समस्या – समाधान
समस्या- हरी फलियों के लिये उगाई जाने वाली मटर की उपयुक्त किस्में कौन सी हैं।
– रामखिलावन, नरसिंहपुर
समाधान – 1.मटर की हरी फलियों के लिये शीघ्र, मध्यम व देर से पकने वाली किस्में उपलब्ध हैं। शीघ्र पकने वाली किस्मों में अर्किल, जवाहर मटर-3, जवाहर मटर 4, अर्ली बेजर, आसोजी इत्यादि प्रमुख हैं। इनमें फलियां बुआई के 55 से 75 दिन में आ जाती हैं। इनमें उत्पादन 60 से 100 क्विंटल हरी फली प्रति हेक्टर तक आ जाता है।
2. मध्यम व देर से आने वाली जातियों में आजाद मटर 1, पंत उपहार, बोनविले, जवाहर मटर 1, जवाहर मटर 2, आर पी.3, एनपी 29 व विवेक मटर 8 प्रमुख हैं। इनमें फलियां बुआई के 75 से 90 दिन बाद तोडऩे लायक हो जाती हैं। इन किस्मों में उत्पादन 120 से 150 क्विंटल हरी फलियां प्रति हेक्टर के मान से मिल जाता है।
3.जबलपुर (पाटन) व नरसिंहपुर क्षेत्र के किसान सितम्बर में मटर की बुआई कर बाजार में हरी मटर अक्टूबर-नवम्बर में ही उपलब्ध करा देते हैं। इससे उन्हें बाजार भाव भी अच्छा मिल जाता है तथा खेत रबी फसल के लिये भी समय पर खाली हो जाते हैं।
समस्या -लहसुन की उन्नत जातियां कौन-कौन सी हैं। हमारे क्षेत्र में कौन सी जाति उपयुक्त रहेगी। लहसुन में खाद की मात्रा भी बतायें।
– किशन सिंह पाटीदार, मंदसौर
समाधान- लहसुन की उन्नत किस्में उनके पकने की अवधि अुसार निम्न है।
1. आई.सी. 35265, 100 दिन में तैयार हो जाती है। कन्द मध्यम आकार के होते है उत्पादन क्षमता 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टर.
2. यमुना सफेद-3 (जी 282)140 से 150 दिन में पकती है। कन्द सफेद व बड़े आकार के रहते हैं उत्पादन क्षमता 175-200 क्विंटल प्रति हेक्टर, मध्यप्रदेश व निर्यात के लिये उपयुक्त जाति।
3. एग्रीफाउन्ड व्हाइट (जी-41)-150 से 160 दिन में पकती है। कली सफेद बड़ी, उत्पादन क्षमता 130-140 क्विंटल प्रति हेक्टर।
4. यमुना सफेद (जी-1) 150-160 दिन में पकती है। 25-30 कलियां प्रति कन्द, उत्पादन क्षमता 150-175 क्विंटल प्रति हेक्टर।
5. यमुना सफेद-2 (जी-50) 165 से 170 दिन में पकती है। कन्द मध्यम, उत्पादन क्षमता 150-155 क्विंटल प्रति हेक्टर, बैंगनी धब्बा रोग के प्रति सहनशील।
6. मध्यप्रदेश के लिए यमुना सफेद-3 तथा एग्रीफाउंड व्हाइट (जी-41) उपयुक्त जातियां हैं। लहसुन की फसल में 15 से 20 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टर तथा 50 किलो नत्रजन, 50 किलो फास्फोरस तथा 80 किलो पोटाश प्रति हेक्टर के मान से दें। नत्रजन व फास्फोरस की पूरी मात्रा बुआई के समय दें।
समस्या- जीरे की फसल लेना चाहता हूं, कृपया इसे उगाने के लिए आवश्यक तकनीकी बतायें।
– हरपाल सिंह राजावत, कोटा (राज.)
समाधान- जीरा एक नगदी फसल है। आप निमन बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए ही जीरे की खेती कर सकते हैं।
1. जीरे के लिये मध्यम जलवायु व कम वायुमंडलीय नमी की आवश्यकता होती है।
2. उचित जल निकास वाली दोमट मिट्टी अच्छी रहती है।
3. दो-तीन जुताई कर भूमि को अच्छी तरह तैयार कर लें अंतिम जुताई के पूर्व खेत में क्लोरोपाइरीफास 20 प्रतिशत चूर्ण 20 कि.ग्रा./हे. के मान से मिला ले।
4. उन्नत जातियों में आर.एस.-1, एम.सी.-43, बीजापुर-5, यू.सी.16, यू.सी.198, गुजरात जीरा-1, आर.जेड 19 में से चुनाव करें।
5. नवम्बर माह में बोनी करें।
6. बीज 12 से 15 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर मान से डालें।
7. बुआई के पूर्व बीज को इन्डोल-3, एसेटिक अम्ल के 100 पी.पी.एम.(1 मि.ली./10 लीटर पानी) घोल से उपचारित कर लें। इससे अंकुरण शीघ्र होगा।
8. जुताई समय 5-7 टन गोबर की खाद भूमि में मिला दें।
9. बुआई के पूर्व 15 किलो नत्रजन, 50 किलो स्फुर व 15 किलो पोटाश भूमि में मिला दें। 15 किलो नत्रजन बुआई के 30 दिन बाद दें। द्य पहली सिंचाई (हल्की) बुआई के तुरन्त बाद करें। सिंचाई प्रबंधन इस प्रकार करें कि भूमि में नमी बनी रहे।
10. भभूतिया रोग व माहू की निगरानी रखें। प्रकोप आरंभ होने पर नियंत्रण करें।
समस्या- मैं ईसबगोल की खेती करना चाहता हूं, इसकी आधार आवश्यकताओं व उत्पादन तकनीक की जानकारी देने की कृपा करें।
– सत्यनारायण साहू, राजनांदगांव
समाधान- ईसबगोल एक नगदी औषधीय फसल है।
1. इसके लिये ठंडा व शुष्क मौसम अनुकूल रहता है।
2. अच्छे जल निकास वाली हल्की बालुई मिट्टी इसके लिए अधिक उपयुक्त रहती है। वैसे जल निकास की अच्छी व्यवस्था कर इसे उगाया जा सकता है।
3. पलेवा दें, खेत को अच्छी तरह जुताई कर, मिट्टी को भुरभुरी कर ले।
4. जवाहर ईसबगोल -4, गुजरात इसबगोल-1, गुजरात ईसबगोल-2 या हरियाणा ईसबगोल-5 में से जाति का चयन करें। द्य नवम्बर के प्रथम से अंतिम सप्ताह तक फसल की बुआई करंे। देर से बोने पर कीट व्याधियों का प्रकोप अधिक होता है।
5. बुआई के समय खेत में ट्राइकोडर्मा 5 किलो/हे. की दर से डालें।
6. कतारों से कतारों की दूरी 30 से.मी. रखें व बीज 4 से 5 किलो ग्राम प्रति हेक्टर के मान से डालें।
7. 2 से 4 टन गोबर या अन्य जैविक खाद प्रति हेक्टर के मान से बुआई के 10-15 दिन पूर्व खेत में मिलायें।
8. नमी अनुसार सिंचाई लगभग 30,60 व 80 दिन बाद करें। द्य फसल लगभग 110 से 120 दिन में पकती है कटाई सुबह के समय ही करंे जिससे बीज कम झड़े।
9. ईसबगोल की औसत उपज लगभग 1000 कि.ग्रा./हेक्टर होती है।
10. ईसबगोल के बीजों के ऊपर पाया जाने वाला छिलका ही औषधि के रूप में उपयोग में लाया जाता है।
11. फसल उगाने के पूर्व अपने क्षेत्र में उत्पाद के विपणन की जानकारी अवश्य प्राप्त कर लें।