सोयाबीन उत्पादकता बढ़ाना चुनौती : श्री जे.पी. सिंह
इंदौर। पिछले पांच वर्षो में सोयाबीन की कीमतों में कमी नहीं आई है, इसका कारण है लगातार इसकी निर्यात मांग बनी रहती है। इस वर्ष सोयाबीन की एमएसपी 2600 रु. निर्धारित की गई है। देश में सोया तेल का आयात निरंतर बढ़ रहा है, जिसकी आपूर्ति के लिए सोयाबीन की उत्पादकता बढ़ाना एक चुनौती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद- सोयाबीन अनुसंधान निदेशालय, खंडवा रोड इंदौर (म.प्र.) एवं कृषि एवं सहकारिता विभाग, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के तत्वावधान में सोयाबीन फसल पर कृषि प्रदर्शनी एवं मेला के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उक्त बात डॉ. जे.पी. सिंह (सलाहकार कृषि एवं सहकारिता विभाग, नई दिल्ली) ने कही। कार्यक्रम में डॉ. टी.पी. सिंह (सहायक आयुक्त, कृषि एवं सहकारिता विभाग, नई दिल्ली), डॉ. एस.के. झा (प्रधान वैज्ञानिक, भा.कृ.अनु.परि. नई दिल्ली), श्री सतीश अग्रवाल संयुक्त संचालक कृषि इंदौर, डॉ. ए.के. तिवारी (निदेशक, भारतीय दलहन विकास निदेशालय, भोपाल), डॉ. वी.एस. भाटिया (निदेशक सोयाबीन अनु. निदेशालय, इंदौर) एवं प्रगतिशील किसान श्री केवलसिंह पटेल (हातोद) एवं श्री प्रशांत पाटिल, निदेशालय के डॉ. अमरनाथ शर्मा, डॉ. एम.पी. शर्मा, वैज्ञानिकगण एवं महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात एवं मध्यप्रदेश के सैकड़ों किसान उपस्थित थे।
डॉ. शर्मा ने बताया कि केंद्र सरकार ने कृषि मंत्रालय का नाम बदलकर कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय कर दिया है। उन्होंने कहा हालांकि वैश्विक उत्पादकता की तुलना में भारत की सोयाबीन उत्पादकता कम है, लेकिन विदेशों में लंबी अवधि वाली किस्मों का उत्पादन होता है, वहीं भारत में 90 से 110 दिन में सोयाबीन फसल तैयार हो जाती है, इस प्रकार सोयाबीन के साथ अगले मौसम की फसलों का उत्पादन जोड़ दें तो हमारी उत्पादकता वैश्विक उत्पादन की तुलना में कहीं अधिक है। देश में 55 से 60 मिलियन टन सोया तेल आयात किया जा रहा है। जो कि भविष्य में और बढ़ेगा। इस चुनौती का सामना करने के लिए उत्पादकता बढ़ाना होगी। डॉ. टी.पी. शर्मा ने कहा वर्ष 2014-15 में देश में 105 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ है। वहीं, इस वर्ष लगभग 112 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में सोयाबीन की बोवनी की गई है। डॉ. झा ने कहा जलवायु की प्रतिकूलता एवं सही बीज की उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती है। हमें सीड विलेज कान्सेप्ट अमल में लाना होगा। श्री सतीश अग्रवाल ने कहा कि वर्तमान में किसानों को यंत्रीकरण अपनाना होगा। वहीं सोयाबीन की बीज दर पर विशेष ध्यान केंद्रित करना होगा। डॉ. ए.के. तिवारी ने कहा किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए स्थानीय पहल पर ध्यान देना होगा। किसानों को आधार बीज देकर कृषि विज्ञान केंद्रों को तकनीक स्थानांतरण करना होगा। पिछले दो वर्षों से बीज की समस्या सामने आई है। उड़द एवं मूंग के बीजों की भी समस्या उभरी है। अंत में केंद्र निदेशक श्री भाटिया ने कहा कि हम सोयाबीन की सक्सेस स्टोरी हैं। सोयाबीन की अवधि बहुत कम होती है। किसान सही तकनीक का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं, अन्यथा उत्पादन क्षमता 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की जा सकती है। मेले के दौरान श्री भाटिया ने सोयाबीन निदेशालय की मोबाइल सेवा एवं वेबसाइट का लोकार्पण किया। स्वागत निदेशालय के डॉ. एस.डी. बिल्लोरे ने, कार्यक्रम का संचालन डॉ. दुपारे ने एवं आभार डॉ. दिलीप रत्नपारखे ने किया।