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लहसुन की खेती

लहसुन एक पाला सहिष्णु फसल है। इसके लिए विकास की अवधि में ठंडी व नम जलवायु की आवश्यकता होती है जबकि इसके पकने की अवस्था में गर्म व सूखा मौसम होना आवश्यक है। इस फसल को विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में लगाया जा सकता है। परन्तु अच्छी उपजाऊ दोमट मिट्टी जिसमें पानी का उचित निकास हो लहसुन के लिए उपयुक्त रहती है।
भूमि की तैयारी तथा रोपाई
भूमि को 4-5 बार जुताई कर अच्छी तरह तैयार कर लें। भूमि को समतल कर क्यारियां बना लें ताकि सिंचाई ठीक ढंग से हो सके। सिंचाई के लिए नालियां भी साथ-साथ बनायें।
अधिकांश क्षेत्रों में लहसुन की रोपाई सितम्बर मध्य से नवम्बर तक की जाती है। पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी 15 से.मी. तथा कली से कली की दूरी 8-10 से.मी. रखें। इस प्रकार एक हेक्टर में लगभग 6.6 लाख पौधे आयेंगे। एक हेक्टेर में 500 से 700 कि.ग्रा. बीज की आवश्यकता होती है। कली बोते समय उसका नुकीला भाग ऊपर की तरफ रहना चाहिए।
खाद व उर्वरक
अंतिम जुताई के पूर्व खेत में 50 टन अच्छी सड़ी गोबर की खाद डालकर भूमि में मिला दें, लहसुन बोते समय 50 किलो नत्रजन, 50 किलो फास्फोरस तथा 50 किलो पोटाश प्रति हेक्टर आधार खाद के रूप में दें। एक माह की फसल होने पर 50 किलो नत्रजन प्रति हेक्टर खड़ी फसल में डालें।
निराई-गुड़ाई
लहसुन की फसल को 2-3 बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। पहली निराई-गुड़ाई फसल बोने के एक माह बाद करें। दूसरी उसके एक माह बाद तथा तीसरी आवश्यकतानुसार करें। फसल में लगभग ढाई माह बाद कंद (बल्व) बनते समय एक गुड़ाई हेण्ड व्हील हो द्वारा अवश्य करें ताकि बल्वों का विकास अच्छा हो सके।
सिंचाई
लहसुन उथले जड़ वाली फसल है इसको लगातार सिंचाई की आवश्यकता होती है ताकि भूमि के ऊपरी भाग में भी नमी बनी रहे। बल्वों के विकास के समय भी भूमि में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए। साधारणत: मिट्टी व जलवायु के आधार पर 8-15 दिनों के अंतर से सिंचाई देते रहना चाहिए। फसल जब पकने की अवस्था में पहुंच जाय तो सिंचाई रोक देनी चाहिए।
पौध संरक्षण
लहसुन की फसल को निमोटोड, कीट तथा बीमारियों से हानि पहुंचने की सम्भावना बनी रहती है। इसलिए फसल का समय – समय पर निरीक्षण करते रहना आवश्यक है।
निमोटोड लहसुन की जड़ों, बल्व तथा तने को हानि पहुंचाता है जिससे इसकी उपज में बहुत विपरीत प्रभाव पड़ता है। जिन क्षेत्रों में निमोटोड का प्रकोप वर्ष प्रति वर्ष होता है वहां फसल चक्र अपनायें तथा लहसुन की बोनी के पूर्व डाईक्लोरोप्रोपेन – डाइक्लोरोप्रोपान (डी.डी.) से भूमि को ध्रुवन (फ्यूमिगेट) कर लें।
कीटों में थ्रिप्स लहसुन का प्रमुख शत्रु है। इसके शिशु तथा वयस्क पत्तियों को खुरचकर रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां चांदी की तरह सफेद दिखाई देती हैं। इसके नियंत्रण के लिए ट्राइजोफास 40 ई.सी. का 500 मि.ली. प्रति हेक्टर मान से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।
लम्बे समय संग्रहित लहसुन में माइट का प्रकोप भी देखने को मिलता है। इसके नियंत्रण के लिए मिथाइल ब्रोमाइड (1 लीटर / 1000 वर्ग फीट) से गोदाम को फ्यूमिगेट करें।
लहसुन की बीमारियों में सफेद सडऩ, पेनिसिलियम द्वारा सडऩ, स्टेमफाइलम झुलसा, बैंगनी धब्बे, लीफ ब्लाइट, भभूतिया रोग तथा मोजेक प्रमुख हैं। फसल को स्वस्थ रखने के लिए 15-15 दिन के अंतर से मेंकोजेब के 0.25 प्रतिशत घोल का छिड़काव करते रहें। बीमारी अनुसार उपचार करें। लहसुन में कभी-कभी पौधों में कुछ विकृतियां आ जाती हैं जो कुछ किस्मों में ही देखने को मिलती है, यह स्थायी नहीं रहती है।
उपज
4-5 माह में लहसुन की फसल तैयार हो जाती है। कंदों की खुदाई के अच्छी तरह सुखाकर भण्डारण करें। एक हेक्टर में लहसुन की 100 से 200 क्विंटल फसल प्राप्त हो जाती है।

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