कम लागत में लंबे समय तक भूमि उपजाऊ रखने हेतु वरदान
हमारे देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या खेती एवं खेती आधारित कार्यों में लगी हुई है। आधुनिक समय में खेती में बहुत अधिक लागत लगती है इस कारण ग्रामीण लोगों का रुझान खेती की ओर से कम होता जा रहा है क्योंकि फसल खराब होने पर मध्यम व छोटे किसान कर्ज तले दब जाते हैं। इस कारण ग्रामीण शहरों की ओर पलायन कर जाते है जिससे शहरों में रहने की समस्या पैदा हो जाती है।
परम्परागत खेती में फसल कटाई के बाद जो फसल का भाग बच जता है उसको आग लगाकर साफ करते है जिससे वायु प्रदूषण के साथ-साथ मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं तथा खेतों को कम से कम तीन-चार बार जोतना पड़ता है। इसमें लगभग 3000 रु./ हेक्टेयर का अतिरिक्त खर्चा आता है जबकि खेती में बुवाई के लिये केवल इतनी ही जुताई की आवश्यकता होती है जिससे कि बीज को आवश्यक गहराई मिल सके। इस विधि को अपनाने से लगभग 2000 रु./ हेक्टेयर की बचत की जा सकती है इसके अलावा फसल कटाई के बाद शेष रह गया कचरा धीरे-धीरे खाद में परिवर्तित हो जाते हैं। इस विधि को अपनाने से काफी खाद की बचत हो सकती है। जमीन की जुताई कम से कम करने से पानी की आवश्यकता में भी 50 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है तथा इसको अपनाने के अन्य लाभ जैसे मिट्टी में उपस्थित किसानों के मित्र कहलाने वाले कीट जैसे केंचुआ, सूक्ष्म जीवाणु आदि भी अधिक संख्या में सुरक्षित रहते हैं। इस तरह की खेती करने पर खेती की लागत में 40-50 प्रतिशत की बचत की जा सकती है। तथा डीजल एवं अन्य के आयात पर किये जाने वाले खर्चे को कम किया जा सकता है। इस प्रकार की खेती यदि पशुचलित यंत्रों पर आधारित हो तो वह अधिक लाभकारी होगी। पशुओं से मिलने वाला गोबर खेत में बाहरी खाद की निर्भरता को घटाएगा जबकि पशुओं पर अधिक खर्च नहीं आता क्योंकि ये खेती में पैदा होने वाले फसल अपशिष्ट को खाकर ही अपना जीवनयापन करने में सक्षम होते हैं। इस प्रकार की खेती अफ्रीकन देशों में जहां पर मुख्य रूप से मक्का, गेहूं, ज्वार, लोबिया इत्यादि की खेती पशुचलित उपकरणों से की जाती है तथा यह 5 से 10 सालों से प्रचलन में है इस प्रकार की खेती करने के लिये परम्परागत कृषि यंत्रों को इस प्रकार सुधारा जाता है कि बुवाई के दौरान कम से कम मिट्टी का हेरफेर हो। खेती में लागत की कमी अधिक पैदावार, कम श्रम ग्रामीण युवकों को खेती की ओर आकर्षित करेगा। इससे वातावरण भी अच्छा रहेगा तथा ग्रामीणों का शहर की ओर पलायन रुकेगा जिससे शहरों की समस्या भी कम होगी। छोटे किसानों के लिये पशुशक्ति का उपयोग सबसे अच्छा विकल्प है जो सबसे सस्ता, टिकाऊ, लाभदायक और पर्यावरण अनुकूल है। पशुशक्ति और उचित कृषि मशीनीकरण तकनीक का उपयोग पूरी तरह से करने पर मौसमी मेहनत की लागत को कम किया जा सकता है और उत्पादकता और लाभ प्रदत्ता को भी बढ़ाया जा सकता है। अब सरकार और प्रशिक्षण सेवायें भी खेती के लिये बेहतर पशुशक्ति चालित प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है। कई क्षेत्रों में संरक्षण जुताई को अपनाया गया और बड़े पैमाने पर किसानों द्वारा अभ्यास भी कराया गया। पशुचालित संरक्षण खेती को अधिक प्रभावी रूप देने के लिये छोटे और सीमांत किसानों को प्रेरित किए जाने की आवश्यकता है। किसान यह नहीं जानते हैं कि परंपरागत विधि से खेती करने पर भूमि नष्ट हो रही है जिस पर किसान निर्भर है। अधिकांश किसानों ने यह अवलोकन किया है कि उनके खेतों में उत्पादकता में भारी गिरावट हुई है। हालांकि वे आमतौर पर विश्वास करते हंै कि यह एक प्राकृतिक और अपरिवर्तनीय प्रक्रिया है। संरक्षण खेती के तरीकों का लाभ साबित हो चुका है और छोटे किसानों के लिये यह अवसर देता है कि वे अपने उत्पादकता को बढ़ाये जिससे खाद्य सुरक्षा और सूखे में फसल के जोखिम की असफलता को कम किया जा सके। संरक्षण कृषि में कृषि कार्यों की विधि को एक लंबी अवधि में निरंतर श्रृंखलाबद्ध तरीके से किया जाना चाहिए।