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कृषि उत्पादों में लाभ की गारंटी

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मध्यप्रदेश शासन किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की लागत के मुकाबले 150 प्रतिशत लाभ की गारंटी देने की ओर प्रयासरत है। यह एक साहसिक व सराहनीय कदम होगा। यदि इसका सही कार्यावरण हो जाता है तो किसानों को उनके उत्पाद का कुछ हद तक सही मूल्य मिलने की आशा बढ़ जायेगी। खेती को फायदे का व्यवसाय बनाने की ओर इस निर्णय का सकारात्मक प्रभाव तो पड़ेगा परंतु इसके साथ कुछ और भी ठोस निर्णय लेने होंग, ताकि उपभोक्ताओं के हितों का भी ध्यान रखा जा सके।
वर्तमान में सबसे चर्चित कृषि उत्पाद प्याज का उदाहरण लें ही तो हमें किसान के साथ होने वाले छल की स्थिति स्पष्ट हो जाती है। प्याज उगाने वाला किसान इसमें लगने वाली लागत को जुटाने व जोखिम को सहने का साहस करता है। चार-पांच माह तक परिश्रम व जोखिम के तनाव के बाद वह फसल तैयार कर पाता है। प्रबंधन में जरा सी चूक उत्पादन पर विपरीत प्रभाव डालती है। भंडारण के संसाधन व आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह बाजार में तुरन्त बेचने के लिये बाध्य रहता है। फसल आने के समय इस वर्ष प्याज के भाव 1000 से 2000 रुपये प्रति क्विंटल थे। इसमें लगी लागत को निकाल दें तो किसान को कठिनाई से 100-200 रुपये प्रति क्विंटल का ही लाभ मिल पाया। दूसरी ओर व्यापारियों ने फसल के समय प्याज खरीद कर 3-5 माह तक संग्रहित कर लिया। यह समय लगभग उतना ही है जितना किसान ने फसल उगाने में अपनी लागत व मेहनत कर लगाया। जबकि व्यापारियों ने 1000-2000 रुपये वाली प्याज को 3-5 माह तक भंडारण कर 50 से 80 रुपया प्रति किलो की दर से प्याज उपभोक्ताओं को बेची और 4000 से 6000 रुपए प्रति क्विंटल की दर से मुनाफा कमाया।
किसान को बाजार में बड़ी हुई कीमतों का लाभ नहीं मिल पाता है। किसान की मेहनत का लाभ व्यापारी अपना पैसा लगाने की क्षमता के कारण कई गुना उठा लेते हैं। भंडारण में होने वाले जोखिम इतने नहीं जो फसल उगाने में बीज बोने से लेकर उसके विपणन तक होते हैं, जो हैं भी वह नियंत्रित किये जा सकते हैं।
यह स्थिति सिर्फ प्याज उगाने वाले किसानों के ही साथ नहीं है। किसान कोई भी फसल उगाये ये परिस्थितियां उसके साथ जुड़ी हुई हैं। इसके निराकरण के लिये किसानों, उपभोक्ताओं के हित में कुछ ठोस निर्णय लेना अब आवश्यक हो गया है। देश व प्रदेश में एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ये भी है कि किसान अपने उत्पाद की कीमत स्वयं निर्धारित नहीं करता जबकि किसान फसल उत्पादन तथा उसके रोजमर्रा उपयोग में आने वाली वस्तुओं ट्रैक्टर, डीजल, कृषि रसायनों, कपड़े, तेल, साबुन, चीनी आदि के उत्पादक ही उसकी कीमत निर्धारित करते हैं। भले ही इन वस्तुओं के उत्पादन में उसी के द्वारा उत्पादित उत्पाद का उपयोग किया गया हो। परंतु किसान को अपने उत्पाद का मूल्य दूसरों द्वारा निर्धारित करने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
भारत सरकार द्वारा कृषि उत्पादों के न्यूनतम मूल्य प्रतिवर्ष घोषित किये जाते हैं। इसमें फसल उत्पादन की लागत का आकलन करते समय किसान की मेहनत का मूल्यांकन एक मजदूर के रूप में किया जाता है जबकि उसका मूल्यांकन एक प्रबंधक के रूप में होना चाहिए।

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