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कृषिगत उपायों द्वारा धान में कीट नियंत्रण

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कृषिगत उपाय इस तथ्य पर आधारित हैं कि अनेक हानिकारक कीटों की विभिन्न अवस्थायें जमीन के अंदर सुषुप्तावस्था में पड़ी रहती हैं। खेत की गहरी जुताई के अलावा कुछ इन उपायों को करें। धान की फसल में हरा माहो (जैसिड के नियंत्रण) के लिए कृषिगत खेतों के आस-पास तथा मेड़ों पर उग रही घास, खरपतवार आदि को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। कीट प्रकोप अधिक आद्र्रता वाले क्षेत्रों तथा देरी से पकने वाली धान की जातियों पर अधिक होता है। कीट प्रकोप अधिकतर सितम्बर से जनवरी तक रहता है। 70 से 80 प्रतिशत आर्द्रता और 25 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान कीट प्रकोप सक्रियता तथा वृद्धि के लिए अनुकूल परिस्थितियां होती हैं। जैसिड प्रतिरोधी जातियों को लगाना चाहिए।

सफेद पृष्ठ पौध फुदक (व्हाइट बैक्ड प्लांट हापर)
कीट धान की बोनी जातियों पर प्राय: प्रतिवर्ष आक्रमण करता है। इसके नियंत्रण के लिए यदि संभव हो तो पानी खेत से निकाल देना चाहिए तथा एक सप्ताह बाद फिर से पानी भर देना चाहिए।

गंगई मक्खी (गाल फ्लाई)
कीट धान का विशेषकर छत्तीसगढ़ क्षेत्र का खतरनाक शत्रु है। इसके नियंत्रण के लिए गर्मी में मेड़ों बंधानों पर से घास, खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए। गंगई मक्खी से ग्रसित खेत से पानी निकाल देने से गंगई मक्खी सूखे में जीवित नहीं रह पाती और उसका प्रकोप कम हो जाता है। पोंगों को देखते ही निकाल देना चाहिए। अधिक कीट ग्रसित क्षेत्रों में गंगई प्रतिरोधी जातियाँ जैसे समृद्धि आई.ई.टी. 3232, महामाया, आईआर 36 , आरपी 9-4, आशा अभया, सुलेखा, उषा, फाल्गुनी, बंगोली-5 आदि को लगावें।

गंधी बग कीट धान के फूल आने की अवस्था में अधिक सक्रिय हो जाता है और सितम्बर से दिसम्बर तक हानि पहुंचाता है। इसके नियंत्रण के लिए धान के खेत और मेड़ बंधान पर उग रही घास, खरपतवार को उखाड़ देना चाहिए। यथा संभव मध्य जुलाई तक धान की रोपाई कर देना चाहिए कपड़े के जाल से कीट को इकठ्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए।
खेत में पानी देते समय 15 से 20 लीटर क्रूड आइल इमल्सन या मिट्टी का तेल प्रति हैक्टेयर की दर से मिलायें और रस्सी या लम्बे बांस के दोनों सिरों को दो आदमी पकड़ कर फसल पर एक सिरे से दूसरे सिरे तक घुमा दें। जिससे गंधी बग के शिशु तथा व्यस्क पानी में मर जायेंगे इस उपाय से पत्ती खाने वाली विभिन्न प्रकार की इल्लियों तथा कीड़ों के नियंत्रण में सहायता मिलती है।
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धान के खेत में तना छेदक कीट के नियंत्रण के लिए फसल कटाई के बाद ठूंठों आदि को एकत्रित कर नष्ट कर दें, जिससे उनके अंदर छिपी इल्ली मर जायेगी। जिन खेतों में पौधों की मध्य कलिकायें सूख रही हों उन्हें इल्लियों सहित उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। नर्सरी से पौधे उखाड़कर रोपा लगाने के पहले पत्तियों के ऊपरी सिरों को काटकर नष्ट कर देना चाहिए इस कीट के अंडे अधिकतर ऊपरी सिरों पर रहते हैं।
धान की पत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले पत्ती मोड़क (लीफ रोलर) कीट से नियंत्रण के लिए खेत की मेड़ तथा बंधान में घास खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिए। ग्रसित पत्तियों को इल्लियों सहित एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए। प्रकाश प्रपंच लगाकर कीटों के साथ ही इस कीट के व्यस्क पंतंगों को भी आकर्षित कर नष्ट किया जा सकता है।
धान के टिड्डा या फाफा के नियंत्रण के लिए अप्रैल-मई माह में धान के खेतों के आस-पास की पड़त भूमि की जुताई कर देना चाहिए व मेड़ों और बंधानों को खरोच देना चाहिए।
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धान का बंकी (केस वर्म) कीट का प्रकोप देरी से रोपाई गई निचली सतह वाले खेतों में जिनमें पानी अधिक रहता है में होता है। नियंत्रण के लिए खेत तथा उसके आस-पास उग रही घास, खरपतवार को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। खेत में पानी की निकासी का उचित प्रबंध होना चाहिए। कीट ग्रसित खेत में पानी में लगभग 15 लीटर मिट्टी का तेल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलाकर पौधों को रस्सी या बांस द्वारा तेजी से हिला दें ताकि इल्लियां (खोल सहित) पानी में गिरकर मर जाएं। इसके बाद खेत से पानी निकाल दें। लगभग एक सप्ताह बाद दुबारा पानी भर दें। धान के स्किपर कीट की इल्ली अवस्था फसल के लिए हानिकारक होती है। कीट का प्रकोप मुख्य रुप से कंसे निकलने की अवस्था में रहता है। नियंत्रण के लिए कीट ग्रसित पत्तियों को इल्लियों सहित तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए।
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धान के हिस्पा कीट की शिशु (ग्रब) तथा व्यस्क दोनों अवस्थाओं फसल को हानिकारक होती हैं। इस कीट के नियंत्रण के लिए धान के पौधों को नर्सरी से उखाड़ते समय पत्तियों के ऊपरी सिरों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए। ताकि पत्तियों के सिरों के पास दिये गए अण्डे नष्ट हो जायें। खेत के आस-पास मेड़ों, बंधानों पर उग रही घास, खरपतवार को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। जाल से व्यस्क बीटल्स को एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए।
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धान का भूरा पौध फुदक (ब्राउन प्लांट हापर) कीट के शिशु व व्यस्क दोनों पौधों का रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं। जिसके फलस्वरुप पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और अंत में पौधे कमजोर होकर सूख जाते है। नियंत्रण के लिए खेत में पानी के निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
धान का स्वार्मिंग इल्ली कीट का आक्रमण धान पर छोटी अवस्था से ही प्रारंभ हो जाता है, जबकि पौधे नर्सरी में होते हैं। नियंत्रण के लिए खेत तथा मेड़ के घास तथा खरपतवारों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। इल्लियों को जाल में एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए।
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धान के फौजी कीट (आर्मी वर्म या क्लाइम्बिंग कटवर्म)
की बड़ी विशेषता यह है कि जब फसल पकने को होती है तभी इससे सर्वाधिक हानि होती है। नियंत्रण के लिए फसल कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई कर देना चाहिए ताकि भूमि में स्थित कीट कोष नष्ट हो जायें।
धान की फसल में कीट नियंत्रण हेतु किसान भाई जल प्रबंध पर अवश्य ध्यान दें। यदि फसल पर भूरा माहो, सफेद माहो, चितरी एवं बंकी का प्रकोप अधिक हो तो खेत से पानी निकाल दें तथा 7-8 दिन बाद दुबारा पानी लगायें। ऐसा करने से इन कीटों का प्रकोप कम होता है। इसके विपरीत यदि कटुवा कीट का आक्रमण अधिक हो तो खेत में पानी भर दें, जिससे पौधे के निचले भाग में इनकी शंखियां तथा इस कीट की समूह में आक्रमण करने वाली इल्ली भी नष्ट हो जाती हैं।

वेज्ञानिकों द्वारा अनुशंसित नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और जिंक की संतुलित मात्रा को रोपाई के समय दें। नाइट्रोजन की आवश्यकता से अधिक मात्रा उपयोग करने से कीट (पौधे के हरे भाग को क्षति पहुंचाने वाले) का प्रकोप अधिक हो तो नाइट्रोजन का प्रयोग रोक दें। तथा 15-20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से अतिरिक्त रुप में खेत में डालें। ऐसा करने से पौधों में कीट प्रकोप (नुकसान) सहने की क्षमता में वृद्धि होती है।

आम के प्रमुख कीटों का समुचित प्रबंधन

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