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पाले से फसलों का बचाव

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पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलसे हुए दिखाई देते हैं एवं झड जाते हैं। यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ जाते हैं। उनमें झाुर्रियां पड़ जाते हैं। यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ जाते हैं। उनमें झुर्रियां पड़ जाती है एवं कलियां गिर जाती है। फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं एवं बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं। दाने कम भार के एवं पतले हो जाते हैं रबी फसलों में फूल आने एवं बालियां/फलियां आने व बनते समय पाला पडऩे की सर्वाधिक सम्भावनाएं रहती हैं। अत: इस समय कृषकों को सतर्क रहकर फसलों की सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिये। पाला पडऩे के लक्षण सर्वप्रथम आक आदि वनस्पतियों पर दिखाई देते हैं।
पाले का पौधों पर प्रभाव शीतकाल में अधिक होता है। जब तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे गिर जाता है तथा हवा रूक जाती है, तो रात्रि को पाला पडऩे की सम्भावना रहती है। वेैसे साधारणत: पाले का अनुमान इनके वातावरण से लगाया जा सकता है। सर्दी के दिनों में जिस रोज दोपहर से पहले ठंडी हवा चलती रहे एवं हवा का तापमान जमाव बिन्दु से नीचे गिर जाये। दोपहर बाद अचानक हवा चलना बंद हो जाये तथा आसमान साफ  रहे, या उस दिन आधी रात से ही हवा रूक जाये, तो पाला पडऩे की सम्भावना अधिक रहती है। रात को विशेषकर तीसरे एवं चौथे पहर में पाला पडऩे की सम्भावना रहती है। साधारणतया तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाये, यदि शीत लहर हवा के रूप में चलती रहे तो कोई नुकसान नहीं होता है। परन्तु यही इसी बीच हवा चलना रूक जाये तथा आसमान साफ  हो तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए नुकसानदायक है।
शीत लहर एवं पाले से फसल सुरक्षा के उपाय : जिस रात पाला पडऩे की सम्भावना हो उस रात 12 से 2 बजे के आस पास खेत के उत्तरी पश्चिमी दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर बोई हुई फसल के आस-पास मेड़ों पर रात्रि में कूड़ा कचरा या अन्य व्यर्थ घास-फूस जला कर धुआं करना चाहिये ताकि खेत में धुआं आ जाये एवं वातावरण में गर्मी आ जाये। सुविधा के लिए मेड़ पर 10 से 20 फुट के अन्तर पर कूड़े-करकट पर ढेर लगाकर धुआं करें। धुआं करने के लिए उपरोक्त पदार्थों के साथ क्रूड ऑयल का भी प्रयोग कर सकते हैं। इस विधि से 4 डिग्री सेल्सियस तापक्रम आसानी से बढ़ाया जा सकता है।
पौधशालाओं के पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों/नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिए फसलों को टाट, पॉलीथिन अथवा भूसे से ढंक दें। वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ  यानि उत्तर-पश्चिम की तरफ  बांधें। नर्सरी किचन गार्डन एवं कीमती फसल वाले खेतों में उत्तर-पश्चिम की तरफ  टाटियां बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगायें तथा दिन में पुन: हटायें।
जब पाला पडऩे की संभावना हो तब खेत में सिंचाई करें। नमीयुक्त जमीन में कॉफी देरी तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है। इस प्रकार पर्याप्त नमी होने पर शीत लहर व पाले से नुकसान की सम्भावना कम रहती है। वैज्ञानिकों के अनुसार सर्दी में फसल में सिंचाई करने से 0.5 डिग्री से 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ जाता है।
जिन दिनों पाला पडऩे की सम्भावना हो उन दिनों फसलों पर गंधक के तेजाब के 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। इस हेतु  एक लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टर क्षेत्र में प्लास्टिक के स्प्रेयर से छिड़कें। ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगें। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शाीत लहर व पाले की सम्भावना बनी रहे तो गंधक के तेजाब को 15 से 15 दिन के अन्तर से दोहराते रहें।
सरसों, गेहूं, चना, आलू, मटर, जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक के तेजाब का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है बल्कि पौधों में लौह तत्व की जैविक एवं रसायनिक सक्रियता बढ़ जाती है जो पौधों में रोग रोधिता बढ़ाने में एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है।
दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिये खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेड़ों पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी अरडू एवं जामुन आदि लगा दिये जाये तो पाले और ठण्डी हवा के झौंकों से फसल का बचाव हो सकता है।

पाले से फसलों के बचाव के उपाय

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