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आपसी सौहार्द्र का अर्थशास्त्र बनाम कैशलेस

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आज सरकार बार-बार जिस कैशलेस (नकदी रहित) व्यवस्था की ओर जाने के लिए कह रही है वह एक ऐसी कैशलेस व्यवस्था होगी जो बड़ी कंपनियों के नियंत्रण में रहेगी। पर एक अलग तरह की कैशलेस व्यवस्था बहुत पहले से हमारे गांवों में चली आ रही थी। यह गांवों की परंपरागत कैशलेस व्यवस्था आत्मनिर्भरता और आपसी सहयोग पर आधारित थी।
इस कैशलेस व्यवस्था में कैश यानि नकदी की न्यूनतम उपयोगिता के दो आधार थे। पहला आधार यह था कि प्रकृति व स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों की बेहतर समझ के आधार पर खेती-किसानी व इससे मिले जुले विभिन्न कार्य किए जाते थे। इस तरह स्थानीय नि:शुल्क प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग कर खेती-किसानी की जाती थी। इससे रसायनिक खाद- कीटनाशक दवा, बाहरी बीज, डीजल आदि खरीदने की कोई जरूरत नहीं पड़ती थी। इस तरह 90 प्रतिशत या उससे भी अधिक कृषि कार्य बिना बाहरी उत्पादों पर कोई नकदी खर्च किए ही हो जाता था।
पर पूंजीवादी व्यवस्था व उसके असर में चलने वाली सरकारों को यह स्वीकार्य नहीं था। पूंजीवादी सोच कहती है कि जब तक किसान और गांव आत्मनिर्भर हैं, तब तक उसका शोषण नहीं हो सकेगा। उसका शोषण तो तभी हो सकेगा जब वह बाजार पर अधिक से अधिक आश्रित होगा। अत: तरह-तरह की तिकड़म अपनाकर किसान व गांव की आत्मनिर्भरता को समाप्त किया गया व इस विनाशकारी कार्य को स्वीकृति दिलवाने के लिए इसे कृषि विकास हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, नीली क्रांति जैसे अनेक नाम दिए गए।
परंपरागत ग्रामीण व्यवस्था के कैशलेस होने का दूसरा मुख्य आधार यह था कि लोगों में आपसी सहयोग था। जब श्रम की अधिक जरूरत होती थी जैसे फसल की कटाई के वक्त, तो विभिन्न परिवार एक-दूसरे का बहुत हाथ बंटाते थे। इस कारण भारी कम्बाईन हारवेस्टर जैसी महंगी मशीनों को खरीदने या किराए पर लेने की जरूरत कभी नहीं पड़ती थी।
पर जब तक लोग आपसी सहयोग से ही अधिकतर काम मुकम्मल करते रहते हैं, तब तक पूंजीवादी व्यवस्था को गांव में दखल देने व पैर जमाने की जगह बहुत कम मिलती है। अत: पूंजीवादी व्यवस्था व उसके नियंत्रण में चल रही सरकारों के लिए यह भी जरूरी था कि गांववासियों के अपसी सहयोग की व्यवस्था को निरंतर कम किया जाए या तोड़ा जाए।
इस तरह गांवों में जो कैशलेस परम्परागत व्यवस्था आत्मनिर्भरता व आपसी सहयोग पर आधारित थी, वह पूंजीवादी व्यवस्था के लिए असहनीय थी। उसे पहले कमजोर किया गया व बाद में तोड़ दिया गया। इस तरह परंपरागत कैशलेस व्यवस्था कमजोर होती गई व उसकी जगह नगदी व बाजार का आधिपत्य हो गया।
अब इस स्थिति में निरंतर उग्र होते पूंजीवाद द्वारा जिस कैशलेस व्यवस्था की बात की जा रही है वह बहुत अलग किस्म की व्यवस्था है जो भूमंडलीकरण व बड़ी कंपनियों के नियंत्रण में रहेंगी। यह कैशलेस व्यवस्था आत्मनिर्भरता बढ़ाने वाली है। यह नई कैशलेस व्यवस्था बड़े कारोबारी के पक्ष में है, छोटे कारोबारियों के प्रतिकूल है और मॉल के पक्ष में है, गली-मोहल्ले की दुकान के विरुद्ध है।
जहां सरकार जोर-शोर से नई कैशलेस व्यवस्था के प्रचार से जुड़ी है, वहां उससे यह भी पूछना चाहिए कि परंपरागत कैशलेस व्यवस्था जो पहले से चली आ रही थी उसे किसने और क्यों तोड़ा?             (सप्रेस)

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