खरीफ में उर्वरक प्रबंधन
फसलों की औसत उपज बढ़ाने में उर्वरकों के योगदान से सभी भली -भांति परिचित हैं। फसलोत्पादन प्रमुख घटक बीज, सिंचाई एवं उर्वरक में 50 प्रतिशत से अधिक ‘रोलÓ उर्वरकों का होता है। खरीफ फसलों में मुख्यत: ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, अरहर, सूरजमुखी, मूंग, उड़द इत्यादि लगाई जाती है। अमूमन रबी की तुलना में खरीफ का क्षेत्रफल अधिक रहता है उसी मान से उत्पादन भी अधिक होना चाहिये परंतु प्रबंधन के अभाव में ऐसा नहीं हो पाता है। प्रबंधन में उर्वरक प्रबंध का विशेष महत्व होता है ताकि प्रति हेक्टर उत्पादकता बढ़ाई जा सके फसलों का अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिये फसल किस भूमि में लगाई गई है तथा क्या उसमें संतुलित आहार दिया गया ये मुद्दे बहुत मायने रखते हैं। मध्य प्रदेश में सोयाबीन, छत्तीसगढ़ में धान तथा राजस्थान में बाजरा खरीफ की प्रमुख फसलें होती हैं। जिनमें उर्वरक प्रबंध पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
सोयाबीन में अधिकतर बुआई के समय ही उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। वो भी यदि उर्वरकों की स्थापना बीज के नीचे की गई हो तो क्या कहने, बाद में सोयाबीन को इस मायने में देखने की जरूरत नहीं होगी। बाजरे में बुआई समय से ही उर्वरक दिया जाता है। सिंचित बाजरा में टाप ड्रेसिंग के बारे में सोचा जा सकता है परंतु धान एक ऐसी फसल है जिसमें नत्रजन की कम से कम दो ‘टाप ड्रेसिंगÓ करनी होती है। नत्रजन के रूप में यदि अमोनियम सल्फेट दिया गया हो तो भरे खेत में भी यदि दे दिया जाये तो पूरा-पूरा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। अमोनियम सल्फेट के अभाव में यूरिया उपयोग वो भी पानी से भरे खेत ऐसे ही होगा जैसे फूटे घड़े में पानी, इसलिये आवश्यक होगा यह जानना की यूरिया किस तरह दिया जाये। यूरिया डालने के पहले यथासम्भव यदि पानी खेत से खाली कर दिया जाये तो अधिक असरदार होगा। यूरिया को गीली मिट्टïी में मिलाकर उसके लड्डू जैसे बनाकर कुछ घंटे रखने के बाद बराबरी से खेत में बिखेर दिया जाये तो भरे पानी का डर नहीं होगा। उसकी उपयोगिता का दोहन पूरा-पूरा लिया जा सकता है।
धान की फसल में जिंक की कमी के लक्ष्य वर्तमान की ही नहीं बल्कि एक सदी की समस्या है परंतु उपचार उतना ही सरल है। बुआई के समय यदि जिंक सल्फेट 25 किलो प्रति हेक्टर का उपयोग नहीं किया गया हो तो रोपाई के 40-50 दिनों बाद दिया जा सकता है। खड़ी फसल पर 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट बराबर मात्रा में का चूना मिलाकर अथवा 0.1 प्रतिशत चिलेटेड जिंक 250 ग्राम/हेक्टर की दर से दो या तीन छिड़काव 10 दिनों के अंतर से किया जा सकता है। रसायनिक उर्वरकों के अलावा धान में हरी खाद, जैव उर्वरक, नील हरित काई, एजोला, पी.एस.बी. इत्यादि के उपयोग से आपेक्षित लाभ मिल सकता है। किसी कीमत पर सोयाबीन की खड़ी फसल पर यूरिया का उपयोग नहीं किया जाये अन्यथा बढ़वार अधिक होकर फूल-फल्लियों पर विपरीत असर होगा। सतत वर्षा के कारण सोयाबीन में जडग़ांठ यदि कम बन रहे हों तो 2 प्रतिशत यूरिया अथवा डीएपी के घोल का छिड़काव सोयाबीन के साथ-साथ अन्य खरीफ फसल जैसे बाजरा, ज्वार, अरहर, मूंग, उड़द इत्यादि पर भी किया जा सकता है। बाजार में तरल रूप में उर्वरक उपलब्ध है। उपरोक्त सभी करके हम खरीफ के अच्छे उत्पादन की कल्पना साकार कर सकते हैं।