Crop Cultivation (फसल की खेती)

सरसों के मुख्य रोग एवं नियंत्रण

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अल्टरनेरिया झुलसा: सरसों का यह रोग बहुत ही महत्वपूर्ण है और इस रोग के लगने से 15-71 प्रतिशत तक उत्पादन में कमी हो जाती है। इस रोग का मुख्य लक्षण पौधे के पूरे भाग में दिखाई देता है तथा सबसे पहले यह रोग पत्तियों पर दोनों तरफ गहरे या भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। जिसमें गोल-गोल झल्ला जैसा स्पष्ट नजर आते हैं जो कि आगे चलकर तने एवं फलियों पर भी फैल जाते हैं तथा यह रोग सरसों,राई एवं बांकला पर भी लगता है।

रोकथाम

  • रोग वाले भाग को मिट्टी के गड्ढे में दबा दें।
  • गर्मी के समय में 1-2 जुताई करें तथा समय से सरसों की बुवाई करें।
  • सरसों की फसल पर इंडोफिल एम-45 (2 किलोग्रम) को 1000 लीटर पानी में घोलकर उस समय प्रयोग करें जब फसल में 75 प्रतिशत फूल आ चुके हों इसके बाद 10-12 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करें। या फिर मैन्कोजेब  0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें।
कड़ाके की सर्दी पडऩे से सरसों समेत हरी सब्जियों की खेती में काफी नुकसान हो रहा है जिससे किसानों की मुश्किल बड़ती जा रही है और कई हिस्सों में सर्दी तथा ठंडी हवाओं के चलते तापमान 4 डिग्री से नीचे तक जा सकता है जिसके कारण कई किसानों को आलू, चना, सरसों आदि फसलों के नुकसान होने के साथ ही उन पर रोग का खतरा बड़ता जा रहा है तथा तापमान गिरने से सरसों में तना सडऩ रोग तेजी से फैल रहा है दरअसल सर्दी आते ही सरसों में कई तरह के रोफ लग जाते हैं। जिससे फसल को काफी ज्यादा नुकसान होता है।  सरसों की फसल में लगने वाले मुख्य रोग एवं उनका निदान इस प्रकार है –

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मृदुरोमिल आसिता: सरसों का यह रोग मृदुरोमिल आसिता तथा इस रोग के लगने से 20-45 प्रतिशत तक उत्पादन में कमी हो जाती है। और यह रोग भी फफूंद के कारण लगता है। रोग का लक्षण सबसे पहले नयी पत्तियों के निचली सतह पर बैंगनी भूरे रंग के छोटे गोल धब्बे बनते हैं। जो कि आकार में बढ़ जाते हैं। पत्तियों की निचली सतह पर बैंगनी रंग की मृदुरोमिल आसिता दिखाई पड़ती है और ऊपरी सतह पर पीले धब्बे पड़ जाते हैं।

रोकथाम

  • सरसों का स्वस्थ तथा प्रमाणित बीज बोयें।
  • पौधों के अवशेषों  को जलाकर नष्ट कर दें।
  • रोग दिखाई देने पर रिडोमिल या मेटालेक्जिल 0.25 प्रतिशत का छिड़काव करें।

सफेद गेरुई रोग : सरसों का सफेद गेरुई रोग बहुत ही खतरनाक है तथा इस रोग के लगने से 23-55 प्रतिशत तक उत्पादन में कमी हो जाती है। तथा यह रोग पूरे संसार में पाया जाता है। और यह रोग भी फफूंद के कारण लगता है। इस रोग का लक्षण सबसे पहले पत्तियों की निचली सतह पर सफेद एवं पीले फफोले जैसे पड़ जाते हैं। और इस रोग के कारण पौधे का सही तरीके से बढ़वार नहीं हो पाती है। तथा फूल बदरंग हो जाते हैं।

रोकथाम

  • सरसों के स्वस्थ बीज की बुवाई करें और समय से 10-25 अक्टूबर के बीच में बोयें।
  • खेत से खरपतवार आदि निकाल कर साफ रखें क्योंकि यह रोग खरपतवारों पर रहता है।
  • रिडोमिल या मेटालेक्जिल  0.25 प्रतिशत छिड़कें।

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