Uncategorized

चीनी निर्यात की संभावनाओं की तलाश

Share

नई दिल्ली। घरेलू बाजार से सरप्लस चीनी के निर्यात के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। इनमें करीब 40 लाख टन चीनी का अनिवार्य निर्यात और वस्तु विनिमय के तहत कृषि उत्पादों के आयात के बदले चीनी का निर्यात शामिल हैं। वैश्विक कीमतों में गिरावट के कारण चीनी के निर्यात में मिलों को होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र चीनी पर उपकर बढ़ाने के बारे में विचार कर रहा है। इस समय चीनी पर उपकर 24 पैसा प्रति किलोग्राम है।
हालांकि प्रस्ताव पर अंतिम फैसला प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिए जाने की संभावना है, जिन्होंने गत दिनों संबंधित मंत्रालयों की उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता की थी। बैठक में प्रधानमंत्री ने चीनी के संबंध में वर्तमान आपूर्ति मुद्दों को ध्यान में रखते हुए ईंधन में एथनॉल का सम्मिश्रण बढ़ाने के लिये तत्काल प्रयास करने का आह्वान किया था। उन्होंने चीनी के निर्यात के लिये सभी संभावनाओं का पता लगाने के लिये भी जोर दिया था। प्रधानमंत्री ने केंद्र सरकार द्वारा जून 2015 में मंजूर किए गए छह हजार करोड़ रु. के प्रोत्साहन पैकेज के संबंध में हुई प्रगति की भी समीक्षा की। प्रधानमंत्री ने जोर दिया कि किसानों के हित को सर्वोपरि रखा जाए और चीनी क्षेत्र से संबंधित मुद्दों की नियमित रूप से निगरानी की जाए।
अधिकारियों ने कहा कि श्री मोदी का मानना था कि किसानों के हित में एक दीर्घकालिक समाधान खोजा जाना चाहिए, जिसमें एथेनॉल मिश्रण की अनिवार्य सीमा बढ़ाकर 10 फीसदी करना और सरप्लस चीनी का निर्यात को प्रोत्साहित करना है।
मंत्रालय के अधिकारी ने कहा है कि अनिवार्य निर्यात का नियम अगले फसल वर्ष यानी 1 अक्टूबर से लागू किया जा सकता है। हालांकि यह तभी लागू होगा, जब उत्पादन घरेलू मांग से अधिक होगा। हालांकि सूत्रों ने कहा कि यह मानते हुए कि चीनी की एक्स-मिल कीमतें वर्तमान स्तर से नीचे नहीं गिरती हैं और अंतरराष्ट्रीय बाजार स्थिर बना रहता है तो 40 लाख टन कच्ची चीनी के निर्यात में चीनी मिलों को होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई के लिए सरकार को 2,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे। हालांकि इस अनुमानित व्यय की भरपाई उपकर में बढ़ोतरी से नहीं हो पाएगी।
हालांकि उद्योग के अनुमानों के मुताबिक निर्यात प्रोत्साहनों से केवल उनका सरप्लस उत्पादन ही खप पाएगा। इससे घरेलू कीमतों को बढ़ाने में मदद नहीं मिलेगी, जो कई वर्षों के निचले स्तर पर आ गई हैं। सूत्रों के मुताबिक, खाद्य मंत्रालय उन देशों के साथ, जिनसे वह कृषि जिंसों का आयात करता है, वस्तु विनिमय प्रणाली के तहत चीनी के निर्यात की अनुमति देने की भी संभावना तलाश रहा है। पिछले छह वर्षों में सरकार द्वारा तय की जाने वाली गन्ने की कीमतें 70 फीसदी बढ़ चुकी हैं, जबकि चीनी की कीमतें गिरकर 2,200 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई हैं। वहीं चीनी की औसत उत्पादन लागत 3,100 रुपये प्रति क्विंटल है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरप्लस की मुख्य वजह गन्ने की ऊंची कीमतें हैं।

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *