Farmer Success Story (किसानों की सफलता की कहानी)

केले ने बढ़ाई, महेश की कमाई

Share

इंदौर। परंपरागत खेती के बजाय यदि नए उन्नत तरीकों से खेती की जाए तो कमाई को और भी बढ़ाया जा सकता है। ऐसी ही पहल ग्राम बलगांव तहसील कसरावद के उन्नत किसान श्री महेश पटेल ने की। उन्होंने पहले छोटे रकबे में केले की खेती शुरू की,जिसका रकबा अब बढ़कर 25 एकड़ तक पहुँच गया है और केले की फसल से हर साल 2 लाख 60 हजार रुपए प्रति एकड़ का शुद्ध लाभ हो रहा है।

 श्री महेश पटेल ने कृषक जगत को बताया कि पिताजी खरीफ और रबी की फसल परम्परागत तरीके से करते थे। लेकिन आठ साल पहले मैंने केले की फसल लगाने की सोची। आरम्भिक दिनों में उद्यानिकी विभाग द्वारा केले के पौधों और ड्रिप इरिगेशन के लिए अनुदान मिला। जैन इरिगेशन से केले के टिश्यू कल्चर के पांच एकड़ में पौधे लगाए। उत्पादन अच्छा हुआ तो हर साल रकबा बढ़ाते गए, जो अब बढ़कर 25 एकड़ तक पहुँच गया है। जल स्रोत के रूप में नर्मदा जल और कुंआ है। करीब 5 साल पहले 10 एकड़ में ड्रिप इरिगेशन की व्यवस्था की और बाद में रसायनिक खाद भी ड्रिप से देना शुरू किया। करीब 3 वर्ष से ऑटोमेटिक ड्रिप इरिगेशन सिस्टम से सिंचाई की जाने लगी है। इजराईल की कम्पनी नेटफिम की मशीन से कम्प्यूटर में डेटा डाल दिए जाते हैं, जिससे पौधों को उनकी जरूरत के अनुसार स्वत: पानी की आपूर्ति हो जाती है। इससे पानी बचत के साथ ही पौधे अवांछित पानी से भी बच जाते हैं.इस कारण पौधे स्वस्थ रहने से उत्पादन भी अच्छा होता है। इस वर्ष से केले में 50 प्रतिशत जैविक खाद भी शुरू कर दिया है। श्री पटेल ने बताया कि गत 5 -6  वर्षों से क्षेत्र के किसानों में केले की फसल के प्रति रुझान बढ़ा है। बलगांव के अलावा आसपास के गांवों ढालखेड़ा, अकबरपुर, खलटाका, माकडख़ेड़ा सायता आदि में केले के करीब 5 लाख पौधे लगाए गए हैं। जिनमें से अधिकांश पौधे टिश्यू कल्चर की जी-9 किस्म के हैं। अभी केले के एक पौधे की कीमत 15  रुपए है.पहले उत्पादित केलों को इंदौर, उज्जैन, भोपाल आदि जगहों पर भेजा जाता था, लेकिन अब कुछ एजेंटों के जरिए केला चंडीगढ़, इलाहाबाद और लखनऊ जैसे सुदूर क्षेत्रों में भेजा जाने लगा है। अभी केले का भाव 1600-1700 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है। एक एकड़ में लगे केले से करीब 4 लाख रु.मिले, इसमें से 1 लाख 40 हजार  रु. प्रति एकड़ का खर्च घटाने के बाद शुद्ध मुनाफा 2 लाख 60  हजार रु. प्रति एकड़ रहा।

बांस और बंच कवर की मांग: केले की फसल तेज हवा और आंधी का जल्द शिकार होती है। इसलिए पौधों को सहारा देने के लिए छोटे-छोटे बांस के टुकड़े लगाए जाते हैं। लेकिन केला उत्पादकों की शिकायत है कि उन्हें बांस आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। श्री पटेल का कहना है कि बंच कवर से केले की फसल को धूल, मिट्टी और अन्य कीटों से बचाया जा सकता है। ऐसा करने से एक्सपोर्ट क्वालिटी के केलों को देश के बाहर भी भेजा जा सकता है। इस मामले में उद्यानिकी विभाग से सहयोग अपेक्षित है।

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *