गेहूं की लाभदायक श्रीविधि पद्धति
गेहूं सघनीकरण विधि के चरण: इस विधि के चरण शुरू करने से पहले यह समझना आवश्यक है, कि गेहूं की खेती के लिये किस प्रकार की जलवायु की आवश्यकता होती है। गेहूं मुख्य रूप से शीतोष्ण (ठंडे) जलवायु की फसल है। गेहूं के बीज 20-35 डिग्री सेल्सियस के ताप में अच्छी प्रकार से अंकुरित होते हैं। पकते समय अपेक्षाकृत उच्च तापक्रम की आवश्यकता होती है। आमतौर पर फसल के पकते समय अधिक तापक्रम व तेज हवाओं के कारण दाने पतले पड़ जाते हैं और फसल शीघ्र पक जाती है तथा उत्पादन घट जाता है। इसे किसान आम बोलचाल की भाषा में हवा लगना कहते हैं। गेहूं सघनीकरण विधि में इसका असर कम होता है। पकते समय वर्षा गेहूं के लिये बहुत हानिकारक होती हैं। इससे उपज की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।
भूमि का चयन : लवणीय, अम्लीय और जलरूद्ध भूमि को छोड़कर गेहूं की खेती अन्य सभी प्रकार की भूमि पर की जा सकती है। वैसे समुचित जल निकास वाली दोमट तथा मटियार दोमट भूमि अधिक अनुकूल होती है। गेहूं के लिये 6.0-8.5 पी.एच.मान की भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है। गेहूं की खेती जिस भूमि में की जाये व समुचित उर्वर होनी चाहिए। ऐसे खेत का चयन करें जहां पर जल भराव न हो और वहाँ से अनावश्यक जल की निकासी की सुविधा हो।
भूमि का समतलीकरण : गेहूं की खेती के लिये खेत समतल होना आवश्यक है। इससे खेत में एक समान रूप से पानी व खाद सभी पौधों को मिल जाते हैं। खेत समतल करने से खेत में कहीं भी जल जमाव नहीं हो पाता है तथा पौधों का विकास भी अवरूद्ध नहीं होता है। अगर खेत अधिक ढलान (विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में जैसे उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश) वाले हंै तो उनको छोटे-छोटे हिस्सों में विभाजित कर क्यारियाँ बनाकर समतल कर लें।
भूमि की गुणवत्ता में वृद्धि : गेहूं सघनीकरण विधि में जैविक तरीके से खेती करने पर जोर दिया जाता है। जिसका उद्देश्य गेहूं की उत्पादकता व उसकी गुणवत्ता बढ़ाने के साथ-साथ भूमि की गुणवत्ता भी बनाए रखना है। भूमि की उत्पादकतामें वृद्धि करने से पूर्व मृदा की जाँच कराना अति आवश्यक है। मृदा की जाँच कराने से उसकी वर्तमान उत्पादकता का पता चल जाता है। जिसके आधार पर हम उसमें सुधारों के उपायों का चयन ठीक प्रकार से कर सकते हैं। गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए फसल में 32-48:16-24:12-16 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की दर से क्रमश: नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। उपरोक्त पोषक तत्वों की पूर्ति जैविक खाद से किया जाए तो अच्छा रहता है। कम्पोस्ट खाद – 4-5 टन (3-4 ट्राली) अच्छी सड़ी गोबर की खाद प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिलानी चाहिए। अगर इसके साथ वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप कम्पोस्ट उपलब्ध हो तो उनको भी गोबर की खाद के साथ भूमि में मिला देना चाहिए। इससे मृदा की संरचना एवं उत्पादकता बेहतर होती है।
अन्य जैविक खाद : उपरोक्त खादों के अतिरिक्त भी दूसरे खाद जैसे हरी खाद, नीम की खली, भेड़ व बकरी की खाद एवं मुर्गियों की खाद का उपयोग भी भूमि की उर्वरता सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा कुछ तरल खाद जैसे पंचगव्य, अमृत घोल और मटका खाद जो बुवाई पूर्व तथा फसल में गुड़ाई के साथ क्रमश: डालने से भी भूमि की उत्पादकता सुधरती है और पौधों का विकास भी अच्छे से होता है।
बीज का चयन : बुवाई हेतु बीज की किस्म का चयन तात्कालिक परिस्थितियों (सिंचित/ असिंचित) के अनुरूप किया जाना चाहिए। बीज प्रमाणित व उन्नत किस्म का होना चाहिए। बीज स्वस्थ हो तथा उसमें अन्य प्रजाति के बीज मिश्रित न हो।
बीज उपचार : बीज का उपचार करना आवश्यक है। इसके लिए सर्वप्रथम बीज को 8-10 घंटे तक पानी में डुबो कर रखें। उसके बाद प्रति एक किलो गेहूं के बीज को 200-250 मि.ली. गौमूत्र एवं आवश्यकतानुसार पानी में मिलाकर उपचार करें। कुछ समय बाद बीज को निकाल दें तथा उसमें 250-500 ग्राम गुड़, 1 कि.ग्रा. वर्मी कम्पोस्ट खाद एवं 1 कि.ग्रा. राख मिलाकर बीज के ऊपर उसकी परत चढ़ायें और छायादार स्थान पर सुखायें। यह प्रक्रिया बुवाई के एक दिन पूर्व कर लेनी चाहिये। बीज उपचार करने से बीज के अंकुरण की क्षमता बढ़ती है तथा बीज से लगने वाले रोगों से फसल को बचाया जा सकता है।
बुवाई के समय खेत की तैयारी : मिट्टी को अच्छी भुरभुरी बनाने हेतु खेत की दो से तीन जुताई करके पाटा लगाना चाहिए जिससे खेत में ढेेले न रहें और खरपतवार कट कर मिट्टी में मिल जाएं। जहां पानी की सुविधा हो वहां बीज बुवाई से 10-15 दिन पूर्व खेत में एक सिंचाई कर देनी चाहिए। इसको आम भाषा में किसान पलेवा करना कहते हैं। इसके करने से खेत में खरपतवार शीघ्र उग आते हैं जिनको किसान बीज बुवाई से पूर्व जुताई के माध्यम से मिट्टी में मिला देता है।
बीज की मात्रा : गेहूं की अच्छी पैदावार लेने के लिये जलवायु एवं भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार उचित किस्म के बज का चयन एवं सही समय से बुवाई करना आवश्यक है। देर से बुवाई करने पर उत्पादन में कमी आती है। गेहूं सघनीकरण विधि में बीज की मात्रा, अपनायी गयी बीज से बीज व पंक्ति से पंक्ति की दूरी पर निर्भर करती है किसानों के यहां किये गए विभिन्न प्रयोगों के आधार पर पाया गया कि इस विधि में बीज की मात्रा, बीज से बीज एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी एवं एक स्थान पर बोये गये बीज की संख्या के अनुसार निम्न प्रकार हैं:
निष्कर्ष: इस नई पद्धति में गेहूं के एक पौधे से कम से कम 15-20 बालयिाँ आती हैं। गेहूं सघनीकरण पद्धति के सभी सिद्धांतों एवं चरणों का समुचित रूप से पालन करने पर कई पौधों में 35 व उससे भी अधिक बालियाँ निकल सकती हैं। पौधों में अधिक कल्ले, अधिक व लम्बी बालियाँ व दानों की अधिक संख्या एवं बड़ा आकार होने के कारण उत्पादन अधिक होता है। उपरोक्त विशेषताओं के कारण इस पद्धति से गेहूं की खेती करने से उपज बढ़ती है, भूमि की उर्वरता व संरचना सुधरती है तथा किसानों का आर्थिव व सामाजिक स्तर भी सुधरता है।