडें की पहचान हो जाती  हैं  और वह उसे कभी नहीं भूलती। इसके पश्चात बछड़े को गाय के सामने एक साफ बोरी बिछाकर उस पर रख दें और गाय को उसे चाटने  दें। इससे बछड़े के शरीर में खून का संचार अच्छी तरह से होता है और वह तरोताजा हो जाता हैं। इससे गाय तथा बछड़े में प्य्यार का बंधन और मजबूत बनता है और दृढ़ होता है। इससे गाय अच्छी तरह दूध देती है।
जब गाय ब्याती है  तब नवजात बछड़ा माता के जननमार्ग  से बाहर निकल आता है तब यह नाभी सूत्र टूट जाता है। यह बछड़े के निचले हिस्से में लटका होता हैं अत: उसको धूल, कीचड़ आदी लग जाते हैं और धूल, कीचड़ में करोड़ों सूक्ष्म जीवाणु होते हैं।  जैसा कि पहले बताया  है कि यह नाभी सूत्र एक नली के माफिक होता हैं जो खुला होता हैं अत: उसके जरिये यह सूक्ष्म जीवाणु बछड़े के शरीर में प्रवेश कर कई संक्रमण पैदा करते हैं जिससे कई बछड़े जन्म के बाद बीमार हो जाते हैं और मर जाते हैं। इससे पशुपालक का काफी आर्थिक नुकसान हो जाता हैं। इसे रोकने का एक सीधा-सादा  उपाय यह है कि किसी भी जंतु नाशक दवा में एक मोटा सा धागा डूबोकर उसे बछड़े के शरीर से एक इंच दूरी पर कस  कर बांध दें। और बाद में नाभी सूत्र का निचला हिस्सा जंतु रहित चाकू या ब्लेड से काट दें। बाद में उस स्थान पर दो तीन दिनों तक लगाये। कुछ ही दिनो में नाभी सूत्र सूख जाता है।
इसके पश्चात बछड़े को चीक, खीस, चीका पिलायें। गाय ब्याने के बाद चार-पांच दिनों तक उसके थनों से एक चिपचिपा गाड़ा सा पदार्थ निकलता हैं जिसे चीक  खीस  या चीका  कहते हैं। यह प्रकृति का प्रदान किया हुआ एक तोहफा हैं क्योंकि जन्म के बाद कुछ दिन तक बछड़े की रोग प्रतिकारक शक्ति संपूर्ण रूप से विकसित नहीं होती उस काल में इस पदार्थ में मौजूद गामा कण बछड़े को कई तरह के संक्रमणों से बचाते हैं। अत: जन्म के आधे घंटे के भीतर यह चीक बछड़े को पिलाना बेहद जरुरी होता है। रोजाना दिन में दो या तीन बार बछड़े  के शरीर भार  का दसवां  हिस्सा  चीक उसे पिलावें ताकि उसका पोषण ठीक से हो और वह जिंदा रहे तथा स्वस्थ रहे। यानि अगर बछड़े का शरीर भार करीबन 20 किलोग्राम है तो उसे 24 घण्टे मे 2 किलोग्राम या 2 लीटर खीस पिलाना चाहिए।  जब बच्चा  गर्भाशय में होता हैं तब गर्भकाल में उसकी टट्टी उसके अंतडिय़ों में ही इकठ्ठा होती रहती है वह खीस पिलाने से उसके गुदाद्वार  से बाहर निकल जाती है और उसे तरोताजा महसूस होता है।  खीस  का  काल 1 से 5 दिन  तक  होता  है।  खीस का काल खत्म होने के बाद खीस का रुपांतरण सामान्य दूध में हो जाता हैं। रोजाना दिन में दो या तीन बार बछड़े  के शरीर भार  का दसवां  हिस्सा  दूध उसे पिलावें। यानी अगर बछड़े का शरीर भार बीस किलोग्राम है तो उसका दसवंा  हिस्सा यानी रोजाना दो किलो दूध उसे पिलावें।
बछड़े जब पन्द्रह दिन के हो जाते हैं तो उनके सामने कोमल पत्तियां या कोमल चारा जैसे बरसीम ए लूसर्न आदि डालना शुरू करें। शुरुआत में वो उसे सिर्फ सूंघते हैं। फिर धीरे-धीरे चबाकर देखते हैं, फिर धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा खाना शुरू करते हैं । इससे  उनके रोमंथी पेट का विकास तेजी से होता है और वह जल्दी  से चारा खाना शुरू करते हैं । इससे एक और दूध की बचत होती है वहीं दूसरी और उनकी बढ़वार  अच्छी होती है क्योंकि उन्हे दूध तथा चारा दो स्रोतों से पोषक द्रव्यों की आपूर्ति होती है।
बछड़े  को  तीन  माह  तक दूध  पिलायें।  इसके बाद  निम्न लिखित मिश्रण बनाकर बछड़े को रोजाना थोड़ा थोड़ा खिलायें।
अलसी    1 भाग
जव        2 भाग
मक्का         2 भाग
गेहूँ का भुसा     1 भाग
इसमें तांबा, लोह, मैग्नेशियम, मैगनीज आदि सूक्ष्म अन्न द्रव्य जो दूध में नहीं होते हैं वे अलग से डाल सकते हैं । उन्हे अलग आवास में रखें तथा साफ, ताजा पानी  पिलावें।
पहचान चिन्ह देना: पशु  शाला में  अच्छे  प्रबंधन के लिये अन्य पशु व  बछड़े-बछडिय़ों  को भी पहचान चिन्ह  देना बेहद जरुरी होता है। पहचान के लिये उनके कान मे टॅटूइंग  कर सकते है।  टॅटूइंग का मतलब यह है कि एक विशिष्ट चिमटे में लोहे के नंबर रख कर बछड़े के कान में  दबाकर लगाते  हैं और फिर ऊस पर टॅटूइंग स्याही लगाते हैं जो उन नंबरों  के निशानों मे बैठ जाती है और वहां वह नंबर गोदा जाता है। कुछ पशुशाला में  बछड़े के पहचान के लिये  ब्रॉण्डिंग किया जाता है। ब्रॅाण्डिंग का मतलब यह है कि एक लोहे की सलाख के एक सिरे  पर  कोई  नंबर जो शून्य से 10 तक होते हैं  लगे होते हैं उसको गर्म कर दाग लगाना। पहले पशु को एक क्रेट (लोहे के पाइप से बने  कठ्डे में) अच्छी तरह से बांध देते हैं। इसके बाद इस लोहे ही सलाख को लाल  होने तक गर्म  कर  पशु के पिछले पुठ्ठे पर दागते हैं जिससे वहा के बाल और चमड़ी कुछ हद तक जलकर वहां जलने जैसा नंबर का निशान बन जाता है। इसे गर्म   बा्रॅण्डिंग कहते   हैं। पहचान के लिये कुछ लोग कोल्ड बा्रॅण्डिंग करते हैं । इसमें एक लोहे ही सलाख  के एक सिरे  पर  कोई  नंबर जो शून्य से 10 तक होते हैं लगे होते हैं और उन पर एक विशिष्ट स्याही लगाते हैं और पशु के पुठ्ठे पर लगाते हैं जिस से वह नंबर वहां अंकित हो जाता है। कुछ  लोग बछड़े के गले में प्लास्टिक नंबर प्लेट लगाते हैं जिस पर  नंबर  अंकित होते हैं इन सबका अंकन एक रजिस्टर में किया जाता है। पहचान चिन्ह लगाने से निम्न लिखित कई लाभ होते हैं ।

  •  पशु का प्रबंधन ठीक से होता है ।
  •  पशु की सही उम्र का पता लगता है।
  •  पशु को बेचते समय उसकी जानकारी आसानी से प्राप्त हो जाती है।
  •  पशु को कोई बीमारी हुई तो उसको पहचानना आसान होता है, उसके इलाज – उपचार के बारे में जानकारी आसानी से प्राप्त हो जाती है।
  • अगर कोई पशु मर जाये तो उसकी जानकारी आसानी से प्राप्त हो जाती है।
  • पशु को अलग अलग पोषण आहार देना आसान होता है।
  • अगर पशु पर कोई प्रयोग करना है तो वह आसान होता है।

व्यायाम: बछड़ो को रोजाना सबेरे  शाम  बाड़े  से आजाद  कर खुला छोड़ दिया जाता है ताकि वे दौड़ सकें और उनका व्यायाम हो सके।

स्वास्थ्य प्रबंधन : बछड़ों की  पशु के डाक्टर द्वारा समय-समय पर जांच करवाकर उन्हे टीके लगवाएं और सुस्त या बीमार होने पर समुचित दवा दे। साफ-सफाई रखें।
इस प्रकार से बछड़ों का प्रबंधन करें तो किसान भाइयों को निश्चित तौर पर घर से ही अच्छे पशु  प्राप्त हो सकते हैं जिनकी उत्पादकता ज्यादा होती है और उनके पालन  द्वारा पशुपालन व्यवसाय किफायती बन सकता है। ध्यान रहे की सर्वोत्तम पशु ही किफायती पशुपालन और दुग्ध व्यवसाय की बुनियाद है और घर में पाले गए और तैयार किए गए पशु ही अच्छे होते हैं। बाजार से खरीदे गए पशु की कोई गारंटी नहीं होती है।

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