मानसून का मिजाज
कृषि को मानसून की दासी कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कुछ दशक पहले मानसून 15 जून तक दरवाजा खटखटा देता था। कृषकों के खेत तैयार रहते थे बतर आते ही जून अंत तक खरीफ फसलों की बुआई पूरी हो जाती थी। परंतु आज की स्थिति कुछ ऐसी है कि खरीफ फसलों की बुआई की स्थिति अस्थिर हो गई है। पिछले कुछ वर्षों से पानी जून की जगह जुलाई तक आ पाता है वो भी कहीं कम तो कहीं ज्यादा इस कारण बुआई भी आगे-पीछे करना पड़ती है । एक लम्बे और सन्नाटे भरे अंतराल के बाद गत सप्ताह अच्छा पानी गिरा और सतत गिर रहा है। इस वक्त खेतों में पानी का प्रबंध सबसे जरूरी बात होगी विशेषकर गहरी काली मिट्टी में जल भराव की स्थिति आ गई है। जैसा कि बार-बार सुझाया गया है, कतार छोड़ पद्धति से यदि सोयाबीन की बुआई की गई होगी तो निश्चित ही कृषकों को राहत मिल जायेगी। खाली कतारों को गहरी करके उनसे अतिरिक्त जल का निथार जल्द से जल्द मौका आते ही किया जाये। बतर मिले तो खेतों से चारा बाहर करके पौधों के लिये पूरा-पूरा पोषक तत्व उपलब्ध कराने से उनकी बढ़वार पर सकारात्मक असर होगा। उल्लेखनीय है कि 80 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में फैले सोयाबीन की तस्वीर है। सोयाबीन के बाद अरहर को अतिरिक्त जल से भारी हानि होने की संभावनायें होती हैं यही कारण है कि पहले अरहर को केवल मेढ़ों पर ही लगाया जाता था। वो तो मांग के अधार पर इसको बड़े पैमाने पर लगाने की जरूरत पडऩे लगी। कपास मुख्य रूप से अच्छे प्रबंध की जरूरत होती है जिसे कृषक आदतन करता रहता है। कपास चूंकि भारी जमीन में लगाया जाता है इस कारण जल भराव की स्थिति का नुकसान होना संभव होता है। अत: शीघ्रता से अतिरिक्त जल के निकास की व्यवस्था की जाये ताकि नुकसान पर विराम लग सके। तिल, मक्का, ज्वार, मूंग, उड़द सभी फसलों से अतिरिक्त जल को निथार कर उस जल को व्यर्थ बहाने के बजाय खेत के निचले भाग में उसको इकट्ठा करके भविष्य के लिये जमा किया जाना भी आज की आवश्यकता होगी। धान के पानी से भरे खेतों में ध्यान रखा जाये कि पूरी फसल पानी से ढंक ना जाये पौधे एक जीवित अंश है और उन्हें भी आक्सीजन की आवश्यकता होती है यथासंभव पानी खोल कर खेत में सीमित जल ही बचा कर रखें ताकि पौधे पनपते रहें टाप ड्रेसिंग के रूप में यूरिया का सीधा उपयोग कदापि नहीं किया जाये यथासम्भव अमोनियम सल्फेट ही डालें और यदि यूरिया डालना ही पड़े तो उसे मिट्टी में मिलाकर रखें फिर उसके गोले बनाकर ही खेत में बिखेरें ताकि पूरा -पूरा लाभ मिल सके मानसून हमारी कृषि के लिये प्रकृति द्वारा प्रयास एक अनमोल भेंट ही तो है उसके जल का उचित प्रबंधन हमारे हाथों में है यदि इसमें प्रयास सफल हो गये तो अच्छे उत्पादन की डगर सरल हो जाती है। आज का मानसून केवल खरीफ फसलों के लिये ही नहीं बल्कि आने वाले रबी के लिये भी आवश्यक है इस कारण खरीफ में खाली खेतों में समय-समय पर बतर मिलने पर बखर करके भूमिगत नमी में इजाफा किया जाये ताकि रबी के खेतों की तैयारी फिर बुआई सरलता से सम्पन्न हो सके। मानसून मेहरबान तो सब कुछ आसान यही मानना होगा।