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कृषकों को कचरे से जैविक खाद तैयार करने की सलाह

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भोपाल। जैविक खेती मृदा की उर्वरता एवं फसल की उत्पादकता बढ़ाने में पूर्णत: सहायक है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में जैविक खेती की विधि और भी अधिक लाभदायक है। जैविक विधि द्वारा खेती करने से उत्पादन की लागत कम होने के साथ ही कृषकों को अधिक आय प्राप्त होती है। पर्यावरण स्वच्छता, भूमि की उर्वरता शक्ति का संरक्षण एवं मानव स्वास्थ्य के लिये भी जैविक खेती की राह अत्यंत लाभदायक है। कृषकों को इस संबंध में सलाह दी गई है कि वे अपने ग्राम में उपलब्ध स्थानीय कूड़ा, वानस्पतिक कचरा, फसल अवशेष आदि का उपयोग कर नाडेप खाद, वर्मी कम्पोस्ट आदि के माध्यम से सरल, सस्ती और कम समय में उन्नत जैविक खाद तैयार करें। गोबर अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसे कंडे बनाकर व्यर्थ न करें, बल्कि इसका उपयोग वानस्पतिक कचरे को सड़ाने में करें। जैविक खाद की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये कल्चर या बायोगैस स्लरी को मिलाया जाये। नाडेप एवं वर्मी कम्पोस्ट को पक्के टांके में ही तैयार करना आवश्यक नहीं है, बल्कि सरल तरीके से उपलब्ध कूड़ा, वास्तविक कचरा, फसल अवशेष आदि को छावदार स्थान में इक कर गोबर के साथ सड़ाकर नाडेप खाद तैयार की जा सकती है।

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