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उर्वरक नहीं,उठाव का संकट

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भोपाल। इस वर्ष खरीफ सीजन में उर्वरक का संकट उपलब्धता में नहीं बल्कि अग्रिम उठाव में कमी के कारण आ सकता है। लेकिन अभी तक सरकार व किसान दोनों इसके प्रति गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं। उर्वरक प्रदायक व उर्वरक वितरण में लगी एजेन्सियां स्टॉक के लिये स्थान के संकट से जूझ रही हैं। सरकार का जोर केवल इस बात पर है कि प्रदेश में लक्ष्य के अनुरूप उर्वरक उपलब्ध हो जाये लेकिन प्रदायकर्ता अथवा वितरण एजेन्सी की व्यवहारिक समस्याओं से उन्हें कोई सरोकार नहीं है। खरीफ सीजन के लिये महत्वपूर्ण फास्फेटिक उर्वरक डीएपी का वितरण लक्ष्य इस वर्ष 4 लाख मी. टन निर्धारित किया गया है। शासन के निर्देशानुसार वितरण एजेन्सी ने प्रदायकर्ताओं के सहयोग से अभी तक लगभग 3 लाख मी. टन डीएपी की उपलब्धता प्रदेश में करा दी है। जिसके विरूद्ध सहकारी समितियों के माध्यम से केवल 45 हजार मी. टन डीएपी किसानों द्वारा खरीदा गया है। शेष डीएपी गोडाऊनों में भरा हुआ है जिसके कारण अब वितरण एजेन्सी और अधिक स्टॉक रखने की स्थिति में नहीं है। जिसके कारण प्रदायकर्ता प्रदेश में आपूर्ति के लिये हतोत्साहित हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में बोवनी के समय तेजी से उठाव की स्थिति में आपूर्ति एवं वितरण में एक गेप आ जायेगा जिसके कारण प्रदेश में डीएपी संकट खड़ा हो सकता है। लगभग यही स्थिति यूरिया में भी बन रही है, खरीफ में यूरिया की मांग तुलनात्मक रूप से कम रहती है। इस कारण वितरण एजेन्सियां स्थानीय स्तर पर यूरिया का अधिक स्टॉक करने से कतराती हैं। इधर प्रदेश सरकार के सहकारी एवं निजी क्षेत्र में प्रदाय के लिये 70: 30 के बाध्यकारी नियम के कारण प्रदायकर्ताओं को मजबूरी में रेक प्वाइंट के नजदीकी निजी क्षेत्र के बजाय दूर-दराज के सहकारी क्षेत्र में यूरिया पहुंचाना पड़ता है। जिससे उन्हें परिवहन अनुदान में नुकसान की संभावना होती है।

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