धनुस्तंभ (टिटेनस) से घोड़ों का बचाव कैसे करें
आज मैं आपको घोड़ों के बारे में एक सच्ची घटना बताने जा रहा हूं। कुछ महिनों पहले हमारे पशुविज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय महू के पशुचिकित्सालय में सामान्य निरीक्षण के दौरान एक अश्व अपनी एक बाजू पर लेटा हुआ, जखडऩ महसूस करता हुआ मिला। सामान्यत: ऐसे लक्षण धनुस्तंभ या टिटेनस ग्रसित जानवरों में पाये जाते हैं जिसमें की सतत पेशी संकुचन होने के वजह से जखडऩ महसूस होती है। धनुस्तंभ को रोकने के कारगर उपाय उपलब्ध हैं। पर दुर्भाग्य से अश्व पालक भाई ने इसका टीका पीडि़त अश्व को दिया नहीं था। इसकी वजह अश्व पालक भाई को टीके के बारे में जानकारी ही नहीं होना था। इसीलिए मैंने आप सबको धनुस्तंभ के रोकथाम हेतु खासकर टीकाकरण के संबंध में इस लेख द्वारा जागरूक बनाने का प्रयास किया है। टीकाकरण ही बचाव का सर्वोत्तम तरीका है नहीं तो धनुस्तंभ से ग्रसित घोड़ों में हमेशा की तरह ग्रसित घोड़ों का मृत होना ही अपेक्षित है। धनुस्तंभ लगभग तीन हजार साल पहले इजिप्ट में पाया गया था और पुरानी सभ्यता इससे परिचित थी। प्रक्रिया किये गये धनुस्तंभ जीव-विष के खिलाफ निष्क्रिय कर देनी वाली प्रतिपिण्डे खरगोशों में पैदा होती है। ऐसा 1890 में वॉन बेहरींग और किटासाटो ने खोजा था। दो साल पश्चात बेहरींग ने भेड़ों और घोड़ों में इसका प्रयोग किया और तत्पश्चात् बड़ी मात्रा में इस तरीके का व्यवसायीकरण हुआ। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान घायल सैनिकों में इस धनुस्तंभ प्रतिपिण्डों का उपयोग हुआ। रामोन और झुअलर ने 1927 में धनुस्तंभ का टीका तैयार किया। धनुस्तंभ के टीकाकरण को धनुस्तंभ के खिलाफ एक प्रभावी और किफायती तरीका माना गया। अपने अस्तबल में अलग-अलग घोड़ों में अलग-अलग तरीकों से धनुस्तंभ का टीका लगाया जाता है। जैसे की प्रजनन योग्य घोड़ी अथवा घोड़ा, सामान्य घोड़ा, बछड़ा, अन्य में टीका एक या अनेक बार लगाया जाता है। यदि ऐसा कोई घोड़ा जिसे धनुस्तंभ का टीका पहले कभी नहीं दिया गया हो तो प्रथम धनुस्तंभ टीकाकरण के पश्चात ही टीके का असर प्रभावी रूप से देखा जा सकता है।
प्रथम धनुस्तंभ टीके के बाद दूसरा टीका हर साल दिया जाना चाहिए। यदि घोड़ों में कोई जख्म दिखती हो या नुकीली चीज से चोटॅॅॅॅॅॅॅॅॅॅॅॅॅॅॅॅॅॅॅलगी हो तो तुरंत धनुस्तंभ का टीका लगाना चाहिये। ऐसे घोड़ों में जिन्हें पहले कभी टीका नहीं दिया गया हो तो शुरूआत में प्रथम टीकाकरण के पश्चात 3 से 6 हफ्तों के बाद दूसरा टीका लगाना चाहिये। दूसरे टीके के पश्चात दो हफ्तों में ही टीका दिये गये घोड़ों में धनुस्तंभ के खिलाफ रक्षात्मक प्रतिपिण्ड तैयार हो जाती है। वर्धक टीके को जैसे पहले बताया जा चुका है। हर साल घोड़ों को लगाना चाहिये। प्रजनन हेतु उपयोग में लाये जाने वाली घोडिय़ों के संदर्भ में धनुस्तंभ का टीकाकरण और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। ऐसी घोडिय़ों में बच्चा जनने से 4 से 6 हफ्तों पहले धनुस्तंभ का टीका देना चाहिये क्योंकि पैदा हुए घोड़े के बच्चों को टीकाकृत माँ के खीश द्वारा धनुस्तंभ के प्रति रोग प्रतिकारक क्षमता प्रदान की जाती है। परंतु ऐसी खीश द्वारा मिली हुई रोग प्रतिकारक क्षमता 3 से 6 महीनों के घोड़े के बच्चों में धनुस्तंभ टीकाकरण प्रक्रिया में समस्या निर्माण कर सकती है। ऐसे में घोड़ा 6 महीनों का हो तभी उसे धनुस्तंभ का टीका लगाना चाहिए। धनुस्तंभ टीकाकरण किये गये घोड़ी द्वारा निर्मित बच्चों को 6,7 व 8 या 9 महीनों के आयु में तीन बार टीकाकरण करना चाहिये। धनुस्तंभ टीका न प्राप्त हुए घोड़ी द्वारा निर्मित बच्चों। बछड़ों को 3-4 या 4-5 माह के दौरान दो बार धनुस्तंभ का टीका देना चाहिये। तत्पश्चात हर साल धनुस्तंभ का टीका इन बछड़ों को मिलना चाहिए।
धनुस्तंभ के जीव-विष के विरूद्ध प्रतिकारक शक्ति को घोड़ों में वृहद-टीकाकरण के पश्चात निर्माण किया जाता है। ऐसी जीव-विष के विरूद्ध की प्रतिकारक शक्ति की एक शीशी में 1500 अंतर्राष्ट्रीय एकक की मात्रा टीकाकरण न हुये घोड़ों को धनुस्तंभ रोग के विरुद्ध तुरंत 2 से 3 हफ्तों तक सुरक्षा प्रदान करती है। जीव-विष के विरूद्ध की प्रतिकारक शक्ति केवल ऐसे बछड़े जो टीका न हुए घोडिय़ों से जन्में हों या ऐसे घोड़े जो पिछले एक साल में धनुस्तंभ की टीका न पाये गये हो उनमें ही उपयोगी है। ऐसे में धनुस्तंभ का टीका और जीव-विष के विरूद्ध की प्रतिकारक शक्ति को एक ही साथ अलग-अलग सुईयों से घोड़ंों में अलग-अलग जगह पर लगाया जाता है। जीव-विष के विरूद्ध की प्रतिकारक शक्ति यकृत को नष्ट कर सकती है पर ऐसा कुछ ही घोड़ों में पाया गया है। इसीलिए जीव-विष के विरूद्ध की प्रतिकारक शक्ति का उपयोग प्रभावी धनुस्तंभ टीका प्राप्त घोड़ों में नहीं करना चाहिए। धनुस्तंभ के बीजाणु मिट्टी, धूल, जानवरों की लीद तथा अस्पताल के आसपास पाये जाते है। त्वचा में होने वाले घाव से यह बीजाणु शरीर में जा सकते हैं और धनुस्तंभ रोग का कारण बन सकते हैं। इसीलिए किसान भाईयों अपने मूल्यवान घोड़ों को धनुस्तंभ से बचाने हेतु टीकाकरण का अवश्य उपयोग करें। धनुस्तंभ का टीका बहुत ही किफायती दरों में आपके नजदीकतम औषधालय में उपलब्ध है। अपने घोड़ों में टीका लगाने हेतु आप अपने इलाके के नजदीकी पशुवैद्य की सहायता ले सकते हंै अथवा पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान महाविद्यालय, महू के पशुचिकित्सालय में अपना घोड़ा/घोड़ी लाकर टीकाकरण सफलता पूर्वक कर सकते हैं।