Editorial (संपादकीय)

ग्वारपाठा में मुनाफा

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जलवायु – यह भारत के आमतौर पर सभी क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। इसको पानी की आवश्यकता बहुत कम है। अत: यह गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तथा हरियाणा के शुष्क क्षेत्रों में उगाया जा सकता है।
मिट्टी – इसकी खेती के लिये मोटी रेत वाली दोमट मिट्टी तथा कम उपजाऊ शक्तिशाली और लगभग 8.0 पी.एच. तक की जमीन उपयुक्त है। पानी के निकास का उचित प्रबंध अति आवश्यक है।
भूमि की तैयारी – 1-2 जुताईयाँ 20-30 से.मी. गहराई तक पर्याप्त हैं। जमीन को छोटे-छोटे समतल प्लाटों में बाँट लें।
खाद – 20-25 गाड़ी गोबर की खाद जमीन को तैयार करते समय अच्छी तरह मिला लें। लकड़ी की राख को बीजाई के समय और बाद में पौधों के चारों और डाल दें।
प्रजातियाँ
एलोय बारबेडेंसिस : यह मुख्य प्रजाति है जो अधिकतर क्षेत्रों में पायी जाती है।
एलोय इन्डिका : चेन्नई से रामेश्वरम क्षेत्र मेंपाई जाती हैं इसे छोटा ग्वारपाठा भी कहते हैं। आकार में 6-7 इंच से 1 फुट लम्बे तथा किनारे नुकीले होते हैं। बुखार आदि में उत्तम है।
एलोय रूपेसेन्स : लाल ग्वारपाठा के नाम से भी जानते हैं। नारंगी और लाल रंग के फूल आते हैं। पत्तों का नीचे का भाग बैंगनी रंग का होता है। इसका उपयोग पाचक के रूप में उदरशूल, आन्तों के कीड़ों के इलाज के लिये भी करते हैं।
जाफराबादी ग्वारपाठा – सौराष्ट्र के समुद्र तट के क्षेत्र में पाया जाता है। पत्ते तलवार के आकार के सफेद धब्बे होते हैं।
एलोय एबिसिनिका : काठियाबाड़ व खंबात की खाड़ी क्षेत्र में मिलता है। पत्ते अधिक चौड़े व पुष्प दण्ड अधिक लम्बा         होता है।
एलोय फीरोक्स : अफ्रीकी प्रजाति है। पौधा बहुत ऊँचा (9 से 10 फुट) तथा मोटी पत्तियों से युक्त होता है। इसके श्वेताभ पुष्पों से युक्त पुष्पदण्ड निकलता है।
बिजाई का समय – इसकी बिजाई सिंचित क्षेत्रों में सर्दी के महीनों को छोड़कर सारा वर्ष की जा सकती है। परंतु अच्छी पैदावार के लिये इसकी बिजाई जुलाई-अगस्त के महीनों में करें।
बिजाई का तरीका – तीन से चार महीनों के सकर चार-पांच पत्तों वाले लगभग 20-25 से.मी. लम्बाई 60&60 से.मी. की दूरी पर लगाने चाहिये। सकर के चारों तरफ  जमीन को अच्छी तरह से दबा दें। 12,000 से 14,000 सकर एक एकड़ जमीन के लिये पर्याप्त हैं।
अंतरवर्तीय फसलें – आँवला, गुग्गल, बेल या फलदार वृक्ष जैसे आम, नींबू, अनार, संतरा, किन्नो के मध्य अन्तर फसल के रूप में उगाने से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
सिंचाई – पहली सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद लगायें। 2 से 3 सिंचाई जल्दी-जल्दी दें ताकि सकर अच्छी तरह से स्थापित हो जाये। 4-6 सिंचाइयाँ हर वर्ष दें।
निराई-गुड़ाई –  बिजाई के एक मास बाद पहली गुड़ाई करें। 2-3 गुड़ाइयाँ प्रति वर्ष बाद में करें। खरपतवार बिल्कुल नहीं होने चाहिये। बीमारी वाले तथा सूखे पौधों को निकाल दें।
बीमारी व कीड़ें – अभी कोई बीमारी व कीड़ों का प्रकोप इस फसल पर नहीं पाया गया। कभी दीमक लग जाती है तथा छोटे कीट (मिली बग) आ जाते हैं। इसको रोकने के लिये हल्की सिंचाई करें।
कटाई – पौधे लगाने के एक वर्ष बाद हर तीन माह में प्रत्येक पौधे पर 3-4 छोटी पत्तियाँ छोड़कर शेष सभी पत्तियों को तेज धारदार हंसिये से काट लें। पत्तों की पैदावार एक बार लगाने से 5 वर्ष तक प्राप्त कर सकते हैं।
बाजार भाव – इसके ताजा पत्ते 2-3 रुपये किलो बिकते हैं। विदेशों में एलुआसार और जैल की बहुत माँग है। ठीक इसी तरह हमारे देश में भी निरन्तर माँग बढ़ती जा रही है।
पैदावार – औसतन 150-200 क्विंटल प्रति एकड़ ताजे पत्ते 2 वर्ष बाद की फसल से प्राप्त होते हैं, लेकिन अच्छी भांति देखभाल व सिंचाई पूर्ण रूप से हो तब उपजाऊ मिट्टी से 200 से 250 क्विंटल ताजा पत्ते प्रति एकड़ तक प्राप्त कर सकते हैं।
आमदनी – एक एकड़ से 150 क्विंटल ताजा पत्तियां 2 रुपये किलो कम से कम भी लगायें तो 30,000 रुपये की बिकीं जिसमें से कुल खर्चे के 6 से 8 हजार रुपये प्रति एकड़ निकालकर शुद्ध मुनाफा 20 से 22 हजार रुपये कमाया जा सकता है।

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