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फसल संरक्षण में पीड़क नाशकों की भूमिका

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सम्पूर्ण विश्व में अनुमानत: 70000 पीड़क प्रजातियां कृषि फसलों पर हानि करती हैं जिनमें 10000 प्रजातियां कीड़ों और बरूथियों (माइट्स) की हंै, 50000 प्रजातियां विभिन्न रोगाणुओं की हैं जबकि खरपतवारों की लगभग 10000 प्रजातियां कृषि फसलों की पीड़क पाई गई हैं। वैश्विक स्तर पर इन समस्त पीड़कों के नियन्त्रण हेतु लगभग तीस लाख मैट्रिक टन पीड़क नाशकों के उपयोग के उपरान्त भी सम्पूर्ण फसल उत्पादन का लगभग 42 प्रतिशत भाग नष्ट हो जाता है। इन पीड़कों में जन्तु पीड़कों (कीट तथा बरूथी) द्वारा 15.6 प्रतिशत हानि जबकि रोगाणुओं तथा खरपतवारों द्वारा की जाने वाली हानि क्रमश: 13.3 तथा 13.2 प्रतिशत आंकी गई है। भारतवर्ष में लगाये गये एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार हमारे देश में प्रमुख फसलों में विभिन्न पीड़कों द्वारा प्रतिवर्ष 689 अरब रूपयों की हानि खेतों में तथा 61 अरब रूपयों की आर्थिक हानि भण्डारण के दौरान की जाती है। वर्ष 2014 में उद्योग सगठन एसोचेम तथा यस बैंक के संयुक्त प्रयासों से किये गये अध्ययन में भारतवर्ष में प्रतिवर्ष इन पीड़कों से 50 हजार करोड़ रूपयों की हानि का अनुमान लगाया गया है। इसमे यह भी स्पष्ट किया गया है कि हमारे देश में कुल फसल उत्पादन का लगभग 30 प्रतिशत भाग इन पीड़कों द्वारा प्रतिवर्ष नष्ट कर दिया जाता है। अतएव, वर्तमान में जब हम राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा के प्रति चिन्तनीय हैं तो इस हानि को फसल संरक्षण उपायों को अपनाकर सुरक्षित करना परम आवश्यक है।
विभिन्न फसल संरक्षण उपायों को संतुलित और बुद्धिमत्तापूर्ण प्रयोग ही समन्वित पीड़क प्रबंधन माना जाता है। समन्वित पीड़क प्रबंधन में रसायनिक पीड़कनाशकों के आवश्यकता मूलक प्रयोग की अनुशंसा की जाती है। रसायनिक पीड़कनाशकों का उपयोग सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित विधि है तथा इनका समझदारी से किया गया संतुलित उपयोग फसल सुरक्षा हेतु असरकारक उपाय है।
भारतीय पीड़क नाशक उद्योग
भारतीय पीड़क नाशक उद्योग ने सन 1952 में कलकत्ता के समीप रिश्रा नामक स्थान पर बी.एच.सी. कीटनाशक उत्पादन संयन्त्र की स्थापना से आज दिनांक तक लम्बा सफर तय किया है। वर्तमान में रसायनिक पीड़कनाशकों के उत्पादन में एशिया में चीन के बाद भारत का द्वितीय स्थान तथा सम्पूर्ण विश्व में बारहवां स्थान है। भारत में उत्पादित कुल पीड़क नाशकों की आधी मात्रा निर्यात की जाती है। हमारे देश में रसायनिक पीड़क नाशकों में लगभग 65 प्रतिशत हिस्सा कीटनाशकों का है, जबकि खरपतवार नाशक एवं फफूंदनाशकों की क्रमश: 16 तथा 15 प्रतिशत की भागीदारी है। अन्य पीड़क नाशकों यथा चूहामार तथा सूत्रकृमि नाशकों का भाग 4 प्रतिशत है। वैश्विक स्थिति इस मामले में लगभग विपरीत है विश्व स्तर पर सर्वाधिक उपयोग (44 प्रतिशत) खरपतारनाशकों का है जबकि कुल पौध संरक्षण रसायनों के वैश्विक उपयोग में फफूंदनाशक तथा कीटनाशकों की हिस्सेदारी क्रमश: 27 एवं 22 प्रतिशत है।
उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप की अनुकूल मौसम स्थिति खरपतवारनाशकों के उपयोग की वृद्धि का कारण है जबकि बृहद स्तर पर जी.एम. फसलों के उपयोग के कारण इन देशों में कीटनाशकों की खपत अपेक्षाकृत कम है। भारतवर्ष में धान, कपास, गन्ना आदि फसलें प्रमुखता से उत्पादित किये जाने के कारण यहां कीटनाशकों का अधिक उपयोग किया जाता है। अपेक्षाकृत सस्ते मानव श्रम की उपलब्धता के कारण खरपतवार नाशकों का उपयोग कम हो पाता है, परन्तु अब यह स्थिति धीरे-धीरे परिवर्तित होती दिखाई पड़ती है।
भारतवर्ष रसायनिक पीड़क नाशकों के उपयोग में अनेक देशों से काफी पीछे है। हमारे देश में इन रसायनों का औसत उपयोग केवल 0.58 कि.ग्रा./हेक्टेयर ही है, जबकि वैश्विक उपयोग 30 किलो/हेक्टेयर है। रसायनिक पीड़कनाशकों के उपयोग में कोरिया (16.5 कि.ग्रा./हे.), जापान (10.8 कि.ग्रा./हे.), अमेरिका (4.5 कि.ग्रा./हे.) तथा यूरोप (3.0 कि.ग्रा./हे.) अग्रणी उपयोगकर्ता है।
पौध संरक्षण रसायनों के फसलवार उपयोग के आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि हमारे देश में इन रसायनों के कुल उपयोग का सर्वाधिक हिस्सा (50 प्रतिशत) कपास की फसल पर उपयोग किया जाता है, धान (18 प्रतिशत) का स्थान द्वितीय है भारतीय सब्जी एवं फल उत्पादक रसायनिक पीड़क नाशकों की कुल खपत का लगभग 14 प्रतिशत उपयोग करते हैं। फलदार वृक्षों, खाद्यान्न एवं तिलहनी फसलों पर उक्त उपयोग क्रमश: 8 तथा 7 प्रतिशत है।
रसायनिक पीड़क नाशकों के उपयोग में विभिन्न राज्यों में आन्ध्रप्रदेश प्रथम स्थान पर है जहां कुल राष्ट्रीय खपत का लगभग एक चौथाई (24 प्रतिशत) हिस्सा उपयोग किया जाता है। महाराष्ट्र (13 प्रतिशत), पंजाब (11 प्रतिशत), कर्नाटक एवं गुजरात (7 प्रतिशत) रसायनिक पीड़क नाशकों के प्रमुख उपयोगकर्ता राज्य हैं। मध्यप्रदेश एव छत्तीसगढ़ संयुक्त रूप से कुल राष्ट्रीय खपत का 8 प्रतिशत भाग उपयोग करते हैं। रसायनिक पीड़कनाशकों के कम उपयोगकर्ता राज्यों में तमिलनाडु, हरियाणा तथा पश्चिम बंगाल सम्मिलित है जोकि कुल बिक्री का 5 प्रतिशत से भी कम भाग उपयेाग में लाते हैं।
पौध संरक्षण रसायनों का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग
हाल ही के वर्षो में पौध संरक्षण रसायनों के उपयोग पर राष्ट्रीय बहस छिड़ी हुई है। पर्यावरणविद, वैज्ञानिक, पीड़कनाशक उद्योग आदि इन रसायनों के प्रभावों तथा दुष्परिणामों पर अपने अपने विचार रख रहे हैं। पर्यावरण के चिन्तक जहां एक ओर इन रसायनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए तत्पर हैं वहीं दूसरी ओर इनके उत्पादक इन रसायनों के पक्ष में वकालत करते नजर आते हैं वैज्ञानिक जगत इन पौध संरक्षण रसायनों के महत्व और आवश्यकता को महसूस करते हुए इन रसायनों के सही समय पर, उचित मात्रा में, आवश्यकता मूलक एवं संतुलित उपयोग का परामर्श देता है। समन्वित पीड़क प्रबंधन, जैविक पीड़कनाशकों का उपयोग तथा वानस्पतिक पीड़कनाशकों के प्रति जन जागरूकता बढ़ाने की दिशा में सार्थक प्रयास करना वर्तमान की आवश्यकता है। समन्वित पीड़क प्रबंधन एक निर्धारित एवं सर्वव्यापी तकनीक नहीं है अपितु इस कार्यक्रम में स्थान, फसल का प्रकार, पीड़कों की संख्या तथा उनसे होने वाली आर्थिक हानि को ध्यान में रखकर आवश्यक फेरबदल किया जाना महत्वपूर्ण है।

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