State News (राज्य कृषि समाचार)

सार्ड ने भी किया विरोध

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इसी कड़ी में भोपाल की सार्ड संस्था ने भी कड़ा विरोध जताया है। संस्था के अध्यक्ष डॉ. जी.एस. कौशल के नेतृत्व में गत दिनों बैठक का आयोजन किया गया तथा सर्वसम्मति से जमीन देने के विरोध में प्रस्ताव पारित किया गया। इस मौके पर संस्था के सदस्य सर्वश्री एस.डी. तिवारी, एस.के. मनराल, डॉ. साधुराम शर्मा, डॉ. एम.के. टेडिया, के.एन. दुबे एवं श्री एस.एस. भटनागर सहित कई अन्य सदस्य उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री को संबोधित इस प्रस्ताव में कहा गया है कि कृषि महाविद्यालय की यह भूमि ब्रिटिश शासन के समय से ही कृषि अनुसंधान के लिये चिन्हित है। इस भूमि पर ब्रिटिश गर्वमेन्ट के समय इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्रीज स्थापित था जिससे देश की मध्य क्षेत्र के लिए कपास, गेहूं तथा दलहनों पर अनुसंधान होते रहे हैं एवं कपास के इंदौर में किये गये अनुसंधान के परिणामस्वरूप ही देश के मध्य क्षेत्र में कपास की खेती के विकास की संभावनाएं विकसित होती रही हैं। इस भूमि पर इंस्टीट्ूयूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्री द्वारा कम्पोस्ट बनाने के प्रयोग किये जाते रहे हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 1930-35 के बीच महात्मा गांधी जब इंदौर आये थे तब उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्री में कम्पोस्ट बनाने की विधि को देखकर उसे सराहा था।
1 नवम्बर 1956 को मध्यप्रदेश के गठन के बाद इस भूमि पर मध्य क्षेत्र के लिये शुष्क कृषि के अनुसंधान होते रहे तथा इस क्षेत्र की महत्ता को देखते हुए शासन ने कृषि महाविद्यालय स्थापित किया एवं इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्री की भूमि कृषि कॉलेज को स्थानान्तरित की गई। कृषि महाविद्यालय के खुलने के बाद अभी तक अध्ययनरत लगभग 2500 से अधिक विद्यार्थी एवं 100 से अधिक वैज्ञानिक शिक्षक प्रायोगिक अनुसंधान करते रहे हैं। कृषि महाविद्यालय की इस भूमि पर शासकीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा स्थापित गेहूं अनुसंधान क्षेत्र में गेहूं की नई कठिया प्रजाति की किस्में जैसे (एचडी 4271, एचडी 4672 आदि विकसित की हैं जिनकी विश्व बाजार में एक्सपोर्ट वैल्यू है।  इसी भूमि पर किये गये अनुसंधान/प्रयोग के आधार पर इंदौर तथा आसपास के क्षेत्र में मटर, आलू, प्याज, लहसुन, भिंडी जैसी महत्वपूर्ण साग-भाजी की कृषि क्षेत्र एवं उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यदि यह भूमि अधिकृत की जाती है तो वर्तमान में चल रहे अनुसंधान की गति रुक जाएगी तथा आगे अनुसंधान न होने से क्षेत्र के कृषि विकास में गिरावट आयेगी जो राज्य एवं राष्ट्र के हित में नहीं है।

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