बरुथी से बचाएं फसलों को
बरुथी जिन्हें अंग्रेजी में माइटस कहते हैं बहुत पुराने काल से कृषि फसलों को हानि पहुंचाते आ रहे हैं, परंतु अब यह कीट गंभीर एवं कई रोगों में वाहक कीटों का काम कर रहे हैं। अत्यधिक कीटनाशियों तथा उर्वरकों के प्रयोग से यह कीट मददगार साबित हो रहे हैं। टारसोनेमिड माइटस व युपोडिडस दालों व सब्जियों के नाशीकीट होते हैं तथा इनकी उपज में कमी लाते हैं। भारत में बरुथी की 550 से अधिक जातियां विभिन्न फसलों जैसे गेहूं, जौ, मक्का, गन्ना, धान, ज्वार, कपास, कुष्माण्डू कुल की सब्जियां, बेर, नीबूंवर्गीय फलों को प्रभावित करती है।
ये आकार में छोटी, गोल तथा पत्तियों के ऊपरी व निचली सतह पर सक्रिय रुप से घूमती रहती है तथा रेशमी जाले बनाती है। ये समूह में रहती हैं व अपने मुखांग से पत्तियों की निचली सतह को खुरच कर रस चूसती हैं। इनसे प्रभावित फसलों में पत्तियों का रंग भूरा अथवा लाल पडऩा शुरू हो जाता है व बाद की अवस्था में कांस्य रंग का हो जाता है। पत्तियां झडऩे लगती हैं जिससे उपज पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इनकी वर्ष में कई पीढिय़ां पायी जाती हैं। इनका संक्रमण हवा तथा पत्तियों के आपस में टकराने से होता है। बरुथी के नर कम नुकसान पहुंचाते हैं। अधिकतर नुकसान मादा बरुथी तथा इनकी अपरिपक्व अवस्थाओं से होता है। छाया में उगने वाले पौधों पर इनका अधिक प्रकोप होता है।
प्रबंधन
सभी प्रकार की बरुथी के नियंत्रण हेतु उन्नत कृषि तरीकों के अलावा निम्र कीटनाशी जिन्हें एरेकीसाइड कहते प्रयोग किये जाते हैं।
– अधिक प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें।
– गंधक का चूर्ण 35 से 40 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से अथवा राख में 1: 4 के अनुपात में मिलाकर भुरकाव करें।
– गंधक के घुलनशील चूर्ण का 1.0 प्रतिशत का छिड़काव करें।
– दो प्रतिशत मिथाइल पैराथियान या मैलाथियान चूर्ण का 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें।
– फास्फोमिडान, फारर्मेथियान, डायमेथोएट अथवा डाइमिथियेट में से कोई भी एक कीटनाशी दवा 0.02 से 0.05 प्रतिशत का प्रयोग 10-15 दिन के अंतराल पर करें।