तापमान वृद्धि का गेहूं की उत्पादकता पर प्रभाव तथा उसका जैव रसायनिक समाधान
गेहूं विश्व में सबसे पुरानी और सबसे महत्वपूर्ण अनाज की फसलों में से एक है। यह उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में उगाई जाने वाली रबी मौसम की फसल है। प्रागैतिहासिक काल में सर्वप्रथम पश्चिम एशिया से उद्भव होने के बाद आज गेहूं उत्तरी अफ्रीका, यूरोप और पूर्व एशिया के भागों में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। विश्व स्तर पर मानव आबादी का 40 प्रतिशत से ऊपर का मुख्य भोजन गेहूँ है। यह अन्य प्रमुख अनाज फसलों की तुलना में अधिक प्रोटीन युक्त होने के कारण, मानव भोजन में कैलोरी और प्रोटीन का मुख्य स्रोत है। अनुमानत: गेहूँ में लगभग 12-14 प्रतिशत प्रोटीन, 70-80 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 2 प्रतिशत वसा होता है। इसके अतिरिक्त गेहूं आवश्यक अमीनो अम्ल, खनिज, विटामिन, लाभकारी पादप रसायन और मानव आहार के लिए आहार रेशा घटक प्रदान करता है। उच्च तापमान विश्व के बड़े भाग में गेहूं की खेती के लिए बाधक साबित हो रहा है। उच्च तापमान के कारण गेहूं की उपज तथा गुणवत्ता में कमी आ रही है। वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार तापमान में प्रत्येक एक डिग्री की बढ़ोत्तरी, गेहूं के उत्पादन में लगभग 4 प्रतिशत की कमी कर देती है। भारत में गेहूं की उत्पादकता में उष्मीय तनाव एक बड़ी समस्या है। गेहूँ उत्पादन में गिरावट का मुख्य कारण प्रकाश संश्लेषण की दर में कमी, श्वसन में वृद्धि और विकसित बीजों में स्टार्च (शर्करा) के संचयन का अवरूद्ध होना है। उष्मीय तनाव पराग निष्क्रियता, वर्तिका सतह के सूखने और गेहूं में छद्य बीजों की स्थापना का कारण बनता है। उच्च तापमान पौधों की झिल्ली की तरलता और पारगम्यता को प्रभावित करती है जो कोशिका को क्षति पहुंचाती है। उच्च उष्मीय तनाव पादप कोशिका में विभिन्न प्रकार के सुपर ऑक्साइड, हाइड्रोजन परआक्साइड और हाइड्रॅक्सिल मूलक को उत्पन्न करता है जिन्हे सक्रिय ऑक्सीजन प्रजाति कहते हैंजो झिल्ली की वसा और वर्णक के स्वऑक्सीकरण के लिए उत्तरदायी होते हैं। अत: झिल्ली की अद्र्वपारगम्यता को प्रभावित करते हैं।
स्टार्च (शर्करा) गेहूँ के बीज का मुख्य घटक है जिसका गेहूं के आटे की गुणवत्ता और प्रकृति पर सीधा प्रभाव पड़ता है। उष्मीय तनाव स्टार्च कण के जैव संश्लेषण को प्रभावित करता है। गेहूं के भ्रूणपोष में (सूक्रोज) से स्टार्च बनाने वाले एन्जाइमों में घुलनशील स्टार्च सिंथेज उच्च तापमान के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होता है। कम स्टार्च का संचयन होने से बीज खोखले रह जाते हैं और गेहूं उत्पादन में गिरावट आ जाती है। उच्च तापमान में उगाये गये गेहूं की विभिन्न प्रजातियों की उष्मीय क्षमता में व्यापक बदलाव देखा गया है।
तापमान में अचानक वृद्धि सभी जीवों में तनाव प्रतिक्रिया को उत्प्रेरित करती है जिससे जीन की अभिव्यक्ति में बदलाव आता है। उष्मीय तनाव में आमतौर पर अधिकांश जीनों की अभिव्यक्ति बन्द हो जाती है और एक विशेष जीन समूह, उष्मीय आघात जीन का स्तर बहुत तेजी से बढ़ जाता है। उष्मीय आघात अनुलेखन कारक जलवायु तनाव के विरूद्ध जीन की अभिव्यक्ति को विनियमित करते हैं। उच्च तापमान के सम्पर्क में आने पर यह अनुलेखन कारक सक्रिय हो जाते हैं जो किसी भी जीव के शरीर में जीवन भर संरक्षित रहते हैैं। उष्मीय तनाव प्रतिक्रिया के कारण उष्मीय जीन की अभिव्यक्ति बढ़ जाती है। इन उष्मीय आघात अनुलेखन कारक की श्रृखंला पौधों में अनुलेखन स्तर पर दूसरे अनुलेखन कारकों के सहयोग से नियंत्रित होती है।
आणविक स्तर पर हाल ही में खोजे गये सूक्ष्म आर. एन. ए. जीन की अभिव्यक्ति को विनियमित करते है तथा इनका सम्बन्ध पौधों में विभिन्न तनाव प्रतिक्रियाओं में भी देखा गया है। सूक्ष्म आर. एन. ए. 18 से 25 न्यूक्लियोटाइड के छोटे, एक सूत्री अकूटलेखन आर. एन. ए. हैं जो अत्यधिक संरक्षित एवं नवीन वर्ग के सदस्य हैं। सूक्ष्म आर. एन. ए. जीन की अभिव्यक्ति को दो प्रकार से नियंत्रित करते हैं – एक संदेशवाहक आर. एन. ए. को अनुलेखन पश्चात क्षय करके और दूसरे अनुवादन की दर से गिरावट करके।
हाल ही में कई अध्ययनों द्वारा गेहूं में नवीन और संरक्षित सूक्ष्म आर. एन. ए. की खोज की गई है। सूक्ष्म आर. एन. ए. उन जीनों की अभिव्यक्ति को भी विनयमित करते है जो पौधों के विकास और दूसरे पादप शारिरिकी प्रक्रम को नियंत्रित करते है। अधिकांश सूक्ष्म आर. एन. ए. की अभिव्यक्ति में जो पौधों के वृद्धि एवं विकास से शामिल है, तनाव के दौरान मान्यकृत रूप से परिवर्तित होती है। अध्ययनों में यह देखा गया है कि जब सूक्ष्म आर. एन. ए. की अभिव्यक्ति कम होती है तो अनुलेखन पश्चात इसके लक्ष्य जीन अपनी अभिव्यक्ति को बढाते हैैं। किसी जीनोटाइप की उष्मीय क्षमता विभिन्न आनुवंशिक, पादप कार्यिकी और जैव रसायनिक पैमानों पर निर्भर है जो उष्मीय तनाव में प्रतिरक्षा प्रणाली को विनयमित करती है। गेहूं में उष्मीय तनाव से बचाव के लिए जल्दी परिपक्व होने वाली और उष्मा सहनशील जीनोटाइप विकसित करने की तत्काल और उष्मा सहनशील जीनोटाइप विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है।
उष्मा उत्तरदायी नवीन सूक्ष्म आर. एन. ए. का प्रयोग करके विभिन्न प्रकार के उष्मा उत्तरदायी लक्ष्य जीनो की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करके गेहूँ में उष्मीय क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। गेहूँ में जैव रसायनिक एवं आणविक स्तर पर उष्मीय आघात अनुलेखन कारकों, उष्मीय आघात प्रोटीन के प्रयोग द्वारा जीन संरचनाओं में बदलाव करके उष्मीय आघात के प्रति रक्षा प्रणाली में सहायता की जा सकती है।