Editorial (संपादकीय)

केंचुए किसानों के हलधर

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हम सभी अच्छी तरह जानते है कि भूमि में पाये जाने वाले केंचुए मनुष्य के लिए बहुपयोगी होते है। भूमि में पाये जाने वाले केंचुए खेत में पडे हुए पेड़ – पौधों के अवशेष एवं कार्बनिक पदार्थों को खा कर छोटी – छोटी गोलियों के रूप में परिवर्तित कर देते है जो पौधों के लिये देशी खाद का काम करती है। इसके अलावा केंचुए खेत में ट्रैक्टर से भी अच्छी जुताई कर देते हैं जो पौधों को बिना नुकसान पहुंचा, अन्य विधियों से सम्भव नहीं हो पाती। केंचुओं द्वारा भूमि की उर्वरता उत्पादकता और भूमि के भौतिक, रसायनिक व जैविक गुणों को लम्बे समय तक अनुकूल बनाये रखने में मदद मिलती है।
केंचुओं की कुछ प्रजातियां भोजन के रूप में प्राय: अपघटनशील व्यर्थ कार्बनिक पदार्थों का ही उपयोग करती है। भोजन के रूप में ग्रहण की गई इन कार्बनिक पदार्थों की कुल मात्रा का 5 से 10 प्रतिशत भाग शरीर की कोशिकाओं द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है और शेष मल के रूप में विसर्जित हो जाता है जिसे वर्मीकास्ट कहते है। नियंत्रित परिस्थिति में केंचुओं को  व्यर्थ कार्बनिक पदार्थ खिलाकर पैदा किये गए वर्मीकास्ट और केंचुओं के मृत अवशेष, अण्डे, कोकुन, सूक्ष्मजीव आदि के मिश्रण को केचुआं खाद कहते हैं। नियंत्रित दशा में  केंचुओं  द्वारा केंचुआ खाद उत्पादन की विधि को वर्मी कम्पोस्टिंग और केंचुआ पालन की विधि को वर्मीकल्चर कहते हैं।
वर्मीकम्पोस्ट की रसायनिक संरचना
वर्मीकम्पोस्ट में गोबर खाद की अपेक्षा 5 गुना नाइट्रोजन, 8 गुना  फास्फोरस, 11 गुना पोटाश और 3 गुना मैग्नीशियम तथा अनेक सूक्ष्म तत्व सन्तुलित मात्रा में पाये जाते है।
कृषि के टिकाऊपन में केंचुओं का योगदान
यद्यपि केंचुआ लंबे समय से किसान का अभिन्न मित्र हलवाहा के रूप में जाना जाता रहा है। सामान्यत: केंचुए की महत्ता भूमि को खाकर  उलट- पुलट कर देने के रूप में जानी जाती हैं जिससे कृषि भूमि की उर्वरता बनी रहती है। यह छोटे एवं मझोले किसानों तथा भारतीय कृषि के योगदान में अहम भूमिका अदा करता है। केंचुआ  कृषि योग्य  भूमि में प्रतिवर्ष 1 से 5 मि. मी. मोटी सतह का निर्माण करते है। इसके अतिरिक्त केंचुआ  भूमि में निम्न ढंग से उपयोगी एवं लाभकारी है।
भूमि की भौतिक गुणवत्ता में सुधार
केंचुए भूमि में उपलब्ध फसल अवशेषों को भूमि के अन्दर तक ले जाते हैं और सुरंग में इन अवशेषों को खाकर खाद के रूप में परिवर्तित कर देते हैं तथा अपनी विष्ठा रात के समय में भू- सतह पर छोड़ देते हैैं। जिससे मिट्टी की वायु संचार क्षमता बढ़ जाती है। एक विशेषज्ञ के अनुसार केंचुए 2 से 250 टन मिट्टी प्रतिवर्ष उलट- पुलट कर देते हैं जिसके फलस्वरूप भूमि की 1 से 5 मि. मी. सतह प्रतिवर्ष बढ़ जाती है।

  • केंचुओं द्वारा निरंतर जुताई व  उलट – पुलट के  कारण स्थायी मिट्टी कणों का निर्माण होता है जिससे मृदा संरचना में सुधार एवं वायु संचार बेहतर होता है जो भूमि में जैविक क्रियाशीलता, ह्युमस निर्माण तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए आवश्यक है।
  • संरचना सुधार के फलस्वरूप भूमि की जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है तथा रिसाव एवं आपूर्ति क्षमता बढऩे के कारण भूमि जल स्तर में सुधार एवं खेत का स्वत: जल निकास होता रहता है।
  • मृदा ताप संचरण व सूक्ष्म पर्यावरण के बने रहने के कारण फसल के लिये मृदा जलवायु अनुकूल बनी रहती है।

भूमि की रसायनिक गुणवत्ता एवं उर्वरता में सुधार
पौधों को अपनी बढ़वार के लिए पोषक तत्व भूमि से प्राप्त होते हैं तथा पोषक तत्व उपलब्ध कराने की भूमि की क्षमता को भूमि उर्वरता कहते है। इन पोषक तत्वों का मूल स्त्रोत मृदा पैतृक पदार्थ फसल अवषेष एवं सूक्ष्मजीव आदि होते हैं। जिनकी सम्मिलित प्रक्रिया के फलस्वरूप पोषक तत्व पौधों को प्राप्त होते हैं। सभी जैविक  अवशेष पहले सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित किये जाते है। अद्र्ध अपघटित अवशेष केंचुओं द्वारा वर्मीकास्ट में परिवर्तित होते हैं। सूक्ष्मजीवों तथा केंचुओं के सम्मिलित अपघटन से जैविक पदार्थ उत्तम खाद में बदल जाते है और भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ाते है।
भूमि की जैविक गुणवत्ता में सुधार – भूमि में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ, भूमि में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीव तथा केंचुओं की संख्या एवं मात्रा भूमि की उर्वरता के सूचक है। इनकी संख्या, विविधता एवं सक्रियता के आधार पर भूमि के जैविक गुणों को मापा जा सकता है। भूमि में मौजूद सूक्ष्मजीवों की जटिल श्रृंखला एवं फसल अवशेषों के विच्छेदन के साथ केंचुआ की क्रियाशीलता भूमि  उर्वरता का प्रमुख अंग है। भूमि में उपलब्ध फसल अवशेष इन दोनों की सहायता से विच्छेदित होकर कार्बन को ऊर्जा स्त्रोत के रूप में प्रदान कर निंरतर पोषक तत्वों की आपूर्ति बनाये रखने के साथ – साथ भूमि में एन्जाइम, विटामिन्स, एमीनो एसिड एवं ह्युमस का निर्माण कर भूमि की उर्वरा क्षमता को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है।

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