Editorial (संपादकीय)

खरीफ की तैयारी का समय

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मई माह के महत्वपूर्ण कृषि कार्य

पंचों, भीषण गर्मी का समय चल रहा हेै । अधिकांश जल स्त्रोत सूख गये है। सबसे ज्यादा मुसीबत पशुओं की है । जल संकट के ऐसे कठिन समय में, हमें पशुओं का विशेष ध्यान रखना होगा । जहां कहीं भी जल उपलब्ध हो, पशुओं के लिये सार्वजनिक व्यवस्था बनायें । मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से यह समय कुछ जरूरी सावधानियां बरतने का है। गर्म हवाओं के कारण, लू लगने की संभावना बनी रहती है। घर से बाहर काम पर निकलते समय, हमेशा कुछ खा-पी कर निकलें, खाली पेट लू का ज्यादा असर होता है। बीच-बीच में पानी अवश्य पीते रहें। तेज गर्मी में शरीर के अंदर का पानी पसीनें के रूप में, ज्यादा मात्रा में बाहर निकलता है, इसलिये इस मौसम में पानीं जितना ज्यादा पियेंगे, उतना ज्यादा अच्छा है। तेज धूप एवं गर्म हवाओं के बीच कान और चेहरा गमछे से ढ़के रहें । लगातार बहुत देर तक सायकल, विशेषकर तेज धूप में न चलायें। सायकल के सफर में बीच-बीच में छाया में सुस्ता लें ।

रबी फसलों की गहाई का कार्य भी अब लगभग समाप्ति पर है। सीमित खेतों में जायद (ग्रीष्मकालीन)फसलों के अलावा, इस समय आपके सभी खेत खाली रहते हैं। वास्तव में यह माह आने वाले खरीफ मौसम की तैयारी के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। आज की चौपाल में हम रबी में उत्पादित अनाज के सुरक्षित भण्डारण, खरीफ की खेती के लिये फार्म प्लॉन बनाने, मिट्टी परीक्षण, आदानों की अग्रिम व्यवस्था उद्यानिकी के अंतर्गत फलोद्यान स्थापित करने हेतु प्रारंभिक तैयारियां इत्यादि विषयों पर विस्तार से चर्चा करेंगें ।

कृषि फसलें :
सुरक्षित अनाज भण्डारण करें:- आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि देश की कुल कृषि उत्पादन का लगभग 10 (दस) प्रतिशत कीटों, चूहों, चिडिय़ों, फफूंद इत्यादि के कारण नष्ट हो जाता है। यह नुकसान खेतों से प्रारंभ होकर खलिहानों और भण्डारगृहों तक पूरे साल भर होता रहता है। ध्यान रखें अनाज की सुरक्षा, उत्पादन से ज्यादा महत्वपूर्ण है। इतनी मेहनत से पैदा किये गये अनाज को नष्ट होने से बचायें यह आपके अकेले की क्षति नहीं बल्कि राष्ट्रीय क्षति है। भण्डारित अनाज के दो ही प्रमुख शत्रु है। पहला – सीमा से ज्यादा नमी एवं दूसरा कीट-व्याधियां। अनाज को अच्छी तरह धूप में सुखा लें, फिर छायां में ठण्डा करने के बाद भण्डारण करें। कुठलों-कोठियों को अच्छी तरह साफ कर उनमें आई दरारों की मरम्मत करें। भीतरी एवं बाहरी दीवारों में कीटनाशक मेलाथियान 50 प्रतिशत ई.सी. 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। बोरों में भण्डारण कर रहें हों तो, इसी घोल से बोंरे भी उपचारित कर लें। लकड़ी के पटरों या मोटी पॉलीथिन शीट के ऊपर बोरों की छल्लियां, दीवार से एक हांथ हटकर लगायें। कुठलों में अनाज भरनें के बाद ई.डी.बी. या एल्युमिनियम फास्फाइड का प्रयोग कर प्रधूमन करें। प्रधूमन के पश्चात् यथाशीघ्र कुठलों को एयर टाइट बंद कर दें। बीजों के भण्डारण में कीटनाशक पावडर इत्यादि न मिलायें। इससे अंकुरण क्षमता में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं, बोरियों में भण्डारण में छल्लियां लगाते वक्त दो लांटों के बीच कम से कम एक हाथ चौड़ा निरीक्षण पथ रखें । इससे कीटनाशक छिड़काव इत्यादि में आसानी रहती है। भण्डारण की देशी विधियां भी जांची-परखी एवं प्रमाणिक है। भण्डारण की आधुनिक तकनीक अपना कर, आप संभावित क्षति को काफी सीमा तक कम कर सकते है। शासन ने भण्डारण क्षति को सीमित करनें के लिये ग्रामीण भण्डारण योजना के अंतर्गत भण्डार गृहों (गोदामों) के निर्माण में कृषकों एवं संस्थाओं के लिये अनुदान का प्रावधान रखा है। योजना का लाभ लेने के लिये जिले के कृषि कार्यालय या नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक से सपंर्क करें ।
खेती की योजना :- खरीफ फसलों की खेती का खेत वार प्लॉन (योजना) बनायें, अपनें खेतों की स्थिति और मिट्टी के प्रकार के अनुसार, फसल एवं किस्मों का निर्धारण करें। तद्नुसार बीज, बीजोपचार दवा, जीवाणु खाद, रसायनिक खाद, नींदानाशक दवा, कीटनाशक, इत्यादि आदान सामाग्रियों की, आवश्यक मात्रा का आकलन कर, उनकी सूची बना लें। स्वयं तैयार किया गया बीज ही ज्यादातर किसान बोते है, इसलिये थोड़े से रकबे में, लगभग एक एकड़ क्षेत्र में, आधार या प्रमाणित बीज को अपनी सूची में अवश्य स्थान दें। कीमत में ये थोड़े महंगे जरूर होते है लेकिन इनकी गुणवत्ता बहुत ऊंचे दर्जे की होती है। इन बीजों से तैयार फसल स्वस्थ्य एवं ज्यादा पैदावार देनें वाली होती है। जिसे आप अगली फसल में बीज के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। फार्म प्लॉन या आगामी खरीफ फसलों की योजना बनाने में, अपनें क्षेत्र के कृषि कार्यकर्ता से अवश्य परामर्श लें। भारी मिट्टी वाले बगार खेतों में सोयाबीन जैसी अच्छी आय देने वाली दलहन तिलहन फसलों की योजना अवश्य बनायें। निश्चित मानियें, व्यवस्थित और योजनाबद्ध रूप से खेती करनें में आपको बेहतर पैदावार प्राप्त होगी।
मिट्टी परीक्षण करायें:- कोई समस्याग्रस्त खेत हो, जहां पूरी मेहनत और लागत के बाद भी संतोषजनक पैदावार न मिलती हो, उन खेतों से मिट्टी का नमूना निकाल कर परीक्षण के लिये प्रयोगशाला भेजें। सामान्य खेतों से भी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये मिट्टी की जॉच कराई जा सकती है। खेतों की स्थिति (ऊंचाई, ढलान इत्यादि) एवं मिट्टी के प्रकार के अनुसार एक एकड़ क्षेत्र से लगभग आठ-दस स्थानों से नमूनें की मिट्टी निकालें । एकत्रित की गई मिट्टी को अच्छी तरह मिलाकर उसे गोल या चौकोर रूप में साफ स्थान पर रखें, फिर इसे चार बराबर भागों में विभक्त कर, दो विपरीत दिशा के भाग अलग कर बाहर कर दें। यह प्रक्रिया दो-तीन बार दुहराने पर लगभग आधा किलो मिट्टी बचती है। इसे कपड़ या पॉलीथिन की थैली में भरकर थैली के अंदर सूचना पत्रक, जिसमें कृषक का नाम, पता, सिंचाई साधन, पिछली एवं प्रस्तावित फसल की जानकारी भरकर, आवश्यक शुल्क के साथ अपने क्षेत्र के, कृषि कार्यकर्ता के पास जमा कर दें । खरीफ के पूर्व परीक्षण रिपोर्ट कृषि कार्यकर्ता के माध्यम से आपको प्राप्त हो जायेंगी।
जायद फसलों की देखभाल करें :- मूंग, उड़द, सूर्यमुखी, मंगफली, तिल इत्यादि फसलों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। फसल पकने के 15 दिनों पूर्व सिंचाई बंद कर दें। पूरी फसल अवधि में लगभग तीन-चार सिंचाईयों की जरूरत पड़ती है। रसचूसक कीटों का प्रकोप होने पर इमीडाक्लोप्रिड (जोश ) 5 मि.ली. प्रति स्प्रेयर (15 लीटर पानी) घोल बनाकर छिड़काव करें ।
उद्यानिकी फसलें:- अपने बाड़ी में लगे देशी बेर के वृक्षों में कलमी बेर की पैबन्द लगवानें के लिये उन्हें पांच -छ: फुट की ऊंचाई से कटवा दें। नई प्रस्फुटित शाखाओं में उन्नत किस्मों की पैबन्द लगवाने के लिये उद्यान विभाग की नर्सरी में संपर्क करें ।
फलोद्यान स्थापित करने की प्रारंभिक तैयारियों का यही समय है। पौधरोपण के लिये गड्ढे, इस समय तैयार कर लेना चाहिये। उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा प्रदेश के सभी विकासखण्डों में शासकीय नर्सरियां स्थापित है। वहां पदस्थ उद्याान अधीक्षक एवं उनके सहयोगी फलोद्यान स्थापना के कार्य में आपको सहयोग एवं मार्गदर्शन देगें। उनसे संपर्क करें एवं अपनी पसंद के फलदार पौधों के बगीचे लगायें और आने वाले समय में अच्छी आमदनी प्राप्त करें ।
ग्रीष्मकालीन सब्जियां- भिण्डी एवं समस्त बेल वाली सब्जी फसलें फलन-फूलन की अवस्था में है। भिण्डी की फसल को पीत शिरा रोग एवं बेल वाली सब्जियों की लाल कीड़ों से सुरक्षा के लिये एसिटामिप्रिड एवं सेविन कीटनाशकों का छिड़काव करें। भिण्डी के पीले पड़े पौधों को उखाड़ कर, खेत के किनारे मिट्टी में दबा दें । पंचों, आज की चर्चा यहीं सामाप्त करते है। अगली चौपाल में फिर भेंट होगी । तब तक के लिये पंचों सबको जय हिंद ।
– भानु प्रताप सिंह, पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक
प्रिया सिंह सस्य विज्ञानी कृषि क्लीनिक केन्द्र, शहडोल (म.प्र.)
मो. : 9300240113
Email : bhanupratap.445@rediffmail.com

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