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गेहूं में सिंचाई का महत्व

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रबी की फसलों में गेहूँ को ही सबसे अधिक सिंचाई से फायदा होता है। देशी उन्नत जातियों अथवा गेहूँ की ऊंची किस्मों की जल की अवश्यकता 25 से 30 से.मी.है। इन जातियों में जल उपयोग की दृष्टि से तीन क्रांतिक अवस्थाएं होती हैं। जो क्रमश:कल्ले निकलने की अवस्था (बुआई के 30 दिन बाद) पुष्पावस्था (बुआई के 50 से 55 दिन बाद) और दूधिया अवस्था (बुआई के 95 दिन बाद) आदि है। इन अवस्थाओं में सिंचाई करने से निश्चित उपज में वृद्धि होती है। प्रत्येक सिंचाई में 8 से.मी. जल देना आवश्यक है। बौनी गेहूँ की किस्मों को प्रारंभिक अवस्था से ही पानी की अधिक आवश्यकता होती है-क्राउन रूट (शिखर या शीर्ष जड़ें) और सेमीन जडें़ की अवस्था में शिखर जडोंं से पौधों में कल्लों का विकास होता है जिससे पौधों में बालियां ज्यादा आती हैं और फल स्वरूप अधिक उपज मिलती है। सेमीनल जडें़ पौधों को प्रारंभिक आधार देती हैं। अत: हर हालत में बुआई के समय खेत में नमी काफी मात्रा में होनी चाहिए। पलेवा देकर खेत की तैयारी करके बुआई करने पर अच्छा अंकुरण होता है। इन जातियों को 40 से 50 से.मी. जल की आवश्यकता होती है। और प्रति सिंचाई 6 से 7 से.मी. जल देना जरूरी है। अगर दो सिंचाइयों की सुविधा है तो पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिनों बाद प्रारंभिक जड़ों के निकलने के समय करें और दूसरी सिंंचाई फूल आने के समय यदि तीन सिंचाइयाँ करना संभव है तो पहली सिंचाई बुआई के 20 से 25 दिन बाद (शिखर जडें निकलने के समय), दूसरी  गांठों के पौधों में बनने के समय (बुआई के 60-65 दिन बाद) और तीसरी सिंचाई पौधों में फूल आने के बाद करनी चाहिये। जहां चार सिंचाईयों की सुविधा हो वहां, पहली सिंचाई बुआई के 21 दिन बाद शिखर जड़ों के निकलते समय, दूसरी पौधों में कल्लों के निकलते समय (बुआई के 40 से 45 दिनों बाद), तीसरी बुआई के 60-65 दिनों बाद (पौधों में गांठे बनते समय) और चौथी सिंचाई पौधों में फूल आने के समय करना चाहिए। चौथी और पाँचवी सिंचाई विशेष लाभप्रद सिद्ध नहीं होती है। इनको उसी समय करना चाहिए जब मिट्टी में पानी की संचय की शक्ति कम हो। बलुई या बलुई दोमट मिट्टी में इस सिंचाई की जरूरत होती है। पिछेते गेहँू में पहली पांच सिंचाइयां 15 दिनों के अंतर से करें। फिर बालें निकलने के बाद यह अंतर 9 से 10 दिन का रखें। पिछेते गेहूँ की दैहिक अवस्था पिछड़ जाती है और बालों का निकलना और दानों का विकास तो ऐसे समय पर होता है, जबकि वाष्पीकरण तेजी से होता है और ऐसी दशा में खेत में नमी की कमी का दोनों के विकास पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, और इसी लिए दाना सिकुड़ जाता है। इसीलिए देर से बोये गये गेहूँ में जल्दी सिंचाई कम दिनों के अन्तर से जरूरी है। सामान्यत: गेहँू की फसल में सिंचाई मुख्यत: बार्डर विधि में 60 से 70 प्रतिशत सिंचाई क्षमता मिल जाती है और क्यारी विधि की तुलना में 20-30 प्रतिशत बचत पानी की होने के साथ-साथ एवं श्रम की बचत भी होती है। जहां ढाल खेत की दोनों दिशाओं में हो वहां क्यारी पद्धति से सिंचाई करना लाभदायक है, जहाँ ट्यूब बेल द्वारा पानी दिया जाता है, वहां यह विधि अपनाई जाती है। जहाँ पर ज्यादा हल्की भूमि अथवा ऊबड़-खाबड़ हो वहाँ सिंचाई के लिए फुहार सिंचाई पद्धति सबसे उपयुकत होती है। इस विधि में 70-80 प्रतिशत सिंचाई क्षमता मिल जाती है।

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