State News (राज्य कृषि समाचार)

मक्का में फॉल आर्मीवर्म कीट की समस्या एवं प्रबंधन

Share

मक्का में फॉल आर्मीवर्म कीट की समस्या एवं प्रबंधन

मक्का में फॉल आर्मीवर्म कीट की समस्या एवं प्रबंधन – मक्का की फसल में फॉल आर्मी वर्म एक बहुत ही विनाशकारी कीट है जो फसल पर एक फौज (समूह) के रूप में आक्रमण करता है तथा फसल में एक गंभीर नुकसान करने की क्षमता रखता है, यह कीट बहुभक्षी होता है जो कि मक्का के अतिरिक्त गन्ना, ज्वार, बाजरा, या अन्य धान्य फसलों को नुकसान पहुंचाता है जिसके काटने चबाने वाले मुखांग होते हैं । इस कीट का वैज्ञानिक नाम स्पोडोप्टेरा फुजीपरडा है जो कि रात्रिचर होता है। सोयाबीन की उत्पादकता लगातार कम होने के कारण पिछले तीन वर्षों से किसान भाई मक्का फसल का उत्पादन अधिक रकबे में ले रहे हैं जिसके कारण इस कीट का प्रबंधन सही समय पर करना और भी महत्वपूर्ण हो गया है।

‘फॉल आर्मीवर्म’ कीट को भारत में पहली बार मई 2018 में कर्नाटक में मक्के की फसल में देखा गया था, उसके बाद ये कीट देश के कई राज्यों में तेजी से पैर पसार चुका है। पिछले वर्ष इस कीट का प्रकोप मध्य प्रदेश के मक्का उत्पादक जिलों में देखा गया है एवं इस वर्ष भी मक्का उत्पादन की दृष्टि से यह कीट एक बहुत ही गम्भीर चिंता का विषय है।
नुकसान करने वाली अवस्था: फॉल आर्मीवर्म की हानिकारक अवस्था केवल इल्ली या लार्वा अवस्था ही मक्का की फसल को नुकसान पहुंचाती हैं।

नुकसान की प्रकृति: यह कीट मक्के के छोटे-छोटे पौधों को जड़ से ही काटकर खेतों में गिरा देते हैं, एवं पौधे कि प्रारंभिक अवस्था में इल्लियां समूह में पत्तियां खुरचकर हरा भाग खाती हैं जिसके फलस्वरूप सफेद धब्बे दिखाई देने लगते हैं, इल्लियों पौधे की पोंगली के अंदर छुपी रहती है, बड़ी इल्लियाँ पत्तियों को खाकर उसमे छोटे से लेकर बड़े गोल छेद कर नुकसान पहुंचाती है इल्लियों की विष्ट भी पत्तियों पर साफ दिखाई देती है बड़ी अवस्था की इल्लियाँ भुट्टों एवं मंजरियों को भी खाकर नुकसान पहुंचाती है।

फॉल आर्मीवर्म की पहचान

फॉल आर्मीवर्म कीट की इल्लियाँ मुलायम त्वचा वाली होती हैं और बढऩे के साथ ही रंग में हल्के हरे या गुलाबी से लेकर भूरे रंग के हो जाते हैं। और प्रत्येक उदर खंड में चार काले धब्बों और पीठ के नीचे हल्की पीली रेखाओं से पहचाने जाते हैं। इसकी पूछ के अंत में काले बड़े धब्बे होते हैं जो कि उदर खंड आठ पर वर्गाकार पैटर्न और उदर खंड नौ पर समलंबाकर आकार के में व्यवस्थित होते हैं, जिसकी वजह से यह आसानी से किसी भी अन्य प्रजाति से अलग पहचाना जा सकता है। सिर पर आंखों के बीच में अंग्रेजी के वाई आकार की एक सफेद रंग की संरचना बनी होती है।

जीवन चक्र : फाल आर्मी वर्म का जीवन चक्र ग्रीष्मकाल में लगभग 30 दिनों तक होता है बसंत एवं शरद ऋतु में जीवन काल 60 दिनों का हो जाता है तथा शीतकाल में यह बढ़कर 80 से 90 दिनों का होता है मौसम के अनुसार इस कीट की कई पीढिय़ां होती है।

अंडे : इसके अंडे उभरे हुए डोम के आकर के होते हैं जिसकी गोलाई 0.4 एवं ऊंचाई 0.3 मिमी होती है मादा अंडे समूह में पत्ती के निचली सतह पर देना पसंद करती है परंतु अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों की ऊपरी सतह एवं तनों पर भी देती है गर्म वातावरण में अंडकाल 2-3 दिनों का होता है।

इल्ली: अंडे से निकली इल्लियाँ हलके प्ले रंग की होती है तथा सिर का रंग काला एवं नारंगी होता है इल्ली के बढऩे के साथ साथ हरा, पीला एवं काला रंग हो जाता है व्यस्क इल्ली का रंग हलके भूरे से गहरा भूरा होता है पूर्ण विकसित इल्ली 30 से 36 मिमी लम्बी होती है इल्ली अवस्था वातावरण के अनुसार 12 से 20 दिनों की होती है।

शंखी: पूर्ण विकसित इल्ली भूमि में मिट्टी एवं रेशमी से कोय बनाकर शंखी में परिवर्तित हो जाती है शंखी अवस्था 7 से 35 दिनों की होती है जो कि बाहरी वातावरण एवं तापक्रम पर निर्भर करती है।

व्यस्क पतंगा : व्यस्क पतंगा रात्रिचर होता है इसकी लम्बाई 2 से 3 सेमी तथा पंख फैलाने पर लम्बाई 3 से 4 सेमी होती है इसके अग्र पंख गहरे भूरे, धूसर काले रंग के हलके तथा गहरे चित्तेदार होते है नर पतंगे के अग्र पंख मटमैला सफेद रंग का होता है तथा किनारे पर भूरी लकीर होती है पतंगे 2 से 3 सप्ताह तक जीवित रहते है।

प्रबंधन :

  • मक्का के साथ अंतरवर्तीय दलहनी फसलें (अरहर, मूंग अथवा उड़द) लगायें।
  • पक्षियों के बैठने के बैठने के लिए ञ्ज आकार की खूटियां 30 दिन की अवस्था तक 100 खूटी/एकड़ की दर से लगायें।
  • गेंदा या सूरजमुखी ट्रेप फसल के तौर पर मक्के के खेत के चारों ओर लगायें।
  • खेत की साफ सफाई का ध्यान रखें एवं संतुलित मात्र में उर्वरकों को प्रयोग करें, विशेषकर नत्रजन अधिक न हों।
  • हाथ से इल्ली एवं अण्डों के समूह को नष्ट करें।
  • प्रारंभिक अवस्था में लकड़ी का बुरादा, राख अथवा बारीक रेत को पोंगली में डालें।
  • नर वयस्क कीट को नियंत्रण में करने के लिए 15 फेरोमोन प्रपंच/एकड़ की दर से लगायें।
  • प्राकृतिक शत्रुओं की संख्या बढ़ाने के लिए अंतरवर्तीय दलहनी फसलें साथ में लगायें तथा पुष्पीय पौधे (सूरजमुखी) आस-पास लगायें।
  • अंड परजीवी ट्राईकोग्रामा प्रोटीओसम अथवा टेलीनोमस रीमस को 50,000 प्रति एकड़ की दर से प्रति सप्ताह विमोचित करें।
  • जैविक कीटनाशी मेटारीजम एन्सीपोलीमेटाराइजियम एनिसोप्ली अथवा बेवेरिया बेसियाना का छिड़काव करें।
  • रासायनिक कीटनाशी थायोमेथाक्सम 12.6त्न+ लेम्डासाईहेलोथ्रिन 9.5त्न या स्पाईनोटेरम 11.7त्न का छिड़काव करें।
Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *