Crop Cultivation (फसल की खेती)

खरपतवारों से बचाएं सब्जियां

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खरीफ मौसम में रबी मौसम की तुलना में खरपतवारों का प्रकोप अधिक होता है। सब्जियों में उगने वाले खरपतवारों को मुख्यत: चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है।
खरपतवारों से हानियां: खरपतवार जहां एक ओर फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करके मृदा में उपलब्ध पौधों के पोषक तत्वों, नमी एवं धूप का बड़ा हिस्सा पोषित कर लेते हैं, वहीं दूसरी ओर कीट-व्याधियों एवं बीमारियों के जीवाणुओं को भी आमंत्रित करते हैं, जिससे न केवल पैदावार में भारी कमी आती है बल्कि सब्जियों की गुणवत्ता में भी गिरावट आ जाती है।
सब्जियों में खरपतवारों की रोकथाम कब करें: खरपतवार नियंत्रण के लिये किसानों को यह जानकारी होनी चाहिये कि सब्जियों की किस अवस्था में खरपतवार सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं ताकि उस अवस्था में खेतों को खरपतवार रहित रखा जाये और समय पर निराई-गुड़ाई भी की जाये जिससे सब्जियों की अच्छी पैदावार हो सके। सब्जी की प्रमुख फसलों में खरपतवारों के नियंत्रण की महत्वपूर्ण अवस्था तथा उनसे होने वाली हानियों की जानकारी सारणी-2 में दी गई है।
खरपतवारों के रोकथाम के उपाय: सब्जियों में खरपतवार नियंत्रण निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:
शुद्ध एवं साफ  बीज का प्रयोग: सब्जियों की नर्सरी लगाते समय एवं सीधी बुआई के समय शुद्ध एवं साफ बीजों का प्रयोग करके खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।
मृदा को गर्मी देकर: सब्जियों की नर्सरी में खरपतवार नियंत्रण की यह एक प्रभा़वी विधि है। इसके द्वारा प्रमुख खरपतवारों का 75-100 प्रतिशत नियंत्रण हो जाता है। मई -जून में जब वातावरण में पर्याप्त गर्मी होती है, खेत की सिंचाई करके उसे पॉलीथिन की चादर से लगभग 30-35 दिनों के लिए ढक दिया जाता है, जिसके प्रभाव से मृदा का तापमान सामान्य से 10-12 डिग्री से.ग्रे. बढ़ जाता है। फलस्वरूप मृदा में उपस्थित खरपतवार के बीज सूख जाते हैं तथा उनकी अंकुरण क्षमता नष्ट हो जाती है।
ग्रीष्मकालीन जुताई: गर्मी के मौसम में खेतों की 3-4 बार हैरो या कल्टीवेटर से गहरी जुताई करने से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
उचित फसल चक्र अपनाकर: एक ही सब्जी को बार-बार एक ही खेत में उगाने से उसमें खरपतवारों का प्रकोप बढ़ जाता है तथा कीट एवं बीमारियां भी अधिक लगती है। इसलिए आवश्यक है, फसल चक्र अपनायें।
स्टेल सीड बेड: इस विधि में बुआई/रोपाई के पहले उगे खरपतावारों को यांत्रिक अथवा रसायनिक विधि से नष्ट कर दिया जाता है जिससे मुख्य फसल में खरपतवारों की मात्रा काफी कम हो जाती है।
हाथ से निराई-गुड़ाई: खरपतवारों पर नियंत्रण पाने की यह सरल एवं प्रभावी विधि है। सब्जियों की बुआई/रोपाई के 20-45 दिन के मध्य का समय खरपतवारों से प्रतियोगिता की दृष्टि से क्रांतिक समय है। परिणामस्वरुप आरंभिक अवस्था में ही फसल को खरपतवारों से मुक्त करना अधिक लाभप्रद होता है। रोपाई/बुआई 20-25 दिन बाद खुरपी से निराई करके खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। चूंकि सब्जियों की रोपाई/बुआई कतारों में की जाती है, इसलिए हाथ से चलने वाले निराई-गुड़ाई यंत्र से कतारों के बीच उगे खरपतवारों को काफी सीमा तक नियंत्रण किया जा सकता है। हाथ से निराई-गुड़ाई करने पर जड़ वाली/कंद वाली सब्जियों (मूली, गाजर, प्याज, लहसुन) को नुकसान होने (कट जाने) का भी डर रहता है। इसलिए इन यंत्रों का प्रयोग करते समय काफी सावधानी रखनी चाहिए। इसके अतिरिक्त यह विधि अधिक खर्चीली है तथा इसमें समय भी अधिक लगता है। भूमि में अधिक नमी होने की दशा में निराई-गुड़ाई वाले कृषि यंत्रों का प्रयोग संभव नहीं हो पाता है।
सहफसली खेती अपनाकर: दो या दो से अधिक सब्जियों को एक साथ उगाकर न केवल पैदावार में वृ़िद्ध होती है, बल्कि खरपतवारों पर भी नियंत्रण हो जाता है।
खरपतवारनाशी रसायनों द्वारा: इस विधि में प्रति हेक्टर लागत भी कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है। साथ ही खरपतवारों का प्रारंभिक अवस्था से ही प्रभावी नियंत्रण हो जाता है। इसके अतिरिक्त रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण से सब्जियों में लगने वाले रोगों के जीवाणुओं के फैलने की संभावना भी कम हो जाती है। मुख्य रूप से प्रयोग होने वाले शाकनाशी रयायनों को दो भागों में बंाटा जा सकता है।
(क) बोने से पहले प्रयोग किये जाने वाले: इस वर्ग में आने वाले शाकनाशी रसायनों को सब्जियों की बुआई से पहले खेत में डालकर अच्छी तरह से मिला देना चाहिये। इस समय भूमि में पर्याप्त नमी होना आवष्यक है।
(ख) बोने के बाद तथा उगने से पहले प्रयोग किये जाने वाले: इन शाकनाशी रसायनों को बुआई के 2 से 3 दिन बाद प्रयोग कर लेना चाहिये। इस समय भूमि में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है।
एकीकृत खरपतवार नियंत्रण:  खरपतवार नियंत्रण के विभिन्न तरीके एक साथ अपनाने से न केवल एक ही विधि से नियंत्रण पर निर्भरता कम हो जाती है बल्कि खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण हो जाता है। इसका मृख्य उद्देश्य खरपतवार नियंत्रण से शाकनाशी की मात्रा को कम करना है, जिससे इन रसायनों के पर्यावरण पर होने वाले दुष्परिणामों से बचा जा सके तथा खाद्य पदार्थो में इन रसायनों के अवशेष सीमित मात्रा में ही रहें।

सब्जिय़ों में खरपतवारों के नियंत्रण की महत्वपूर्ण समय अवधि तथा पैदावार में होने वाली कमी
सब्जी              खरपतवार नियंत्रण          खरपतवार से
की महत्वपूर्ण अवधि        उपज में कमी
(बुआई/रोपाई के              (प्रतिशत)
बाद दिन)
टमाटर                30-45                           40-70
मटर                   30-45                           25-35
भिण्डी                15-30                            50-60
प्याज                 30-75                            40-50
आलू                  20-40                            30-60
फूलगोभी           25-30                             50-70
पत्तागोभी         30-45                             35-70
मिर्च                  30-45                            60-70
बैंगन                 20-60                            70-80
गाजर                15-30                            30-60
लहसुन              30-60                           50-60
लोबिया             15-30                            40-50
राजमा               40-60                           60-70

 

सावधानियां

  • खरपतवारनाशी रसायनों की सिफारिष जिस फसल के लिए की गयी है, उसी में प्रयोग करें।
  • रसायनों की सिफारिश की गयी मात्रा, विधि एवं उपयुक्त समय का ध्यान रखें।
  • प्रस्तावित मात्रा में कम या अधिक रसायन डालने से विपरीत प्रभाव मिलता है तथा व्यर्थ खर्च होता है।
  • रसायनों को भोज्य पदार्थ, पशुओं के चारे आदि से बचाकर रखें।
  • दवा छिड़कने के लिए चपटी नोजल का ही प्रयोग करे ताकि रसायन पूरे खेत में समान रुप से पड़े।
  • तेज हवा या बादल होने की दशा में छिड़काव न करें।
  • स्प्रेयर को दवा छिड़कने से पहले एवं बाद में अच्छी तरह धो लें।
  • रसायन के डिब्बे पर दर्शायी गयी सावधानियां ध्यानपूर्वक पढ़ ले तथा उसके अनुसार ही दवा का प्रयोग करें।
  • सभी खाली डिब्बों को नष्ट कर काफी दूरी पर जमीन में गाड़ दें।
  • रसायन के छिड़काव के उपरान्त कपड़े धो लें तथा स्नान कर लें।
  • दवा डालते समय खाने की वस्तुओं का प्रयोग न करें।
  • दवा न तो चखें और न ही सूंघें। दोनों ही हानिकारक सिद्ध हो सकते है।
  • दवा छिड़कते समय दस्ताने, लम्बे जूते/बूट तथा लम्बी पोषाक का इस्तेमाल करें।
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