गौपालन हेतु सुझाव
रोग प्रतिबंधात्मक टीका
कारण – प्रति वर्ष खुरपका, गलघोंटू तथा एक टंगिया बीमारी का टीका अपने सभी मवेशियों को अवश्य लगवायें। कृमिनाशक दवा – सभी मवेशियों में चार माह के अन्तराल में कृमिनाशक दवा अवश्य पिलायें।
बाह्य परजीवी नियंत्रण – शरीर के बाहर त्वचा में पाये जाने वाले बाह्य परजीवी किल्ली, पेसुआ, जंू आदि को नष्ट करने के लिए हर तीन माह के अन्तराल में कीटनाशक का छिड़काव मवेशी तथा पशुगृह में करें। मवेशियों के नस्ल सुधार और दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए गाय के गर्मी में आने पर उसे अच्छी नस्ल के संाड से लगाये या कृत्रिम गर्भाधान करवायें। एक गाय को प्रतिदिन 4 किलो सूखा चारा (गेंहू भुसा या पैरा कटिया), 10 किलो हरा चारा तथा एक किलो सान्द्र आहार दाने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा हर तीन किलो दूध उत्पादन हेतु एक किलो अतिरिक्त सान्द्र आहार दाने की आवश्यकता होती है। गाय को प्रति दिन 50 ग्राम खनिज लवण मिश्रण, 50 ग्राम नम तथा 2-3 बार भरपूर साफ पानी पीने के लिए दें। पशुगृह को साफ-सुथरा रखें। एक गाय को 3.5 वर्ग मीटर जगह की आवश्यकता होती है। गाभिन गाय को आखिरी 60 दिनों का शुष्क काल देना आवश्यक है। इस अवधि में गाय का दूध निकालना वैज्ञानिक विधि से बंद कर दें। गाभिन गाय को आखरी 90 दिनों में 2-3 किलो सान्द्र आहार दाना प्रतिदिन दें, जिसमें गर्भ के बछड़े का विकास अच्छे से हो सके और अगले ब्यांत में अधिक दूध उत्पादन मिल सके। मवेशी के बीमार होने पर तुरंत निकटतम पशु चिकित्सक से संपर्क करें। यदि नवजात पशु को सांस लेने में कठिनाई हो, तो मुंह तथा नाक में अंगुली डालकर म्यूकस (श्लेष्म) की सफाई करें। नाक में घास की पत्ती डालने से भी छींक आ जाती है तथा सांस ठीक होने लगती है। तारपीन के तेल से सीने में दोनों ओर मालिश करने पर भी सांस ठीक होने लगती है। नाभिनाल को दो इंच की दूरी में काटकर एंटीसेप्टिक टिंचर आयोडीन या टिंचर बेंचोइन लगायें। मां का पहला दूध जन्म होने के 15 से 30 मिनट के अन्दर पिलाएं। बच्चे के जन्म के पश्चात उसके वजन के हिसाब से (2 से 2.5 कि.ग्रा.) 24 घण्टे के अन्दर 3 से 4 बार पिलायें। बछड़ों को सातवें दिन सेे हरी मुलायम घास तथा 15वें दिन सेे सान्द्र आहार/ प्राथमिक दाना मिश्रण देना शुरू करें।
गौपालन हेतु सुझाव
पशुओं का प्राथमिक उपचार
- रक्तस्त्राव – कटे हुए स्थान के 2-3 से.मी. ऊपर व नीचे कसकर बांधना। फिटकरी या बर्फ से सिकाई करना। टिंचर बैन्जोइन रूई के फोहें में लेकर लगाना।
- आग से जलना व फफोले पडऩा – जले भाग पर ठण्डा पानी डालना या बर्फ से सिकाई करना। घावों को रगडऩे से बचायें। जले हुए भाग पर चूने का पानी व अलसी का तेल बराबर भाग में मिलाकर लगायें।
- पेट फूलना या अफारा – इस स्थिति में पीने के लिए पानी बिल्कुल नहीं दें। नमक 100 ग्राम, हींग 30 ग्राम, तारपीन का तेल 100 मि.ली. व अलसी का तेल 500 मि.ली. मिश्रण बनाकर पिला दे।
- लू लगना – पशु को छायादार स्थान पर रखें। ठण्डा करने के लिए बर्फ या ठण्डा पानी शरीर पर विशेष रूप से सिर पर डालें। गुड़, आटा व नमक का घोल पिलायें। पशुओं को पुदीना और प्याज का मिश्रण बनाकर खिलायें।
- ठण्ड लगना – गुड़ व हल्का गर्म पानी का घोल बार-बार पिलायें। अजवाइन, नमक और अदरक को गुड़ के घोल में पिलायें। तारपीन व सरसों के तेल में कपूर डालकर पशु की मालिश करें।
- दस्त लगना – गुड़, नमक व आटा का घोल पिलायें। चावल का माड़ पिलायें। खडिय़ा 100 ग्राम व कत्था 200 ग्राम मिलाकर पशु को दें।
- कब्ज होना – 100 ग्राम नमक, 15 ग्राम हींग, 50 ग्राम सौंफ को 500 ग्राम गुड़ में मिलाकर दिन में कई बार दें। इसके अलावा 300-400 मिली अरंडी का तेल दें।
- खुजली होने पर – एक लीटर अलसी का तेल और 300 ग्राम गंधक के पाऊडर का मरहम प्रभावित त्वचा पर लगायें पशु को चूने तथा गन्धक के पानी से नहलाया जा सकता है। इसके अलावा करंज, अलसी, देवदार तथा नीम का तेल भी प्रयोग किया जा सकता है।
- पेट के कीड़े – बछड़े के लिए एक गिलास में दो-तीन चम्मच नमक व 1 चम्मच पिसी राई पिलायें। सुपारी का चूरा (05 से 20 ग्राम) देने पर लाभ होता है। सरसों को पीसकर म_ा में पिलायें। नीम की पत्ती 250 ग्राम, प्याज की पत्ती 250 ग्राम खिलायें। वयस्क मवेशी के लिए- 250 मि.ली. म_ा, तीन चम्मच नमक, एक चम्मच राई को पिलाना, या आधा किलो मूली के पत्ते, $250 ग्राम प्याज खिलाना, या 10 से 20 ग्राम सुपारी का चूरा, या 25 ग्राम अमलतास के बीज $50 ग्राम गुड़ खिलाना, या 4 पलास के बीज का पावडर तीन चम्मच नमक $एक पाव पानी पिलायें।
- घाव होना – तारपीन के तेल में रूई लगाकर घाव में भरना। फिटकरी, हल्दी तथा नारियल तेल का लेप लगाना।
टीप: उपरोक्त प्राथमिक उपचार पशु चिकित्सक की देखरेख में सम्पन्न करायें।