खुरपका – मुंहपका टीकाकरण के कुछ पहलू
किसान भाईयों, खुरपका एवं मुंहपका यह बीमारी एक प्रकार के विषाणु से होती है। यह विषाणु आमतौर पर खुरों वाले पालतू या जंगली जानवरों को अपनी चपेट में लेता है। भारत में खासकर गायों व भैंसों में यह बीमारी पायी जाती है। बाधित जानवरों के श्वास-उश्वास, पेशाब गोबर, दूध तथा उसके संपर्क में आने वाली वस्तुओं द्वारा भी यह विषाणु स्वस्थ पशु को संक्रमित करता है। बुखार आना, दूध उत्पादन में कमी होना, मुंह के छाले आने से खाना न खाना या कम खाना, पैरों में खुरों के बीच में घाव होना इसके कारण पशु को चलने में परेशानी होना यह खुरपका एवं मुंहपका विषाणु बाधित जानवरों में पाया जाता है। बकरी और भेड़ में भी यह बीमारी होती है परन्तु बाधित जानवर ऊपरी तौर पर स्वस्थ दिखते हैं। इनके अलावा शूकरों में भी यह बीमारी होती है। इस बीमारी को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा खुरपका एवं मुंहपका नियंत्रण कार्यक्रम देश के कई जिलों में चलाया जा रहा है। जिसमें खुरपका एवं मुंहपका रोग के प्रतिरक्षा हेतु टीका विकसित तथा प्रचलित किया जा रहा है। कभी-कभार यह टीका निजी संस्थाओं द्वारा भी विकसित किया और बेचा जा रहा है। टीकाकरण किये गए जानवरों में भी खुरपका एवं मुंहपका रोग के लक्षण पाये जाने से टीकाकरण के प्रति लोगों में निराशा आ सकती है और वह एकदम टीकाकरण न कराने का फैसला ले सकते हैं। तो किसान भाईयों चलिये जाने टीकाकरण के विफलता के क्या प्रमुख रहस्य हो सकते हैं।
टीका बनने के पश्चात इसे शीतगृह में रखा जाता है और जब तक टीके का प्रयोग नहीं किया जाता तब तक ठंडा ही रखा जाना चाहिए। कई बार ऐसा कर पाना संभव नहीं होता है। उपभोक्ता कड़ी में अज्ञान के कारण यह व्यवस्था विफल हो सकती है तथा टीका देने का तरीका हरेक संस्था द्वारा टीके की शीशी पर लिखा होता है तथा निर्देश दिये होते हैं। इसका सही पालन न करना भी दूसरा एक कारण हो सकता है। परन्तु किसान भाईयों इन सभी दिशा निर्देशों के पालन के पश्चात भी टीकाकरण प्रभावी न होने के और भी कई कारण हो सकते हैं।
खुरपका-मुंहपका रोग विषाणु राइबोस जीवनद्रव्य से बना होता है। खुरपका – मुंहपका रोग के विषाणु के उत्पत्ति के दौरान इन जीवन द्रव्यों में बदलाव होने से विषाणु में भी बदलाव आता है और इस वजह से विषाणु जनित प्रथीनों में बदलाव होता है। खुरपका-मुंहपका रोग के प्रतिरक्षा हेतु बनाने वाला टीका विषाणु के एक तरह के प्रथीनों से बनता है।
खुरपका-मुंहपका रोग के टीके में प्रकार-क के अलावा शेष तीन प्रकारों के ए,ओ. तथा एशिया-1 का समावेश होता है। इन स्थानों में जहां जानवरों में तीनों विषाणु के प्रकार पाये जाते हैं वहां उपरोक्त टीका लगाया जाता है। परन्तु पूर्व अध्ययनों द्वारा ऐसे जगह जहां केवल एक प्रकार के विषाणु का ही प्रकोप है ऐसा पाया गया है वहां टीके में एक ही प्रकार के विषाणु के प्रथीन (प्रोटीन) उपयोग में लाये जाते हैं। खुरपका एवं मुंहपका रोग के अर्थव्यवस्था पर होने वाले परिणाम के कारण भारत में इस रोग के अध्ययन हेतु परियोजना निदेशालय, भुक्तेश्वर लगातार ऐसे विषाणु प्रकार की खोज करता है जो कि टीके में होने से ज्यादा से ज्यादा जानवरों में प्रतिरक्षा मिल सकें। परन्तु फिर भी कभी-कभी विषाणु प्रकार उत्पत्ति दौरान बदलाव आने से टीकाकरण अयशस्वी होता है।
वर्तमान में टीके में होने वाले यह विषाणु के प्रकार के बदलाव के बारे में पहले से पता नहीं लगाया जा सकता इसलिए उपलब्ध टीकों का प्रयोग करना अनिवार्य और सर्वोत्तम है। कई बार ऐसा भी हो सकता है कि टीकाकरण के पहले ही पशुओं को विषाणु का संसर्ग हो गया हो और हम टीकाकरण या टीके को ही दोष देते हैं।
आज टीकाकरण के पहले ही कोई जानवर विषाणु से बाधीत है या नहीं इसकी जांच करना संभव हो सका है तथा टीका लगने पश्चात उसके प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली ने काम करना चालू किया या नहीं यह टीकाकरण के पहले और टीकाकरण के इक्कीस दिनों पश्चात उसी जानवरों की खून के जलमय पदार्थ की जांच से पता किया जा सकता है। जानवरों का खून एक घंटे तक पात्र में छोड़ दिया जाए तो वह जमकर एक पीले रंग का जलमय पदार्थ निकलता है उसी से यह जांच होती है। अपने कीमती दूध देने वाले जानवरों की खून की जांच कराना आवश्यक है। प्रारंभिक जांच हेतु आप अपने निकटतम पशुवैद्य से संपर्क कर सकते हैं या क्षेत्रीय रोग निदान प्रयोगशाला भोपाल से संपर्क कर सकते हैं। उनके दिशा निर्देशानुसार अथवा सूक्ष्म जीव शा विभाग, पशु विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय महू से भी संपर्क कर सकते हैं।