काश्तकारों ने मेढ़बंधी कर फसल का उत्पादन किया तिगुना
खरगौन। कहते हैं कि सदियों तक गरीब-गुरबा किसान खेतों में बरसात का पानी टांकों, कुंडियों, कुईयों में संजोकर रखते थे और मेढ़बंधान कर खेतों की बहुमूल्य मिट्टी को बरसात के पानी के साथ बहने से रोकते थे। खेत का पानी खेत में और खेत की मिट्टी खेत में रोकने से संचित जल का उपयोग करते थे और खेत में रूकी मिट्टी से भरपूर फसल लेते थे। अमीर-उमरा किसान भी ऐसा ही करते थे। अब लोगों ने पारंपरिक ज्ञान को बिसरा दिया है। वर्षा का निर्मल, शुद्ध जल खेतों से यूंही बह जाता है और साथ में खेतों की उपजाऊ मिट्टी भी बहा ले जाता है।
बरसात में जो मिट्टी यूंही बह जाती थी, वह अब खेतों में ही है। पहले जहां खेत में गड्ढे थे, वहां मेढ़बंधान से खेत की जमीन समतल हो गई और जहां साल में एक फसल होती थी, वहां तीन से चार फसलें होने लगी और फसल का उत्पादन बढ़कर तिगुना हो गया है। पहले जो खाद बरसात के पानी के साथ बह जाता था, वह अब खेत में ही रहता है। इन काश्तकारों के खेतों में मेढ़बंधान व खेत का पानी खेत में रोकने जैसे पारंपरिक उपायों के कारण फसल में हरियाली बनी रहती है और कम बरसात के बावजूद उनके चेहरे भी चमक रहे होते हैं। पहाड़ों की ढलाननुमा जमीन पर उनके खेत में बरसात का पानी सारी मिट्टी बहा ले जाता था। एक एकड़ भूमि से करीब तीन से चार ट्राली मिट्टी बह जाती थी। जितनी बार बरसात होती थी, उतनी बार जुताई करनी पड़ती थी, क्योंकि हर बार बरसात के पानी के साथ खेत की मिट्टी बह जाती थी।
नरसिंह नायक ने ढाई एकड़ में मेढ़बांध ली। मेढ़बंधान की बदौलत उनका खेत सबसे अधिक उत्पादन देने वाला खेत बन गया है। मेढ़ बांधने वाले दीगर काश्तकारों के जीवन में भी समृद्धि आने लगी है। आज नरसिंह नायक गांव के संपन्न किसान हैं और साल में चार फसलें ले रहे हैं।