State News (राज्य कृषि समाचार)

रेज्ड बेड तकनीक प्रतिकूल मौसम का एक विकल्प

Share

पिछले दो वर्ष की तरह इस बार भी बेमौसम बरसात, तेज हवा और ओले पडऩा देखा गया है इस बार मध्यप्रदेश में 2000 गाँव में फसलों पर प्रभाव पडा है। जिससे 10 से 12000 फसलों का नुकसान होने की आशंका है (म.प्र. शासन)। पिछले दो वर्षों में भी लगभग इसी समय के दौरान मध्यप्रदेश के कई हिस्से में तेज आंधी, तेज बारिष और 1 से 2 इंच के आकार के ओले गिरे। मौसम के इस तरह के बदलाव को कुछ वर्षों से ऐसा देखा जा सकता है। भोपाल, विदिशा, रायसेन, सीहोर, राजगढ़, गुना, अशोकनगर में बारिश और ओले से फसलों को काफी नुकसान हुआ है।
इस तरह के बेमौसम बरसात जो कि एक मौसम में हो रहे बदलाव की तरह से देखा जा रहा है जिसके कारण खेती में काफी नुकसान हो रहा है जिसका प्रमाण यह है कि सिर्फ इस छोटे बदलाव से किसानों के लाखों हेक्टेयर क्षेत्र की फसल बर्बाद हो जाती है । अगर इसी तरह से मौसम में बदलाव होता गया तो किसान के लिए भविष्य में खेती करना बहुत मुश्किल होगा। वैसे भी कृषक काफी स्तर पर खेती छोड़ शहर को जा रहा है। अगर ऐसी कृषि का हाल रहा तो भारतीय कृषि के लिए यह अच्छा संदेश नहीं होगा।
इस तरह मौसम में हो रहे बदलाव को मौसम वैज्ञानिकों ने बहुत पहले अनुमान लगा लिया था। मौसम में आये बदलाव से हमारी कृषि व्यवस्था प्रभावित होगी। इसी को ध्यान में रखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने इस दषा में कार्य शुरू कर दिया है।
इन्हीं मौसम की अनियमिता को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने एक परियोजना जलवायु समुत्थान से कृषि पर राष्ट्रीय पहल (निकरा) की शुरूआत की गई और कृषि परियोजना के अंतर्गत तकनीकी प्रदर्शन घटक (टी.डी.सी.) के द्वारा ऐसे किसी मशीनों का प्रयोग किया गया जिससे की मौसम के बदलाव का फसल पर कम से कम प्रभाव पड़े।
इस परियोजना के अंतर्गत रेज्डबेड तकनीक का उपयोग किया गया है। इस तकनीक के अंतर्गत खेतों की जमीन को बुआई के समय 1.20 मी. की चौड़ाई का बेड नियमित अंतराल पर बनाया गया है।
इस तकनीक को भोपाल जिले के काछी बरखेड़ा (तहसील: हुजूर, जिला-भोपाल) गांव को वर्ष 2012 तकनीकी प्रदर्शन घटक के अंतर्गत अपनाया गया। किसानों ने इस तकनीक से लगातार तीन वर्षों से गहूँ एवं सोयाबीन फसल के साथ बोया जा रहा है ।
इस तकनीक का उपयोग करने से पहले भूमि का समतलीकरण कर लेना चाहिए ताकि रेज्ड बेड तकनीक का अधिक से अधिक फायदा मिल सके।
अतिवर्षा और अल्पवर्षा पर इस तकनीक का प्रभाव
इस तकनीक के उपयोग से पानी के उपयोग क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। ज्यादा पानी और कम पानी दोनों ही अवस्था में यह तकनीक उपयोगी है। ज्यादा पानी की स्थिति में पानी दोनों बेड के बीच से आसानी से बह जाता है जिससे अधिक पानी के जमाव का असर फसल पर नहीं पड़ता। कम पानी के दशा में पानी दोनों बेड के बीच ज्यादा से ज्यादा समय तक रहता है जिससे लंबे समय पानी के अभाव में फसल की जड़े को पानी मिल जाता है।
ओलावृष्टि का रेज्ड बेड तकनीक पर प्रभाव
यह देखा गया है कि ओलावृष्टि का भी इस तकनीक पर काफी कम प्रभाव पड़ता है। यह तथ्य साबित तब हुआ जब निकरा टी.डी.सी. परियोजना द्वारा अपनाया गया काछी बरखेड़ा गांव में की गई रेज्ड बेड पद्धति के द्वारा बुवाई के उपरांत मार्च 2013, फरवरी 2014 और मार्च 2015 के समय में पडे ओलावृष्टि से फसल को कोई नुकसान नहीं हुआ जबकि साथ के परम्परागत तरीके से बोये गए गहूँ की फसल अधिक प्रभावित हुई इस तथ्य को जानने के लिए गहूँ की जड़ पद्धति का अध्ययन किया गया और पाया कि रेज्ड बेड से बोये गए गहूँ की फसल में जड़ों का फैलाव परंपरागत तरीकों से बोये गये गहूँ की अपेक्षा ज्यादा है। इस तकनीक के उपयोग से जड़ें ज्यादा विकसित हुई जिसके कारण मिट्टी में जड़ की पकड़ मजबूत हुई। मिट्टी में जड़े के इस फैलाव से पौधे में पोषक तत्वों का भी ज्यादा संचार होता है जिसके फलस्वरूप फसल के तनों में मजबूती और लचीलापन आ जाता है। जिसके कारण तेज आंधी में भी फसल नहीं गिर पाती है।
तेज हवा का रेज्ड बेड तकनीक पर प्रभाव
जैसा की अध्ययन से पता चला है कि जड़ों के मिट्टी के अंदर ज्यादा फैलाव से मिट्टी ज्यादा क्षेत्र तक जड़ो को पकड़ कर रखती है जिससे पौधे के तनों को मजबूत आधार मिलता है जिसके फलस्वरूप तेज हवा से पौधों के तनों को झेलने की शक्ति मिल जाता है जिससे तनों के झुकने या गिरने की संभावना बहुत कम हो जाती है।
उपरोक्त लिखे सभीे कारकों से पता चलता है कि रेज्ड बेड तकनीक प्रतिकूल वातावरण में वरदान साबित हुई है। अति वर्षा, अल्प वर्षा, ओलावृष्टि और तेज हवा का परम्परागत तरीके से बोई गई फसल की अपेक्षा रेज्ड बेड पर बोई गई गेहंू-सोयाबीन फसल पर बहुत कम प्रभाव पड़ा। भोपाल जिले के हुजूर तहसील के काछी बरखेड़ा गांव के कुछ किसानों ने निकरा टी.डी.सी. के तहत इस तकनीक का उपयोग किया है जो कि एक ज्वलंत उदाहरण है। टी.डी.सी. का यह उद्देश्य है कि इस गांव के सारे किसान इस तकनीक का उपयोग करें ताकि यह भोपाल ही नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए उदाहरण बन सके।

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *