अरहर उत्पादन के विकल्प
भारत सरकार द्वारा अरहर की कीमतों में लगाम लगाने हेतु कई प्रयास करने के बाद भी अरहर के दामों को नीचे लाने में वह असफल रही है। वर्तमान में अरहर की दाल लगभग 165 रुपये प्रति किलो बिक रही है। कुछ स्टोर इसको स्थिति का फायदा लेकर 250 रु. प्रति किलो तक बेच रहे हैं। भारत सरकार द्वारा किये गये 10 हजार टन आयात के बाद भी इसके दामों में कमी नहीं आ पाई। वर्ष 2015-16 के लिये भारत सरकार ने खड़ी अरहर का समर्थन मूल्य 4425 रु. प्रति क्विंटल था। गेहूं चने को तो सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य में खरीदने के लिये व्यवस्था करती है परंतु अरहर व अन्य दलहनी फसलों के लिये यह व्यवस्था नहीं रहती। समर्थन मूल्य का कम होना तथा सरकार द्वारा खरीदी की कोई व्यवस्था न होना किसान को इस फसल को लेने के लिये प्रेरित नहीं कर पाता। यदि यही हालात बने रहे तो अरहर की उपलब्धता घटते चले जायेगी।
मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में अरहर क्रमश: 46413 व 53 हजार हेक्टर में उगाई जाती है और इसकी उत्पादकता क्रमश: 713, 665 व 558 किलो प्रति हेक्टर है। जबकि देश की अरहर की उत्पादकता 776 किलोग्राम प्रति हेक्टर है। पिछले 65 सालों में अरहर पर किये गये अनुसंधानों के बाद भी अरहर की उत्पादकता में कोई अन्तर नहीं आया। सन् 1950-51 में जब किसान के पास अरहर उत्पादन की कोई नई तकनीक नहीं थी और वह परम्परागत तरीके से खेती कर रहा था तब भी अरहर की उत्पादकता 788 किलोग्राम प्रति हेक्टर थी। उस समय मात्र 0.5 प्रतिशत क्षेत्र में अरहर की सिंचाई की जाती थी। अब लगभग 4 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई के बाद भी उत्पादकता में कोई वृद्धि नहीं हुई है। यह विफलता अनुसंधान की है या प्रयासों की?
यदि हमें देश की अरहर की मांग को पूरा करना है और आयात पर लगाम लगानी है तो हमें अरहर उत्पादन के लिये नये सिरे से सोचना होगा। उन्नत जातियों तथा उत्पादन तकनीक की विफलता से हमें सबक सीख कर हमें फसल संरक्षण की ओर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित करना होगा। अरहर में फली की मक्खी (जिसके प्रकोप का किसान को पता ही नहीं पड़ पाता) तथा उगटा रोग द्वारा अरहर की उत्पादकता बहुत अधिक प्रभावित होती है। इनके कारण अरहर की पम्परागत खेती करने वाले किसान इसे छोड़ चुके हैं। अरहर की खेती के लिये पुन: आकर्षित करना होगा।
अरहर का रकबा बढ़ाने के लिए सोयाबीन के किसानों को भी इसकी अंतरवर्तीय फसल लेने के लिये प्रेरित किया जा सकता है। वर्षो पूर्व इस क्षेत्र में किये गये अनुसंधान के अच्छे परिणाम प्राप्त हुए थे परंतु इन्होंने किसान के खेत में कार्यान्वित करने के प्रयास नहीं किये गये। यह अरहर के उत्पादन बढ़ाने का अच्छा विकल्प हो सकता है।