लोकतंत्र में जागीरदारी प्रथा चल रही है
- ध्रुव शुक्ल
लोकतंत्र में जागीरदारी प्रथा चल रही है – हमारे देश में अभी भी ऐसे ताक़तवर परिवार हैं जिनकी छत्रछाया में ही प्रादेशिक राजनीतिक दलों का गठन हुआ है। जहाँ इन परिवारों के वंशजों के नेतृत्त्व में ही सरकारें बनती आयी हैं। ये परिवार भाषायी विवाद और जातियों के स्वाभिमान के नारे उछालकर अपने विपुल धनबल से चुनावों में विजय पाकर पूरे देश के जन-जीवन की कोई परवाह नहीं करते। वे अपने प्रांतीय कुएँ में ही रहते हैं, उन्हें बहुरंगी देश और उसकी बोली सुनाई नहीं देती और वे अपनी प्रादेशिक ताक़त की धमक दिखाकर देश में बनने वाली केन्द्र सरकार में अपनी हिस्सेदारी पाने में भी नहीं चूकते।
महत्वपूर्ण खबर : रबी फसलों के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने सुझाई
जब भी कोई इन पारिवारिक दलीय गिरोहों की करतूतों पर सवाल उठाता है तो ये लोग उस आदमी का अपने राज्य में जीना मुश्किल कर देते हैं। ये परिवार संवैधानिक लोकतंत्र में सत्ता पाकर अभी भी जागीरदारों जैसा व्यवहार करते हैं। लोगों को अपने आगे झुकने के लिए विवश करते हैं।
हम भारत के लोग यह अलोकतांत्रिक और सांप्रदायिक तमाशा देख रहे हैं और इन क्षत्रपों के राजकाज की मनमानी पर कोई सवाल भी नहीं उठा रहे। हम देख रहे हैं कि देश में सबको समान अभिव्यक्ति का हक़ देने वाला संविधान होते हुए भी अनेक प्रांतों में कुछ परिवारों की ऐसी दबाव रखने वाली जागीरदारी प्रथा चल रही है जो किसी को उनकी आलोचना करने की भी छूट नहीं देती।
इस जागीरदारी पर सवाल उठाने वालों को ये जागीरदार बदले की भावना से इतना सताया करते हैं कि उनकी जान पे बन आती है। ईश्वर और संविधान की शपथ लेने के बाद भी इनकी जागीरदारी मानसिकता नहीं बदलती। ये कुटिल क्षेत्रीय परिवार अपने सामंती अहंकार से लोकतंत्र को कुचलते रहते हैं। ये दल क्षेत्रीय आवाज़ के नाम पर बनते हैं पर वहाँ असहाय लोगों की बेबसी आज तक दूर नहीं हुई।
हमारे देश में अकेली काँग्रेस में परिवारवाद ढ़ूँढने का राजनीतिक फैशन चला हुआ है। पर इस प्रांतीय राजनीतिक परिवारवाद पर कोई सवाल नहीं उठाता। खुद काँग्रेस इस प्रांतीय परिवारवादी राजनीति से समझौते करने लगी है। भाजपा भी इन क्षेत्रीय परिवारवादियों में अपनी शरण खोजती रहती है। कुल मिलाकर देश में लोकतंत्र को सफल बनाने की अभिलाषा किसी राजनीतिक दल में नहीं दीखती। अगर भारत के लोगों को अभी भी लोकतंत्र की फिक़्र नहीं है तो इसका बचा-खुचा मूल्य भी जल्दी ही मिट जायेगा।