State News (राज्य कृषि समाचार)

जैविक खेत बनाने की नई तकनीकी का विकास

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रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से जमीन में उपस्थित कृषक मित्र कीड़ा (केंचुआ) मर चुका है, इस कृषक मित्र कीड़ा का कार्य यह था कि यह जमीन को भुरभुरी व पोली बनाता था, मिट्टी व फसल के अवशेषों को खाकर वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाता था, जिसमें सभी खेती के लिए आवश्यक पोषक तत्व पाये जाते थे जिससे जमीन नरम व कार्बनिक खाद युक्त बनती थी, जमीन में पानी सौंकने की ताकत बढ़ती थी खेत पथरीला होने से बचता था, जिससे उत्पादन बढ़ता था तथा उत्पाद का स्वाद भी अच्छा होता था।
लेकिन आज किसान की नासमझी व कम समय में ज्यादा उत्पादन लेने के उद्देश्य से अपनी जमीन में अंधाधुंध रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग करके खेतों की उर्वरताशक्ति को घटा दिया, जिससे अब खेतों की उत्पादकता भी लगातार घट रही है। खेत चट्टान बनकर बंजर होने की स्थिति में जा पहुंचे हैं।
समय रहते हुए वापस जैविक खेती की तरफ  किसान नहीं लौटा तो उसकी जमीन बंजर हो जायेगी और उसकी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर हो जायेगी।
जैविक खेत बनाने की विधि :
मार्च माह में करीब-करीब सरसों की कटाई और थ्रैसिंग हो जाती , थ्रैसिंग होने के बाद जो सरसों की तुली (भूसा) बचती है, उसको बेचे नहीं, उसको अपने खेतों में समान रुप से बिखेरकर (फैलाकर) और खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है। यह तुली नमी के कारण उस खेत में सड़कर प्राकृतिक केंचुओं को उनका भोजन उपलब्ध करा देती है और खरीफ की फसल बोने से पहले खेत की दो-तीन गहरी जुताई कर दी जाती है। जिससे केंचुए खेत को वर्मीकम्पोस्ट खाद देते हैं। अर्थात् सारा खेत वर्मीकम्पोस्ट युक्त बन जाता है उसको जैविक खेत कहा जाता है।
खरीफ  के मौसम में इन जैविक खेतों में दो महीने तक छाया बनी रहे इसके लिए बाजरा व तिल की फसल बोई जाती है जिससे वर्मीकम्पोस्ट खाद का अधिक उत्पादन हो जाता है फिर उसके बाद में रबी फसल मौसम में इन जैविक खेतों में आलू व सरसों या  गेहूं की फसल बो दी जाती है। जैविक खेत होने के कारण इन खेतों में आलू व सरसों या गेहूं का बम्पर उत्पादन होता है। आलू के रिकार्ड उत्पादन के साथ-साथ उसकी चमक भी देखने लायक होती है। और स्वाद भी बहुत अच्छा होता है।

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