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सूरजमुखी की चमक

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सूरजमुखी एक प्रमुख तिलहनी फसल है सूरजमुखी की खेती वर्ष भर की जा सकती है, परंतु इसे जायद की फसल में लगाने से अधिक उपज ली जा सकती है। सूरजमुखी में आलू, जई, मटर, पिछेती अरहर के बाद जायद में बोया जा सकता है। जायद में बोई गई सूरजमुखी की फसल पर प्रमुख कीट-बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है व खरपतवारों की समस्या भी नहीं रहती है। फूल आने के समय मधुमक्खियां प्राकृतिक रुप से बहुत सक्रिय होती हैं व परागण में बहुत सहायक होती हैं जिससे पूरे फल में दाना भरता है, परिणाम स्वरूप पैदावार में वृद्धि तथा बीजों से अधिक तेल प्राप्त होता है।
भूमि का चुनाव- सूरजमुखी की फसल हर प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है, जहां पर पानी निकास का अच्छा प्रबंध हो।
प्रमुख किस्में- सूरजमुखी की एक मात्र किस्म मार्डन बहुत लोकप्रिय है परंतु अब कई संकर किस्में भी उपलब्ध हैं जैसे बीएचएस-1, केबीएसएस-1, ज्वालामुखी, एमएसएफएच-17, सूर्या आदि।
बुवाई का समय एवं विधि- सूरजमुखी की फसल प्रकाश संवेदी है अत: इसे वर्ष में तीन बार (रबी, खरीफ एवं जायद ऋतु) में बोया जा सकता है। जायद मौसम में सूरजमुखी को फरवरी के प्रथम सप्ताह से फरवरी के मध्य तक बोना सबसे उपयुक्त होता है, जायद मौसम में कतार से कतार दूरी 45 सेमी व पौध से पौध दूरी 25-30 सेमी की दूरी पर बुवाई करें।
खाद एवं उर्वरक- बुवाई से पूर्व 7-8 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर खाद भूमि में खेत की तैयारी के समय खेत में मिलायें व अच्छी उपज के लिए सिंचित अवस्था में यूरिया 130 से 160 किग्रा, एसएसपी 375 किग्रा व पोटाश 66 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। नाइट्रोजन की 2/3 मात्रा व स्फुर एवं पोटाश की समस्त मात्रा बोते समय प्रयोग करें एवं नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा को बुवाई के 30-35 दिन बाद पहली सिंचाई के समय खड़ी फसल में देना लाभप्रद पाया गया है।
सिंचाई- जायद में बोयी गई (फरवरी माह में) सूरजमुखी की फसल में 3 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद करें व इसी अवस्था में नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा का उपयोग करें द्वितीय सिंचाई 20-25 दिन बाद फूल आने की अवस्था में करें एवं अंतिम सिंचाई बीज बनने की अवस्था में करें।
कीट नियंत्रण- प्राय: सूरजमुखी की फसल पर एफिड्स, जैसिड्स, हरे रंग की सुंडी व हेड बोरर का प्रकोप अधिक होता है। रस चूसक कीट, एफिड्स, जैसिड की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 125 ग्राम प्रति हेक्टेयर या एसिटामिप्रिड 125 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें व सुंडी व हैड बोरर के नियंत्रण के लिए क्विनालाफॉस 20 प्रतिशत 1 लीटर दवा को या प्रोफेनोफॉस 50 ईसी 1.5 लीटर दवा को 600-700 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कें।
रोग नियंत्रण- सूरजमुखी की फसल में मुख्यत: रतुआ, डाऊनी मिल्ड्यू, हेड राट, राइजोपस हेड राट जैसी समस्याएं आती हंै। पत्ती झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु मेन्कोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
फसल सुरक्षा- सूरजमुखी में बहुधा तोते सर्वाधिक नुकसान पहुंचाते हैं। तोते प्राय: दाने पडऩे की अवस्था से लेकर दाने पकने की अवस्था तक (एक माह) अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।
कटाई एवं गहाई- फसल की कटाई उस समय करें जब कि फूल का पिछला हिस्सा नींबू जैसा पीला रंग का हो जाये और फूल झड़ जाये तो फसल तैयार समझना चाहिए। इस स्थिति में फूल को काटकर खलिहान में लायें व 3-4 दिन खलिहान में सूखने के बाद डंडों से पीटकर बीज निकालें।
उपज- सूरजमुखी की फसल 90-105 दिन में पककर तैयार हो जाती है व उन्नत विधि से उत्पादन करने पर 18-20 क्विंटल/ हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

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