विनोद के. शाह, मो. : 9425640778
देश में लोकसभा चुनाव के बाद केन्द्र सरकार में मंत्रियों के विभागों का वितरण हो गया है। लेकिन मप्र में लोकसभा चुनाव के समय कर्जमाफी प्रक्रिया को चुनाव आचार संहिता के कारण रोका गया था वह वापिस पटरी पर नहीं आ सकी है। जबकि चुनाव आयोग ने चुनाव चरण के पूरा होने के साथ कर्जमाफी प्रक्रिया पर से रोक हटा ली थी। राज्य के किसान के समक्ष कर्ज को लेकर परिस्थितियां बड़ी ही असहज बनी हुई है। कर्ज माफी के पात्र अंधिकांश किसानों को अभी तक यह नहीं मालूम कि उनका कितना कर्ज माफ हुआ है एवं उसे कितना वापिस लौटाना है, जबकि कृषि ऋण अदायगी की अंतिम तिथि 15 जून निर्धारित है।
चुनाव आयोग ने आचार संहिता के दौरान योजना पर सीधा लाभ देने, जिससे मतदाता प्रभावित हो उस पर रोक लगाई थी। न कि विभागीय स्तर पर योजना की प्रक्रिया को पूर्ण करने में! शासकीय मशीनरी के पास पर्याप्त समय था कि वह इसकी पूर्ण तैयारी करता एवं आचार संहिता के समाप्ति पर मात्र एक क्लिक पर पात्र किसानों को एक साथ योजना का लाभ दिया जाता। सरकार की घोषणा पर राज्य का किसान अभी भी असमंजस में है कि ऐन वक्त में वह कर्ज की अदायगी कैसे करें। जबकि हाल के दिनों में समर्थन मूल्य पर विक्रय की गई उसकी दलहनी एवं तिलहनी फसलों का भुगतान भी लटका हुआ है। राज्य सरकार की इस सम्बंध में चुप्पी किसानों को मुश्किल हालात में डालने वाली है। मानसून के पूर्व किसानों को अपने खेतों को तैयार करना है तो आगामी फसल की बुआई के लिए उसके पास सीमित समय हैं। पात्र किसान को यह भी नहीं मालूम कि वह कर्ज की अदायगी करें या अपने सीमित धन से आगामी फसल के लिये बीज, डीजल सहित अन्य आवश्यक संसाधन जुटाये। गत वर्ष तत्कालीन मप्र सरकार की सोयाबीन फसल की मंडी विक्रय पर 500 रुपये तक बोनस घोषणा पर वर्तमान कमलनाथ सरकार की चुप्पी राज्य के किसानों के लिए कम दुखदायी नहीं है। यदि राज्य के हालात ठीक नहीं है तो हाल के सीजन में गेहूं खरीदी पर 160 रुपये की बोनस घोषणा में अनुपालन के हालात भी संदिग्ध से दिखाई देते है। केन्द्र सरकार द्वारा लघु किसानों के लिये घोषित सालाना 6000 रुपये की किसान सम्माननिधि की एक भी किस्त राज्य के किसानों को अब तक नहीं मिल सकी है। इसके पीछे का कारण भी यह रहा है कि समय पर राज्य सरकार ने प्रदेश के लघु किसानों की सूची केन्द्र सरकार को उपलब्ध नहीं कराई थी। चंूकि अब यह लाभ किसानों को त्वरित उपलब्ध होना चहिये। लेकिन इस पर भी राज्य सहित केन्द्र सरकार की सम्पूर्ण मशीनरी सुस्त बनी हुई है। किसान न केवल अन्नदाता है। बल्किउसकी लोकतंत्र के निर्माण में एक अहम भूमिका रही है। राज्य के विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों में किसानों ने एक निर्णायक भूमिका अदा की है। इसलिये राज्य के किसानों पर चुनावी दाव खेलकर, दूर हट जाना लोकतंत्र में चुनी सरकारों के लिये ठीक नहीं है। केन्द ्रएवं राज्य सरकारों की विपरीत चालों में उलझता किसान अब समझदार है। उसे अधिक सताना सरकारों के लिए ठीक नहीं है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं कृषि मामलों के जानकार है। email:shahvinod69@gmail.com)