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शीतकालीन सब्जियों में एकीकृत पोषण प्रबंधन

सब्जियों की भरपूर उपज पाने के लिये संतुलित खाद व उर्वरक का उपयोग अति आवश्यक है। इसके उपयोग से खेत की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है तथा पौधों का विकास स्वस्थ एवं संतुलित होता है। संतुलित खाद का अर्थ है- किसी स्थान विशेष की मिट्टी, फसल और वातावरण के आधार पर मुख्य पोषक तत्वों जैसे नत्रजन, स्फुर व पोटाश की उचित मात्रा का सही अनुपात में सही समय पर दिया जाना, जिससे  अधिक से अधिक उत्पादन लिया जा सके।
उर्वरक की उचित मात्रा का सही निर्धारण मिट्टी परीक्षण के आधार पर किया जाता है। यदि किन्हीं कारणों से कृषक मिट्टी परीक्षण नहीं करवा पा रहे हैं तो ऐसी स्थिति में उन्हें प्रस्तुत लेख में दिए जा रहे उर्वरक विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चयन करना चाहिये। इस लेख में सब्जियों में प्रदाय की जाने वाली खाद-उर्वरक की सामान्य अनुशंसित मात्रा की जानकारी दी जा रही है।
लगातार खेती करने एवं बार-बार विपुल उत्पादन वाली फसल लेने से भूमि में जैविक कार्बन की कमी आ जाती है। इस कमी को पूरा करने के लिये तथा जमीन की उर्वराशक्ति व स्वास्थ्य को बनाये रखने हेतु रसायनिक उर्वरकों के साथ जीवांश खादों जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट, मुर्गी की खाद एवं केचुएं की खाद आदि का प्रयोग करना ही एकीकृत पोषण प्रबंधन कहलाता है। जीवांश खादों के प्रयोग से फसल को मुख्य पोषक तत्वों के साथ-साथ पौधे की वृद्धि के लिए आवश्यक अन्य द्वितीयक व सूक्ष्म पोषक तत्व भी प्राप्त होते हैं। जीवांश खादों की अनुशंसित मात्रा तालिका में दी जा रही है। इन खादों में से किसी एक का प्रयोग फसल बोने के पूर्व करें। भूमि के नीचे होने वाली फसलों जैसे आलू, प्याज, लहसुन, मूली गाजर, हल्दी, अदरक आदि में कार्बनिक खादों के प्रयोग से उपज की गुणपत्ता में वृद्धि होती है।
जैवांश खाद के साथ जैव उर्वरकों का भी फसलों में प्रयोग लाभप्रद सिद्ध हुआ है। फसलें जैसे प्याज, लहसुन, आलू, टमाटर, बैंगन, मूली, गाजर, फूल गोभी, पत्ता गोभी, धनिया, भिंडी, अदरक, हल्दी आदि में एजेक्टोवेक्टर व पी.एस. बी. की 5-5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। फसलें जैसे मटर, सेम मैथी आदि में राईजोबियम व पी.एस.बी. कल्चर की 5-5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। इन जैव उर्वरकों को सड़ी हुई गोबर खाद में मिलाकर 5-10 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से भूमि उपचार भी करें। जैव उर्वरकों के प्रयोग के समय मिट्टी में पर्याप्त नहीं होनी चाहिए।

विभिन्न फसलों में उर्वरक प्रबंधन
लहसुन/प्याज : इन मसाला फसलों में तालिका के अतिरिक्त सल्फर 20 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से बौनी के समय प्रदान करना चाहिए। यूरिया की कुल मात्रा को सिंचाई उपलब्धता अनुसार दो या तीन भागों में विभक्त कर दें। यूरिया की प्रथम मात्रा बोनी के समय, दूसरी बोनी के 25 दिन बाद एवं अंतिम 50 दिन बाद दें। बोनी के 60 दिन पश्चात किसी भी प्रकार के नत्रजन उर्वरक का प्रयोग नहीं करें। डीएपी अथवा सिंगल सुपर फास्फेट व म्यूरेट ऑफ पोटाश की संपूर्ण मात्रा बोनी के समय दें।
आलू: आलू में गोबर की  खाद खेत तैयार करते समय अंतिम जुताई पर डालना चाहिए तथा फास्फोरस व  पोटेशियम की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा बोनी के समय तैयार खेत में डाले एवं मिट्टी में अच्छे से मिलाएं। बोनी के 30 दिन बाद एक तिहाई भाग नाइट्रोजन एवं बचे नाइट्रोजन के एक तिहाई भाग को मिट्टी चढ़ाते समय दें।
हल्दी : हल्दी में गोबर खाद की पूरी मात्रा, नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा, फास्फोरस व पोटेशियम की पूरी मात्रा खेत की अंतिम तैयारी करते समय आधार रूप में अच्छी तरीके से मिलाएं। दो महीने बाद नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा मिट्टी चढ़ाते समय दें।
अदरक : अदरक में अच्छी पकी हुई गोबर खाद अंतिम जुताई के पूर्व खत में मिलाएं। बोनी के समय नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा फास्फोरस व पोटेशियम की पूरी मात्रा आधार खाद के रूप में दें। बोनी के 60 व 90 दिन के अंतराल पर शेष नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में दें।
मटर/सेम : इन दलहनी फसलों में तालिका में दर्शायी गयी उर्वरकों की संपूर्ण मात्रा बोवनी के समय दे दें।
टमाटर: यूरिया की कुल मात्रा को सिंचाई उपलब्धता अनुसार दो या तीन भागों में विभक्त कर दें। यूरिया की प्रथम मात्रा रोपण के समय, दूसरी रोपण के 25 दिन बाद एवं अंतिम 50 दिन बाद देनी चाहिए। डीएपी अथवा एनपीके 10:26:26 अथवा सिंगल सुपर फास्फेट व म्यूरेट ऑफ पोटाश की संपूर्ण मात्रा बोनी के समय दें। टमाटर में बोरेक्स पावडर 1 किलोग्राम प्रति हेक्टर या 230 ग्राम प्रति बीघा की दर से प्रयुक्त करने पर फल फटने की समस्या कम आती है।
बैंगन: बैंगन में खेत की तैयारी के समय मिलाया गया कार्बनिक खाद के अतिरिक्त नत्रजन उर्वरक की आधी मात्रा तथा फास्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के पूर्व खेत में दे दी जाती है। तथा शेष बची आधी मात्रा रोपाई के 30 दिन बाद दें।
धनिया: धनिया में नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटेशियम की पूरी-पूरी मात्रा बोनी के समय आधार खाद के रूप में दें। एक तिहाई नाइट्रोजन यूरिया के रूप में बोनी के 30 से 40 दिन बाद निराई गुड़ाई व पौधों के विरलन के पश्चात एवं शेष एक तिहाई नाइट्रोजन फूल आने के समय दें।
मैथी: तालिका में दर्शायी गई उर्वरक मात्रा में से यूरिया की आधी मात्रा, डीएपी, सिंगल सुपर फास्फेट की पूर्ण मात्रा बोनी के समय दें। यूरिया की एक चौथाई मात्रा बोनी से 30 दिन बाद व शेष एक चौथाई मात्रा फल आने पर कतारों के पास डालकर देते हैं।
मूली : अच्छी पकी हुई गोबर खाद खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला दें तथा नत्रजन की आधी, फास्फोरस व पोटाश की संपूर्ण मात्रा बोनी के समय मिट्टी में डालें। शेष नत्रजन को दो भागों में बांटकर 15-20 दिन व 35 -40 दिन पर दे जिससे पतित्यों व जड़ों की वृद्धि हो सके।
फूलगोभी एवं पत्ता गोभी : इन फसलों में नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा, फास्फोरस व पोटेशियम की पूरी मात्रा बोनी के समय आधार खाद के रूप में दें। नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा रोपण के तीन से 5 सप्ताह बाद व शेष एक तिहाई मात्रा आठ सप्ताह बाद दें। जिन कृषकों के खेत में फूल गोभी के भूरे फूल होने की समस्या आती हो ऐसे खादों में रोपण के समय 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोरेक्स पाउडर दें।

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