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मेमने को ठंड से बचाएं

ब्याने के बाद मेमनों की देखभाल:
जून-जुलाई माह में बरसात के बाद उगी हुई वनस्पतियों को खाने के बाद अक्टूबर से दिसंबर माह में ज्यादातर मादा बकरियां ब्याती हैं। यह ऋतु बेहद ठंडा होने के कारण इसमें मेमनों की विशेष देखभाल करनी पड़ती है। जब मेमना जन्म लेता है तब उसके शरीर में बहुत कम ऊर्जा बाकी होती है। ऐसे में जनन द्वार से बाहर निकलने के बाद वह गीला होने से मेमना थरथर कांपता है। ठंड से लडऩे के लिए उसके शरीर में मौजूद ऊर्जा तेजी से खत्म होती है। जब शरीर की ऊर्जा खत्म होती है तो वे ठंड को बर्दाश्त नहीं कर सकते और उनकी मृत्यु हो जाती है इससे पशुपालक  की आर्थिक  हानि होती है। इससे बचने हेतु मेमनों को जन्म के तुरन्त बाद साफ कपड़े से अच्छी तरह पोंछकर उसकी माता के सामने एक साफ सुथरी बोरी रखकर उस पर रखें। वह उसे चाटकर  और साफ करती है जिससें उसके शरीर पर चिपके आवरण निकल जाते हैं। उसके नथुने तथा मुॅह में इकट्ठा चिपचिपा पदार्थ भी निकाल दें। इन सब क्रियाकलापों से उसके शरीर में कुछ गर्मी आ जाती है। और उसे सांस लेने में आसानी होती हैं। उसके खुरों पर जमा उबले आलू जैसा पदार्थ खरोंचकर निकाल दें।  इसके बाद उसका नाभीसूत्र उसके शरीर से एक से डेढ़ इंच दूरी पर जंतुनाशक द्रव में डूबोये धागे से कसकर बाँध दें तथा निचला हिस्सा साफ-सुथरे ब्लेड से काट दें। जख्म पर वह ठीक होने तक  रोजाना जंतुनाशक दवा कपास के साफ फोहे में लगायें।
इसके बाद जन्म से आधे घण्टे में मेमने को खीस/चीक(कोलोस्ट्रम) जरूर पिलावें। यह द्रव उन्हे कई संक्रमणों से बचाता हैं। कई बार माता से पर्याप्त मात्रा में खीस नहीं मिल पाता। ऐसी हालत में दूसरी मादा ब्या गई है तो उसका खीस पिलायें। उसके बाद एक माह तक दूध पिलावें। अगर माता का दूध पर्याप्त नहीं है तो दूसरी मादा जो हाल ही ब्या गई है तथा उससे पर्याप्त मात्रा में दूध प्राप्त हो रहा है उसका दूध पिलायें। अगर वह भी उपलब्ध नहीं है तो दूध चूर्ण पानी में मिलाकर उबालकर ठंडा कर बोतल में रबड़ का निप्पल लगाकर पिलावें। हर हालत में मेमनों को दूध मिलना चाहिए तथा वे भूखे ना   रहने पायें तभी उनमें मृत्युदर कम होगी। शीत ऋतु के आगमन से पहले ही बाड़े की मरम्मत करवायें। खिड़कियां, दरारें पुट्टी या फेविकॉल में लकड़ी का बुरादा मिलाकर बंद करवायें। खुली बाजुओं में मोटे बारदाने के परदें लगवायें तथा उनके निचले हिस्सों पर बांस बांध दें ताकि वे हवाओं के झोकों से उड़ ना जायें। शाम ढलते ही मेमनों को बाड़े के अंदर एक पिंजड़े को मोटा बारदाना लपेटकर उसमे रखें लेकिन हवा/प्राणवायु के लिए थोड़ी खुली जगह रखें  ताकि वे ठीक से सांस ले सकें। वहां 100 वाट क्षमता के लट्टू (बल्ब) रात्रि में लगायें जिससे  गर्माहट रहेगी ।
दूसरे दिन सबेरे धूप खिलने के बाद ही मेमनों को पिंजड़े से बाहर निकालें तथा आंगन में लकड़ी के ठूंठ/तने के  टुकड़े इत्यादि रख दें ताकि वे उछल-कूद कर सकें। इससे उनकी कसरत होती है और वे स्वस्थ रहते हैं उन्हे भरपेट खीस  तथा दूध पिलावे। 1 माह बाद हरी घांस बरसीम ,लूसर्न, लोबिया इत्यादि थोड़े-थोड़े उनके सामने डालते रहें। शुरू में वे उन्हे सिर्फ चबाकर छोड़ देंगे लेकिन धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा खाने लगेंगे। इससे उन्हे दूध कम पिलाना पड़ेगा तथा  दूसरा फायदा यह कि उनके पेट में और  रोमंथिका नामक हिस्से का विकास तेजी से होगा और वे जल्दी घास-फूस खाना शुरू करेंगे ।  उन्हे 2 से 6 माह की उम्र में कॉक्सीडायोसिस नामक बीमारी से बचाव हेतु बाजार में उपलब्ध  कोई भी  कॉक्सीडायोस्टॅट दवा लगातार 1 सप्ताह तक दें। उनके पेट में पल रहे कृमियों के नियंत्रण हेतु 5 माह बाद कृमिनाशक दवा पिलावें। उनके शरीर पर किलनियां तथा जुएं होती हैं उनके नियंत्रण हेतु उन्हे खरहरा करें तथा डेल्टामेथ्रिन 2 मिली दवा 1 लीटर पानी में घोलकर उसका अलग छोटे पंप से छिड़काव करें।
जब तक मेमने बड़े नहीं हो जाते तब तक उन्हे चराई के लिए जंगल मे ना भेजें तथा बाड़े में ही रखें। बाड़े की बाड़ अच्छी तथा सुरक्षित होनी चाहिए  ताकि कुत्ते जैसे प्राणी अंदर घुसकर उन्हे नुकसान न पहुंचा सकें। वे दिनभर कुछ देर खेलते हैं तथा कभी बैठकर विश्राम करते हंै। शाम को उनकी माता चराई पर से लोटकर आने पर उन्हे फिर पेट भर दूध पिला दे । अगर मेमने सुस्त दिखाई दें तो पशुचिकित्सक की सलाह से उन्हे दवाएं दें। उन्हें पीने के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती फिर भी बाड़े के प्रांगण में गुनगुने पानी से भरी छोटी टंकी रख दें ताकि जरूरत पडऩे पर वे पानी पी सकें।
बाड़े में खनिज ईट (मिनेरल लीक) टांगकर रखें ताकि उन्हें खनिज  उपलब्ध हो सके । वे नहीं मिलने पर मेमने इधर-उधर मिट्टी, दीवार, फर्श  तथा अन्य चीजें चाटकर खनिज प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। बाड़े से मैंगनी, कचरा इत्यादि झाडू से निकालकर सफाई रखें। साफ वातावरण से स्वास्थ ठीक रहने में मदद मिलती है।  मेमनो का शरीरभार 3 माह की उम्र तक 12 से 15 किलोग्राम तथा 6 माह की उम्र में 20 किलोग्राम तक पंहुचाने का प्रयास करें। अच्छा आहार तथा अच्छे प्रबंधन द्वारा  यह लक्ष्य हासिल कि या जा सकता है। अच्छे स्वस्थ  मेमने कम से कम मृत्युदर अच्छा शरीरभार यह सब फायदेमंद और किफायती बकरीपालन के लिए निहायत जरूरी है। अत: मेमनों का उपरोक्त लिखित  अनुसार प्रबंधन करें तो काफी लाभ होगा।

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