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अन्तर्राष्ट्रीय वैचारिक महाकुंभ : म.प्र. में होगी मिश्रित खेती

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निनौरा-उज्जैन में अंतर्राष्ट्रीय कृषि एवं कुटीर कुम्भ

उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय वैचारिक महाकुंभ के समापन अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सिंहस्थ 2016 के सार्वभौम संदेश के नाम से तैयार 51 सूत्रीय अमृत बिन्दु घोषणा पत्र जारी किया। इन बिन्दुओं में धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों के साथ जीवन मूल्यों के शिक्षण, कृषि, वानिकी, पारम्परिक चिकित्सा, जैव विविधता संरक्षण, संसाधन प्रबंधन, स्वच्छता, गौवंश का संरक्षण, नदियों का संरक्षण, 2016 को समान स्थान, कुटीर उद्योग और शिल्पियों के मुद्दों को छुआ। इस अवसर पर श्रीलंका के राष्ट्रपति श्री मैत्रीपाला सिरीसेना, लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन, छ.ग. के मुख्यमंत्री डॉ. रमण सिंह, राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे, झारखंड के मुख्यमंत्री श्री रघुवरदास, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री देवेन्द्र फणनवीस, केन्द्रीय मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर, श्री थावरचंद गेहलोत एवं म.प्र. के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान उपस्थित थे।

भोपाल। ऋषि खेती और जैविक खेती में प्रदेश को नंबर एक बनाएंगे। जैविक खाद के लिये भी सब्सिडी का प्रावधान होना चाहिए। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने यह बात निनौरा-उज्जैन में अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ के दूसरे दिन कृषि एवं कुटीर कुंभ में कही। श्री चौहान ने कहा कि प्रदेश में मिश्रित खेती का प्लान बनाया गया है। इसकी जानकारी गांव-गांव में किसानों को दी जा रही है। उन्होंने कहा कि कृषि को लाभ का धंधा बनाने के लिये सुझाव देने के लिये सलाहकार समिति गठित की गई है।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि आदर्श कृषि फार्म बनाकर वहां प्रयोग करेंगे। प्रयोग सफल होने पर उन्हें किसानों तक ले जायेंगे। उन्होंने कहा कि प्रदेश में सिंचाई का रकबा 7.5 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 36.5 लाख हेक्टेयर कर दिया गया है। किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज पर लोन दिया जा रहा है। कृषि विकास दर लगातार चार वर्ष से बीस प्रतिशत से अधिक है। कृषि उत्पादन में हम हरियाणा और पंजाब से भी आगे निकल गये हैं। इसके पूर्व गत दिवस अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ का शुभारंभ करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने कहा कि व्यवस्था समतायुक्त और शोषण मुक्त होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि विज्ञान जितना प्रगट हो रहा है उतना आध्यात्म के निकट आ रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी ने कहा कि प्रकृति से अधिक से अधिक लेने की सोच के कारण ही असंतुलन हुआ है। उन्होंने कहा कि अन्न देने वाली माता वसुंधरा का सम्मान और हरित क्रांति की समीक्षा होनी चाहिये। श्रीमती जया जेटली ने कहा कि कृषि एवं कुटीर उद्योग का अटूट रिश्ता है। कृषि के उत्पादन में कारीगरों की उपयोगिता किसी से छिपी नहीं है। कृषि की लागत, संभावनाएं और कृषकों की उम्मीदों के बारे में समग्र रूप से विचार होना चाहिए। योगगुरू स्वामी श्री रामदेव ने कहा कि हम सब हेंड मेड सामान का उपयोग करने का संकल्प लें। उन्होंने कहा कि हेंड मेड सामान का ही फैशन होना चाहिए। बुनकरों द्वारा बनाये जाने वाले कपड़ों का उपयोग करेंगे तो लाखों बुनकरों को रोजगार मिलेगा। श्री रामदेव ने कहा कि वे मध्यप्रदेश में शीघ्र ही फूड पार्क बनायेंगे। पूरे देश में 4 गौ-अनुसंधान केंद्र स्थापित करेंगे। उन्होंने बताया कि विनाशकारी विकास की जगह समग्र विकास को अपनाना होगा।
मशहूर पर्यावरणविद तथा वैज्ञानिक सुश्री वंदना शिवा ने कहा कि विश्व युद्ध में एक्सप्लोसिव बनाने वाले लोग अब कृषि के लिये रसायन बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि हरितक्रांति के पहले नदियां सूखती नहीं थी। सुश्री शिवा ने कहा कि रसायनिक खेती हिंसा की खेती है। सुश्री शिवा ने अहिंसक खेती पर जोर देते हुए कहा कि कृषि रोटी और स्वास्थ्य को साथ में जोड़कर देखना होगा। नब्बे प्रतिशत अनाज बायो-फ्यूल और जानवरों के लिये उपयोग किया जा रहा है। दाल की फसल 140 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर देती है। हर साल लगभग 70 अरब रुपये रसायनिक खेती पर खर्च हो रहे हैं। जबकि वैदिक खेती द्वारा दस गुना उत्पादन किया जा सकता है। इससे जल-संरक्षण भी किया जा सकता है।
सांसद श्री अनिल माधव दवे ने कहा कि आर्थिक व्यवस्था को ठीक करना है, तो शून्य बजट खेती की नीति बनानी होगी।
उन्होंने कहा कि घर की देशी गाय घर लौटनी चाहिये। गाय के गोबर और गौ-मूत्र से कृषि उत्पादन बढ़ाने के साथ ही मिट्टी का क्षरण रोका जा सकता है। श्री दवे ने कहा कि यह विडंबना ही है कि किसानों द्वारा उत्पादित सामग्री का मूल्य उपभोक्ता तय करते हैं जबकि अन्य उत्पादों का मूल्य उत्पादक तय करता है।
‘बेक टू विलेज संस्था के को-फाउंडर आईआईटियन श्री मनीष कुमार ने कहा कि प्रतिदिन किसान कृषि छोड़कर शहर की ओर भाग रहे हैं। अगर अवसर मिले तो 60 प्रतिशत किसान खेती छोड़ देंगे। यह सब उन्हें सम्मान नहीं मिलने के कारण हो रहा है। जो फसल जिस क्षेत्र में होती है वहीं पर उसका उत्पादन बढ़ाने के प्रयास होने चाहिये।

जैविक खेती में किसानों की समस्याओं का हल

कृषि कुंभ में देशी-विदेशी कृषि विद्वानों द्वारा जैविक खेती पर विशेष बल दिया गया। उन्होंने कहा कि जैविक खेती में किसानों की कृषि संबंधी समस्याओं का हल निहित है। विद्वानों ने मल्टीनेशनल कंपनियों के बीजों पर पेटेन्ट अधिकार न देने तथा कृषि में जैव विविधता को बचाने के लिये देशी किस्म को संरक्षण और प्रोत्साहन दिये जाने को कहा। जैविक खेती एवं उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये सब्सिडी प्रदान करने का भी सुझाव दिया गया।
सीईसी हैदराबाद के वैज्ञानिक श्री के.एस. गोपाल ने कृषि में पानी की कमी, मिट्टी की उर्वरता में आयी गिरावट तथा किसानों के कौशल विकास में कमी संबंधी मुख्य समस्याएं बताई। उनके अनुसार इनसे कृषि उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
फोकस ऑन दी ग्लोबल साउथ के श्री अफसर जाफरी ने बीटी कॉटन और जीएम मॉडिफाइड किस्मों के बीजों का उपयोग न करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा इन बीजों पर पेटेंट एकाधिकार के प्रयास किये जा रहे हैं। इनकी खेती पर बहुत अधिक व्यय आने के कारण ही नुकसान होता किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इन बीजों के उपयोग से देशी किस्में खत्म होती जा रही हैं वहीं हमारी जैव विविधता भी समाप्त हो रही है।
स्विटजरलैंड के श्री क्रिस्टीयन एट्रेस ने पॉवर प्वाइंट प्रेजेंटेशन से जैविक खेती पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि जैविक खेती के संबंध में उन्होंने भारतीय कृषकों से बहुत कुछ सीखा और उसे आगे बढ़ाया है।
फिलीपीन के एशिया पेसेफिक रिसर्च नेटवर्क से ही मजू्र्ररी पेमेन्टूयन ने उनके देश और पूरे विश्व में सूखा के कारण उत्पन्न खाद्य समस्या पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से खेती पर विपरीत प्रभाव देखा जा रहा है।

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