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अब जल संरक्षण की बारी

प्रकृति की क्षमता को कोई पार नहीं पा सकेगा। भारतीय कृषि में मानसून का दखल इतना अधिक है कि पल में तोला और पल में माशा जैसी स्थिति बन जाती है। आमतौर पर भारत में मानसून जून से सितम्बर तक यानी चार माह तक सक्रिय रहता है जो प्यासी धरती की प्यास बुझाने से लेकर खरीफ फसलों का पेट भी भरता है उनका लालन-पोषण करता है। हमारी कृषि प्रणाली में खरीफ से रबी जुड़ा है। यदि खरीफ का बैलेन्स बिगड़ा तो समझिये रबी की भी स्थिति डांवा डोल होकर रहेगी। माह जून जो करीब करीब सूखा गया जिसके कारण खरीफ फसलों की बुआई में बहुत देरी हुई। खरीफ की प्रमुख फसल सोयाबीन में अफलन व इल्ली के प्रकोप से ग्रसित सामने सबसे बड़ी चुनौती है, मुसीबत की मारी इन फसलों की सुरक्षा कैसे की जाये ताकि लक्षित उत्पादन के आसपास तक मामला पहुंच पाये फसलों के लिये जल ही जीवन है उसकी कमी या अधिकता दोनों फसलों के लिये उचित नहीं है। जुलाई के अंतिम सप्ताह तक बारिश के कारण पानी से फसलों को हानि होना निश्चित ही है परंतु उसे स्वयं के परिश्रम से बचाया भी जा सकता है। टी.वी. चैनलों पर हम जब वर्षा का तांडव देखते हैं तो बहुत दुख लगता है, लाखों- करोड़ों क्यूबिक फीट पानी समुद्र के पेट में समा जाता और साथ ले जाता है टनों से अनमोल मिट्टी जो हमारी फसलों के लिये उपयोगी है। पूरे-पूरे जल का संरक्षण तो शायद संभव नहीं है। परंतु गांव का पानी गांव में और खेत का पानी खेत वाली सलाह पर गहन चिंतन करके उसका अंगीकरण यदि सभी करने लगें तो बहते हुए इस वर्षा जल का कुछ हिस्सा हम बचा सकते हैं और उसका उपयोग सिंचाई के रूप में कर सकते हैं। हमारे पूर्वज भी यही करते हैं गांवों में बड़े-बड़े तालाब बनाकर खेत में डबरी का निर्माण करके कीमती जल का संरक्षण करते थे उसी परम्परा को हमें भी आगे बढ़ाना है और अंगीकरण करना है। पानी की हर बूंद कीमती है यह बात हर स्तर पर मान्य है बस जरूरत इतनी है कि उसको कैसे अपनाया जाये। थोड़ी देर के लिये कल्पना करें कि जून की तरह अभी भी मानसून नहीं आता तो क्या होता पीने के पानी तक को लोग तरसने लगे थे ऐसे उदाहरण हमारे पास हंै। खासकर महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में यह स्थिति आ चुकी थी प्रकृति को धन्यवाद मानसून का स्वागत जो आ गया और एक वर्ष के लिये तो पीने के पानी और फसलों के उत्पादन के लिये स्थिति बन गई। बोई गई फसल में कतारों में नाली बनाकर अतिरिक्त जल का निथार विशेषकर काली मिट्टी वाले खेतों में अनिवार्य माना जाये। इसके साथ-साथ निथरे जल को इकट्ठा भी किया जाये तो भविष्य में काम दे सके। कीमती जल का संरक्षण उसकी उपयोगिता का प्रतिशत बढ़ाता है इस कारण सभी संबंधितों को इसका पालन करना वर्तमान की जरूरत है। खाली पड़े खेतों में सतत बखर करके भूमि में नमी का संरक्षण करना भी रबी फसलों को पालने-पोसने के लिये जरूरी है।

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